अपने विरोधियों के खिलाफ केन्द्रीय जांच एजेंसियों का उपयोग कर बीजेपी खुद ही मगरमच्छ के जबड़ों में फंस गई लगती है। महाराष्ट्र के वरिष्ठ मंत्री नवाब मलिक जिस तरह नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के कामकाज और उसके प्रमुख समीर वानखेड़े के बारे में रोज-ब-रोज खुलासा कर रहे हैं, वह तो छोटा-सा हिस्सा है। केन्द्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के दलों, खास तौर से शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बीच चल रही आर-पार की लड़ाई में वानखेड़े प्रकरण बीजेपी के लिए सिर्फ छोटी-सी क्षति है। संकेत हैं कि पवार अब बीजेपी से बिल्कुल सीधे दो-दो हाथ करने का निश्चय कर चुके हैं।
महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री हर्षवर्धन पाटिल का पवार परिवार के साथ बरसों से प्यार और नफरत का रिश्ता रहा है। लेकिन अब उन्होंने समझ लिया है कि यह दोहरा व्यवहार नहीं चल सकता क्योंकि पवार बहुत सूझबूझ वाले और हर स्थिति से उबर जाने वाले नेता रहे हैं। 1999 में पाटिल ने पवार के बारामती लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत इंदापुर विधानसभा क्षेत्र में पवार के उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ा और विजयी रहे। वह उस साल पहली शिव सेना-बीजेपी सरकार में मंत्री बने। अगले दो चुनाव वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़े और जीते तथा उन्होंने कांग्रेस-एनसीपी सरकार का समर्थन किया। 2009 में वह कांग्रेस टिकट पर लड़े और जीते। इन सब समय वह मंत्री रहे। एक समय तो उन्हें मुख्यमंत्री-पद का दावेदार तक माने जाने लगा था।
लेकिन 2014 में एनसीपी और कांग्रेस ने अलग- अलग चुनाव लड़ा और पाटिल को एनसीपी उम्मीदवार के हाथों शिकस्त मिली। 2019 लोकसभा चुनावों में पाटिल ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले का इस उम्मीद में समर्थन किया कि उन्हें विधानसभा चुनाव में एनसीपी से मुश्किल नहीं आएगी। पर विधानसभा चुनाव से पहले ही एनसीपी नेतृत्व ने साफ कर दिया कि इंदापुर सीट को लेकर कांग्रेस के साथ उनकी पार्टी का कुछ तय नहीं हुआ है। इस पर पाटिल ने बीजेपी का दामन थाम लिया। फिर भी, वह चुनाव हार गए।
पाटिल ने अक्तूबर के दूसरे सप्ताह में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा कि ‘मैं बीजेपी में इस वजह से शामिल हुआ ताकि मैं रात में आराम से सो सकूं और मुझे किसी तरह की जांच या छापों का डर नहीं हो।’ बीजेपी नेतृत्व अपनी पार्टी के किसी व्यक्ति की तरफ से इस किस्म के बयान को पसंद करेगा, इसकी उम्मीद कम ही है। ऐसे में, माना यही जा रहा है कि पाटिल पवार की तरफ जाने की सोच रहे हैं।
उधर पंकजा मुंडे का मसला दूसरा है। वह बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री गोपीनाथ मुंडे की बेटी हैं और देवेन्द्र फडणवीस सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। उन्होंने हाल में अपने पार्टी नेताओं से कहाः आप महा विकास अघाड़ी सरकार को गिराने के प्रयास में अपना काफी समय बर्बाद कर रहे हैं और जमीनी हालात पर काफी कम ध्यान दे रहे हैं। पंकजा के चचेरे भाई धनंजय मुंडे ने एनसीपी टिकट पर चुनाव लड़कर उन्हें हरा दिया था और वह भी अपने चुनाव क्षेत्र में बिना समझौता नहीं जीत सकतीं। यह तो साफ है कि अगर पाटिल और पंकजा को चुनाव में जीत नहीं मिल सकती, तो वे बीजेपी के लिए किसी काम के नहीं हैं लेकिन पार्टी यह तो कतई नहीं चाहेगी कि ये नेता उसके लिए मुश्किलें खड़ी करें।
वैसे, शिवसेना नेता संजय राउत ने पाटिल के बयान पर सही ही चुटकी ली कि ‘उनकी कही बात से बीजेपी के बारे में सबकुछ समझा जा सकता है- सभी अपराधी बीजेपी में आराम से रह सकते हैं और जिन्हें वे जमीन पर नहीं हरा सकते, उन राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ छापे, जांच आदि सुविधाजनक हथियार हैं।’ वैसे, जब इस किस्म की टीका- टिप्पणी होने लगी, तो पाटिल ने यह कहकर बात संभालने की कोशिश की कि वह बीजेपी में इस वजह से शामिल हुए क्योंकि उन्हें टिकट देने से मना कर दिया गया था। वैसे, इससे उनकी या बीजेपी की स्थिति कितनी बेहतर हुई, समझना मुश्किल नहीं है।
दरअसल, शायद खुद बीजेपी के लोगों को इस बात से संतुष्ट करना भारी मुश्किल ही होगा कि शाहरुख और आर्यन को परेशान करने के लिए उनके पास इसके सिवा कोई वजह नहीं है कि उनके नाम खान हैं।
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