मैं अब जाकर मुनमुन सेन पर मुग्ध हुआ हूं, जबकि बहुत पहले हो जाना चाहिए था। नाम तो उनका बहुत सुन रखा है मगर शायद ही कभी फिल्मी पर्दे पर उनके दर्शन प्राप्त किए हों, इसलिए उनके अभिनय या रूप सौंदर्य पर मुग्ध होने का अवसर नहीं मिला। मुग्ध अब हुआ हूं, जब आसनसोल से वह तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार हैं और वह भी ऐन मतदान के दिन जाकर उन पर मुग्ध हुआ, वह भी उनके रूप सौंदर्य पर नहीं।
मतदान के दिन महोदया देर से जागीं क्योंकि उनके सेवक ने उनके लिए देर से चाय बनाकर हाजिर किया। वह जल्दी चाय बना देता, मैडम के सामने हाजिर कर देता, 'चाय-चाय' बोलकर उन्हें उठाने की जुर्रत कर देता तो वह नाश्ता वगैरह करके जल्दी से तैयार हो जातीं! वह देर से जागीं, इसलिए उन मासूमा को इस बारे में कुछ नहीं मालूम था कि उनके विरोधी भाजपाई उम्मीदवार बाबुल सुप्रियो की कार के शीशे तोड़ दिए गए हैं।
वैसे न बीजेपी कम है, न तृणमूल कांग्रेस उससे कम है। सुप्रियो के विरोधियों ने कार के शीशे तोड़े या सहानुभूति लहर चलाने के लिए तुड़वाए गए, कोई नहीं कह सकता। भाजपाई संस्कृति में सबकुछ मुमकिन है और फिर मोदी है तो फिर मुमकिन ही मुमकिन है, नामुमकिन कुछ भी नहीं!
पर छोड़ो इस मामले को यहीं। हम मुनमुन सेन पर फिर से लौटते हैं। मैं तो अखबार रोज पढ़ता हूं, मगर राज्य की प्रमुख और सत्ताधारी पार्टी का मुनमुन सेन जैसा निस्पृह उम्मीदवार मैंने आज तक न देखा, न सुना, न पढ़ा। वोटर बेचारा मुंह धोए बगैर वोट देने की लाइन में लगा हुआ टांगें दुखा रहा है और उधर मैडम जी की नींद इसलिए नहीं खुल रही है कि सेवक ने उन्हें देर से चाय दी!
उन्होंने चाय पी होगी, नित्यकर्म संपन्न किया होगा, नहाई होंगी। हीरोइन हैं तो देर तक सिंगारपटार किया होगा या किसी फैशन डिजाइनर से करवाया होगा। फिर नाश्ता किया होगा और तब सोचा होगा कि चलें या न चलें! फिर तय किया होगा, चलो, चल ही पड़ते हैं। फिर यह निर्णय लेने में समय लगा होगा, चलें तो किधर चलें!
वोट पड़ने की जगह मान लो, वहां से आधा घंटा की दूरी पर होगी तो कार में उन्होंने एक झपकी जरूर ली होगी। मान लेना चाहिए कि झपकी लेने के बाद उन्हें चाय की फिर से जरूरत नहीं पड़ी होगी। अगर पड़ी होगी तो ड्राइवर से कहा होगा, थर्मस से थोड़ी चाय निकालकर दे दो, भैया। भैया ने दे दी होगी। इस दौरान महोदया ने मोबाइल बंद रखा होगा या निर्देश दिया होगा कि कोई फोन-वोन सुनने की जरूरत नहीं।
तो यह तो उनकी उम्मीदवारी का एक ही पक्ष हुआ। अब उनके व्यक्तित्व का वह पहलू देखिए, जो नेताओं में मुश्किल से मिलता है। उन्होंने बिना संकोच सच बोला कि वह देर से क्यों जागीं! इतना सच बोलना राजनीति में खतरनाक होता है कि मेरा सेवक चाय देर से लाया, इसलिए मैं देर से जागी मगर सत्य के पथ पर चलने की उनकी इस प्रतिज्ञा से मैं अभिभूत हुआ। लगा कि गांधीवाद अभी मरा नहीं है, चाय समय पर न मिलने के कारण सोया पड़ा है।
और गांधीवादियों को यहां याद दिला दूं कि मैं गांधी जी की नहीं, गांधीवाद की बात कर रहा हूं। तो मुझे चाय के अभाव में मतदान के दिन भी देर से जागने वाला गांधीवाद अधिक पसंद है, बजाय 365 दिन प्रातः जागने वाले हिंदुवाद के।
मुनमुन सेन सांसद बनकर भी देर से जागेंगी तो इससे देश का नुकसान नहीं होगा, जबकि एक संघी साढ़े तीन घंटे सोकर और साढ़े बीस घंटे जागकर देश को बर्बाद कर सकता है, कर दिया है और इस दिशा में प्रगति जारी है, जब तक वह सबका 'विकास' नहीं कर लेगा, चैन की नींद नहीं सोएगा।
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