विचार

2024 में भारत के लिए कुछ प्रतिबद्ध और चिंतित नागरिकों के विचार- 2: आपके देश को आपकी जरूरत है- सैम पित्रोदा

नया वर्ष शुरु हो गया है। लेकिन बीते वर्षों में देश को एक सूत्र में पिरोए रखने वाला 'आइडिया ऑफ इंडिया' लुप्त प्राय हो गया है। ऐसे में इस आडिया के प्रति देश के कुछ प्रतिबद्ध चिंतित नागरिक नए साल में आशा के संकेत तलाश रहे हैं। पढ़िए दूसरी कड़ी...

फाइल फोटो
फाइल फोटो 

भारत के आज के हालात को देखकर मुझे काफी चिंता होती है। मौजूदा सरकार के शासन में एक शानदार विविधता वाला भारत एक निरंकुश हिन्दू राष्ट्र बनने की राह पर है। हमारी तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं को तहस-नहस कर दिया गया है, उनकी संस्थागत स्वायत्तता को बेहद कमजोर कर दिया गया है; नागरिक समाज पंगु हो गया है; पौराणिक कथाएं विज्ञान पर भारी पड़ रही हैं; मीडिया सत्ता में बैठी पार्टी का मुखपत्र बन गया है।

सोशल मीडिया को भी विपक्षी नेताओं पर निजी हमले करने, झूठ फैलाने और नफरत को हवा देने के लिए औजार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। समुदायों को बांट दिया गया है और आबादी का बड़ा हिस्सा सरकारी खौफ में जी रहा है। केन्द्रीय जांच एजेंसियां सरकार की पसंदीदा हथियार बन गई हैं जो राजनीतिक विरोधियों और असहमति जताने वालों को काबू करने के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं। 

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ऐसे माहौल में, सत्तारूढ़ दल को वोट नहीं करने वाले 60 फीसद लोग ऊहापोह में हैं कि कैसे प्रतिक्रिया दें, कैसे पहिया को वापस घुमाएं। कैसे भारत अपनी समृद्ध विरासत को वापस पाते हुए फिर से समावेशी समाज बने और कैसे सबके लिए अवसरों और समृद्धि के अधूरे वादे को पूरा करे। केवल लोकतंत्र के प्रबुद्ध विस्तार के जरिये भारत अपने लोगों के लिए शांति, सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है, नौकरियां पैदा कर सकता है और रोजगार, व्यवसाय, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था को बढ़ा सकता है। तभी सबके लिए भोजन, स्वास्थ्य और आवास की व्यवस्था संभव है।

लोकतंत्र उस काम की तरह है जो हमेशा चलता रहता है और इसे बनाए रखना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। ऐसे में, सवाल उठता है कि हम अपने लोकतंत्र और संविधान को संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए क्या करें? 

इसे भी पढ़ेंः 2024 में भारत के लिए कुछ प्रतिबद्ध और चिंतित नागरिकों के विचार-1: मौलिक अधिकारों के लिए लड़ना होगा- आकार पटेल

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पहला कदम है अपने वोट की कीमत को पहचानना और इसे विवेक और सूझबूझ के साथ उस ‘भारत के विचार’ के लिए इस्तेमाल करना जिसमें आपको यकीन है और जिसे आप अपनी भावी पीढ़ी को देना चाहते हैं। इसका मतलब है कि ‘जिन मूल्यों पर आप यकीन करते हैं’ उनके लिए मतदान करना, न कि किसी व्यक्ति या पार्टी के लिए, खास तौर पर वैसी पार्टी के लिए तो बिल्कुल नहीं जो नफरत फैलाती है और लोगों को बांटकर, उनसे झूठे वादे करके फलती-फूलती है। भारत में लोकतंत्र ‘चौराहे’ पर है और केवल संवेदनशील तरीके से वोट करके ही इसे वापस पटरी पर लाया जा सकता है। 

अगर परवाह है, जुट जाएं 

जुबान खोलें और यह समझते हुए कि ऐसा करना बेहद जरूरी है, संदेश को दोस्तों, सगे-संबंधियों और स्थानीय समुदायों में फैलाएं। घर-घर जाएं, कॉलेज-बाजार जाएं। सड़क पर उतरें और जहां भी संभव हो, लोगों से मिलें-जुलें क्योंकि जनता के बीच जाने का कोई विकल्प नहीं होता। 

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लोगों को आजाद तरीके से सोचने और वाट्सएप के मैसेज को बिना सोचे-समझे फॉरवर्ड करने या टीवी पर फैलाए जा रहे दुष्प्रचार पर यकीन करने की जगह खुद सच को जानने के लिए प्रोत्साहित करें। लोगों को धैर्य और खुलेपन के साथ सुनें और लोगों की आंखों में सच्चाई, करुणा और सहानुभूति और उनकी सच्चाई को पढ़ना सीखें। 

समुदाय की चिंता करने वाले और भारत में लोकतांत्रिक दृष्टिकोण वाले एक योग्य, शिक्षित और प्रबुद्ध स्थानीय उम्मीदवार के हाथ मजबूत करें। अपने समय, ऊर्जा और संसाधनों से उसकी सहायता करें। 

आप जैसा बदलाव देखना चाहते हैं, उसका साधन बनें, उसमें एक सक्रिय भागीदार बनें। हममें से प्रत्येक के पास प्रभाव डालने की क्षमता है, इसलिए अपनी शक्ति को कम मत आंकें। चुनौती स्वीकार करें और इस महत्वपूर्ण समय की मांग पर ध्यान दें। आपके देश को आपकी जरूरत है।

(सैम पित्रोदा इंजीनियर और उद्यमीहैं। वह राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल मेें साइंटिफिक एडवाइजर थे। उन्हें देश मेें संचार क्रांति का जनक माना जाता है।)

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