विचार

जैव-विविधता पर अंतरराष्ट्रीय पहल से भारत ने काटी कन्नी, पर्यावरण संरक्षण सिर्फ लच्छेदार भाषण तक सीमित

इस समय जलवायु परिवर्तन, तापमान वृद्धि और जैव-विविधता के अभूतपूर्व दर से ह्रास के कारण मानवता संकट में हैI हालांकि सभी देश पर्यावरण सुधारने का लगातार दावा करते रहे हैं, पर सच्चाई यह है कि हर आने वाले दिन में पर्यावरण का विनाश पिछले दिन से अधिक किया जा रहा हैI

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

हाल में 30 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र ने अमेरिका के न्यूयॉर्क में जैवविविधता को बचाने से संबंधित वर्चुअल सत्र का आयोजन किया। अनुमान के मुताबिक दुनिया के 116 देशों के मुखिया या फिर उनके प्रतिनिधि इसमें जुड़ेI इससे पहले 28 सितम्बर को कुल 64 देशों के मुखियाओं और यूरोपीय संघ ने सम्मिलित तौर पर “लीडर्स प्लेज टू नेचर- यूनाइटेड टू रिवर्स बायोडायवर्सिटी लौस बाई 2030 फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट” नामक संकल्प पत्र को जारी कियाI इसमें हस्ताक्षर करने वालों में फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, न्यूजीलैंड, ग्रेट ब्रिटेन, मैक्सिको और इजराइल के साथ ही भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका भी शामिल हैंI

आश्चर्य यह है कि पांच हजार सालों से चली आ रही पर्यावरण संरक्षण की परंपरा की दुहाई और वसुधैव कुटुम्बकम का बार-बार अंतर्राष्ट्रीय मंच से नारा लगाने के बाद भी भारत ने इस संकल्प पत्र पर हस्ताक्षर नहीं कियेI भारत के साथ ही अमेरिका, ब्राजील, चीन, रूस, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश भी इससे बाहर हैं और यही सारे देश पर्यावरण का सबसे अधिक विनाश भी कर रहे हैंI

Published: undefined

इस संकल्प पत्र के अनुसार वर्तमान में प्रदूषण, पर्यावरण-अनुकूल आर्थिक विकास, जैव-विविधता को बचाना और जलवायु परिवर्तन को रोकना बहुत आवश्यक हैI ये सभी देश पर्यावरण से जुड़ी हरेक बड़ी-छोटी समस्या को दूर करने के लिए एकजुट होकर काम करेंगे और इस शताब्दी के मध्य तक ऐसी किसी भी गतिविधि को रोक देंगे, जिससे पर्यावरण विनाश की संभावना होI

यह संकल्प पत्र और इससे संबंधित पर्यावरण विनाश को रोकने के लिए किये जाने वाले सार्थक उपाय मानव जाति के लिए मील का पत्थर साबित होंगेI इस समय जलवायु परिवर्तन, तापमान वृद्धि और जैव-विविधता के अभूतपूर्व दर से नष्ट होने के कारण मानवता संकट में हैI हालांकि सभी देश पर्यावरण सुधारने का लगातार दावा करते रहे हैं, पर वास्तविकता यह है कि हरेक आने वाले दिन में पर्यावरण का विनाश पिछले दिन से अधिक किया जा रहा हैI

Published: undefined

इन देशों ने संकल्प लिया है कि वनों को कटने से बचाने, प्रजातियों का नाश करने वाले मछली पकड़ने के तरीके, पर्यावरण को नष्ट कर सकने वाली गतिविधियों के लिए सरकारों द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली कृषि जैसी गतिविधियों को पूरी तरह रोकने के साथ ही पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था की शुरुआत वर्ष 2029 तक ही कर ली जाएगीI इन नेताओं के अनुसार जिस तरह जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए पेरिस समझौता है उसी तरह के एक अंतर्राष्ट्रीय समझौते की जरूरत जैव-विविधता को नष्ट होने से बचाने के लिए भी हैI

विज्ञान स्पष्ट तौर पर पिछले अनेक वर्षों से पर्यावरण के विनाश की सूचना के साथ ही इसके प्रभाव भी उजागर कर रहा है, अब आवश्यक है कि पूरा विश्व समुदाय इन चेतावनियों की तरफ ध्यान देI पर्यावरण बचाकर ही गरीबी और सामाजिक असमानता को दूर किया जा सकता है, इसी से भूख और कुपोषण की समस्या से निपटा जा सकता हैI इस समय हम जिसे विकास समझ रहे हैं, उसकी दिशा ही गलत है, और इसे सही करने के लिए वैश्विक स्तर पर बड़े बदलाव करने पड़ेंगेंI पर्यावरण से संबंधित अपराधों पर भी लगाम लगाने की जरूरत हैI

Published: undefined

इस संकल्प पत्र में कुल 10 प्रमुख कार्य-योजना का उल्लेख किया गया है, जिसमें पर्यावरण बचाने से संबंधित सभी प्रमुख आयाम शामिल हैंI इसमें जनजातियों, वनवासियों और स्थानीय समुदाय को भी अधिकार देने और निर्णय लेने वाले दल में शामिल करने की बात की गई हैI कार्य-योजना की शुरुआत ही कोविड19 के कारण पूरी दुनिया की गिरती अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाते समय सतत या पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था के विकास की बात की गई हैI संयुक्त राष्ट्र और पर्यावरण के विशेषज्ञ कोविड 19 के आरंभ से ही दुनिया की सरकारों से ऐसी अर्थव्यवस्था की गुहार कर रहे हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी तंत्र के लगातार विनाश को रोका जा सकेI

हाल में ही विविड इकोनॉमिक्स नामक संस्था ने जी 20 देशों के अर्थव्यवस्था का गहराई से आकलन किया हैI इन देशों में कोरोना संकट के बाद उद्योगों, कृषि और दूसरे सामाजिक सरोकार के नाम पर सरकारों द्वारा जो वित्तीय सहायता प्रदान की गई है, उसका आकलन किया गया है और देखा गया है कि इससे पर्यावरण पहले से अधिक बिगड़ेगा या फिर पर्यावरण पर अच्छा प्रभाव पड़ेगाI जी 20 समूह में भारत, तुर्की, सऊदी अरब, चीन, रूस, अर्जेंटीना, इंडोनेशिया, मेक्सिको, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, इटली, स्पेन, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस शामिल हैंI इस आकलन में जी 20 देशों के साथ ही यूरोपियन यूनियन का भी आकलन किया गया हैI

Published: undefined

ग्रीननेस ऑफ स्टिम्युलस इंडेक्स नामक रिपोर्ट के अनुसार बहुत कम ऐसे देश हैं, जहां कोविड19 से अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए स्वीकृत सरकारी बेलआउट पैकेज से पर्यावरण को नुकसान कम और लाभ ज्यादा होI ऐसे देशों में ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस के साथ यूरोपियन यूनियन भी शामिल हैI यूरोपियन यूनियन ने अपने सदस्य देशों को 750 अरब यूरो का बैलआउट पैकेज दिया, जिसमें से 37 प्रतिशत राशि सीधे पर्यावरण संरक्षण से संबंधित परियोजनाओं के लिए हैI शेष राशि के साथ भी पर्यावरण संरक्षण से संबंधित अनेक शर्तें हैं, जिनका सख्ती से पालन अनिवार्य हैI

यूनाइटेड किंगडम यानी ब्रिटेन में 3 अरब पौंड की राशि सीधे तौर पर ऊर्जा की दक्षता बढाने के लिए स्वीकृत की गई हैI इन यूरोपीय देशों के अतिरिक्त दक्षिण कोरिया में जो राहत राशि दी गई है, उससे भी पर्यावरण संरक्षण की उम्मीद बंधती हैI दक्षिण कोरिया में कुल राहत राशि का 15 प्रतिशत, यानि 52 अरब डॉलर सीधे पर्यावरण संरक्षण के लिए दिए गए हैंI

Published: undefined

पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में सबसे बुरी हालत अमेरिका की हैI वहां कुल 3 खरब डॉलर की सहायता राशि दी गई है, जिसमें से महज 39 अरब डॉलर की राशि से पर्यावरण को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। शेष राशि से पर्यावरण के तेजी से विनाश की संभावना हैI दूसरी तरफ अमेरिका में कोविड 19 के नाम पर पर्यावरण संरक्षण से संबंधित अनेक कानूनों को फिलहाल हटा लिया गया है, या फिर इनमें रियायत दी गई हैI

न्यू क्लाइमेट इंस्टिट्यूट के निदेशक निकलस होहने के अनुसार अमेरिका, ब्राजील, भारत, मैक्सिको, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, रूस और सऊदी अरब में सरकारों द्वारा स्वीकृत सहायता राशि से पर्यावरण का पहले से भी अधिक विनाश होना तय है, क्योंकि यह पूरी राशि प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर जीवाश्म इंधनों के उपयोग या फिर पर्यावरण बिगाड़ने वाली कृषि को बढ़ावा देती है, और भारत समेत अनेक देशों में कोरोना की आड़ में पहले से ही लचर पर्यावरण कानूनों को अब लगभग निष्क्रिय कर दिया गया हैI

Published: undefined

भारत के बारे में रिपोर्ट में बताया गया है कि पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में कोरोना संकट के पहले भी स्थिति खराब थी, पर अब सरकारी सहायता के बाद कोयला और दूसरे जीवाश्म इंधनों का उपयोग पहले से भी अधिक हो जाएगाI जाहिर है भारत समेत अनेक दूसरे बड़े देश पर्यावरण सरक्षण के सन्दर्भ में अन्तरराष्ट्रीय मंचों से लच्छेदार भाषण के अतिरिक्त कुछ नहीं करतेI यहां के पारिस्थितिकी तंत्र में स्थानीय लोगों की कोई भूमिका नहीं होती, बल्कि स्थानीय लोगों को धमकाकर विस्थापित कर दिया जाता है और फिर जैव-सम्पदा का स्वामित्व बड़े उद्योगपतियों को दे दिया जाता हैI इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि पर्यावरण बचाने के संकल्प पत्र पर भारत ने हस्ताक्षर नहीं किये हैंI

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined