राजनीति में विधायक या सांसद या मंत्री या मुख्यमंत्री या यहां तक कि प्रधानमंत्री बनने से भी हैसियत नहीं बनती। पद लाभ जरूर मिल जाते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जैसा शानदार हवाई जहाज खरीदने, दस लाख का सूट पहनने का शाही शौक पूरा हो जाता है। करने से ज्यादा न करने, गलत और अनुचित करने का निरंकुश राजकीय अधिकार प्राप्त हो जाता है। यहां तक कि भ्रष्टाचार, बलात्कार करने से भी आनी-जानी किस्म की हैसियत बनती है!
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लेकिन असली हैसियत इस बात से बनती है कि पद पर रहकर आपने वह स्थान हासिल किया या नहीं कि विपक्ष आपसे इस्तीफा मांगे, क्षमा मांगने को कहे और आप मुस्कुराएं, ठेंगा दिखाएं। फिर तो तय है कि आप जिस पद पर हैं, उससे ऊंचे पद पर पहुंचेंगे, वरना यह कुर्सी तो आपकी और भी पक्की समझो!
उदाहरण के लिए कल तक भगतसिंह कोशियारी जी महज एक राज्यपाल थे। ऐसे महामहिमों के न आने का पता चलता है, न जाने का। उनका चेहरा दस सेकंड टीवी पर दिखने से और अखबार में यदाकदा छपने से भी फर्क नहीं पड़ता। कोशियारी जी टोपी और कोट पहनकर आए थे, और वही पहनकर चले जाते, तो उन्हें और उनके आकाओं को मजा नहीं आता। ससम्मान आकर, ससम्मान चले जाने से ज्यादा खतरनाक आज भाजपाई राजनीति में कुछ नहीं हो सकता!
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दरअसल बीजेपी में बाद में आदरणीय माने जाएंगे, इससे कुछ नहीं होता (बुजुर्ग तो वैसे भी आदरणीय मान लिये जाते हैं)। इससे कोई महात्मा गांधी या डॉ भीमराव अंबेडकर नहीं बन जाता।हद से हद कुछ पुराने चमचे चरणस्पर्श के बहाने आपकी दुर्दशा के दर्शन करने यदाकदा चले आते हैं। कुछ फोन से आपका स्वास्थ्य पूछ लेते हैं। वह खराब न हो तो पूछने वाले का मजा किरकिरा हो जाता है!
मगर उपरोक्त महामहिम ने धर्मनिरपेक्षता पर तंज कसकर अपना नाम रोशन कर दिया है। अब वह पूरे पांच साल तो राज्यपाल रहेंगे ही, एक दो बार और कुछ ऐसा कह और कर देंगे तो किसी और राज्य में सेवा का अवसर पा जाएंगे! वैसे उनसे भी ज्यादा होशियार कई राज्यपाल बीजेपी ने बनाए हैं, जो रोज विवादों का रथ जोते रहते हैं। गैरभाजपाई मुख्यमंत्रियों को उनकी हैसियत बताते रहते हैं। उनके 'सराहनीय' काम को देखते हुए मोदीजी उन्हें पांच साल और अवसर दे सकते हैं।कम से कम उन्होंने इसकी योग्यता तो सार्वजनिक रूप से सिद्ध कर ही दी है।
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वैसे किसी बीजेपी शासित राज्य में महामहिम होने का खास मजा नहीं है। आराम ज्यादा मिलता है, काम कुछ होता नहीं! उबासियां लेते रहो, जिसका आनंद तो बिना इस तामझाम के बेहतर ढंग से उठाया जा सकता है। पद पर नहीं हैं तो उबासी लेने में भी पद की गरिमा का बोझ नहीं उठाना पड़ता। वैसे सच यह है कि यह बोझ अब कोई नहीं उठाता। आजकल मजदूर और हम्माल के अलावा कोई किसी तरह का बोझ नहीं उठाता!
मोदीजी ने जो 'आदर्श' देश के सामने रखा ह़ै, वह अनुकरणीयता की श्रेणी में आ चुका है। आगामी सत्ताधारी भी इस मार्ग से विचलित नहीं होंगे। जो मोदीजी की तरह गरिमा के बोझ से जितना अधिक मुक्त रहता है, उसकी राजनीति उतनी अधिक चमकती है। उससे इस्तीफा और माफी मांगने वाले बढ़ते जाते हैं। उसका अगला टिकट और मंत्री पद पक्का हो जाता है। स्मृति ईरानी, गिरिराज सिंह, रविशंकर प्रसाद ऐसी ही कुछ बड़ी 'हस्तियां' हैं, वरना मोदीजी के मंत्रिमंडल में न जाने कितने मंत्री और राज्यमंत्री हैं!
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इनमें से आधे से ज्यादा के नाम तो स्वयं मोदीजी को याद नहीं होंंगे! इसी तरह बीजेपी के कौड़ी के दस प्रवक्ता हैं, मगर प्रातः और सायं स्मरणीय केवल संबित पात्रा हैं। यूं तो रवीश कुमार बढ़िया एंकर हैं, मगर जो हैसियत अर्णब गोस्वामी को हासिल है, उसे रवीश पा नहीं सकते। और तो और गोदी प्रजाति के होते हुए भी रजत शर्मा इस मामले में कांस्य पदक के योग्य ही ठहरेंगे!
इसलिए राजनीति का पहला और अंतिम पाठ है कि सिर्फ पद नहीं पाओ, हैसियत भी बनाओ।हैसियत बनाने के लिए वह दम पैदा करो कि तुमसे त्यागपत्र मांगा जाए, माफी मांगने को कहा जाए और तुम मुस्कुराते चले जाओ!
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