संयुक्त राष्ट्र ने शासन के जिन सिद्धांतों को परिभाषित किया है उसके मुताबिक सभी व्यक्ति, संस्थान और संस्थाएं (निजी और सार्वजनिक) और सरकार भी उन कानून के तहत प्रतिबद्ध है जो सार्वजनिक तौर पर बनाए गए हैं, समान रूप से लागू हैं और स्वतंत्र रूप से उनका न्याय कर सकते हैं और इनमें अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों और मानकों का पालन होता है।
भारत कानून पर आधारित एक देश है हमारे संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है, "कोई भी व्यक्ति कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं होगा।" सरकार इसके पालन के लिए कानूनन बाध्य है। इस नियम को तोड़ना, कानून को तोड़ना और अपराध करना है।
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लेकिन आज भारत में जो हो रहा है वह कानून का राज नहीं है। हम एक कानून विहीन देश हो गए हैं, और मैं ऐसा सिर्फ गुस्से या हताशा में नहीं कह रहा हूं। मैं ऐसा अपने आसपास होने वाली घटनाओँ के आधार पर ऐसा कह रहा हूं। एक ऐसा व्यक्ति जो अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर संगीन से संगीन अपराध से भी दोषमुक्त होता रहा वह आत्मसमर्पण करता है और इससे पहले कि वह कुछ राज खोलता पुलिस हिरासत में ही उसे गोली मार दी जाती है। उस पर संविधान के मुताबिक मुकदम नहीं चलाया जाता और किसी भी प्रक्रिया को अपनाए बिना ही उसे मृत्युदंड दे दिया जाता है।
लेकिन सिर्फ यही एक आधार नहीं जिसके कारण में देश को काननू विहीन कह रहा हूं। उत्तर प्रदेश में हुआ यह कोई पहला एनकाउंटर नहीं है। योगी आदित्यनाथ ने जब से उत्तर प्रदेश की कमान संभाली है तब से राज्य में 119 ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं और हजाओं घटनाएं अन्य जगहों पर हुई हैं। और आने वाले समय में भी होती ही रहेंगी। एक पिता और उसके बेटे को सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि उन्होंने अपनी दुकान खोल रखी थी। ऐसा सिर्फ भारत में हो रहा है। दूसरे कानून विहीन देशों में भी ऐसा होता है, यह भी सत्य है। जिन लोगों के हाथ में सत्ता है वे कानून विहीन देशों में ऐसा करते रहेंगे।
लेकिन भारत जैसे देश में सरकार तक को कानून के बारे में जानकारी नहीं है। नरेंद्र मोदी सरकार ने एक कानून बनाकर गाय-भैंसों की मांस के लिए बिक्री पर रोक लगा दी। मोदी जी गाय से प्रेम करते हैं लेकिन उन्हें नहीं पता है कि उनके पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है। कारण, यह मामला संविधान के मुताबिक राज्यों का अधिकार है न कि केंद्र सरकार का। लेकिन कानून बनाते समय केंद्र सरकार को यह पता नहीं था। और, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस ओर इशारा किया तो इस कानून को वापस ले लिया गया।
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कानून विहीन देशों में ऐसा ही होता है। सरकारों को कानून की ही जानकारी नहीं है तो वे खुद कानून का पालन कैसे करेंगी? कई बार राज्य सरकारों को भी नहीं पता होता है, और कुछ मामलों में तो सुप्रीम कोर्ट को कानून की जानकारी नहीं होती। ओडिशा ने एक कानून बनाकर 1967 में धर्मपरिवर्तन पर रोक लगा दी। लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन था। संविधान सभा में हुई बहसों के साफ जाहिर है कि अनुच्छेद 25 के तहत धर्म परिवर्तन की गारंटी दी गई है। ओडिशा हाईकोर्ट ने इस कानून को खारिज कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तर्कहीन आधार पर हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि कम से कम दस राज्यों में ऐसा कानून बन गया और यूपी ऐसा करने वाला 11वां राज्य है।
योगी आदित्यनाथ इस बात को जानकर चौंक उठेंगे कि उन्होंने राज्य की पुलिस को जो करने का निर्देश दिया वह संविधान के मुताबिक एक अपराध है और उन्हें इसकी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन मोदी की ही तरह वह भी ऐसा सोचते हैं कि गाय वाला कानून बनाकर वह सही कर रहे हैं क्योंकि भारतीय संस्कृति तो यही है।
कानून विहीन देशों और राज्यों में ऐसा होता रहता है। अदालतें बेकार हो चुकी हैं, जजों को कानून की पूरी जानकारी नहीं है, निचली अदालतें राष्ट्र द्रोह जैसे मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को नहीं मान रही हैं, विधायक मिलते नहीं हैं, निर्वाचित प्रतिनिधि कानून का पालन नहीं करते और पुलिस किसी की भी हिरासत में हत्या कर देती है।
ऐसा होता है, और यही नया भारत है।
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