पीएम नरेंद्र मोदी ने अमेरीका के ह्यूस्टन में डोनाल्ड ट्रंप की उपस्थिति में जबरदस्त नौटंकी की। वहां मौजूद लगभग पचास हजार लोगों ने दोनों नेताओं के जयकारे लगाए। दोनों ने एक-दूसरे की तारीफ की और दोनों ने ‘इस्लामिक आतंकवाद’ और पाकिस्तान को कोसा। यह सच है कि पश्चिम एवं दक्षिण एशिया में आतंकवाद ने अपने क्रूर पंजे फैला लिए हैं। ‘इस्लामिक आतंकवाद’ के नाम पर उन्माद तो भड़काया जा रहा है, लेकिन यह भुला दिया गया है कि इस्लामिक आतंकवाद के बीज, अमरीका ने ही बोए थे।
अमरीका ने ही मुस्लिम युवकों के दिमाग में जहर भरने के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया। पाकिस्तान में स्थापित मदरसों के माध्यम से इस्लाम के प्रतिगामी संस्करण का प्रचार-प्रसार किया गया। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पर काबिज सोवियत सेना से लड़ने के लिए मुजाहिदीन तैयार किए। धर्मोन्मादी मुजाहिदों की सेना तैयार करने पर अमेरीका ने 800 करोड़ डालर खर्च किए। इन मुजाहिदों को सात हजार टन हथियार और असलहा उपलब्ध करवाए गए। अमेरीका ने इन आतंकवादियों का उपयोग अपने फायदे के लिए किया और अब वह ऐसा बता रहा है, मानो वह हमेशा से आतंकवाद के खिलाफ रहा हो। हिलेरी क्लिंटन के शब्दों में अमेरीकी सरकार का नजरिया यह था कि, ‘‘उन्हें (मुजाहिदीन) सऊदी अरब और अन्य देशों से आने दो, उन्हें वहाबी इस्लाम का आयात करने दो, ताकि हम सोवियत संघ को पछाड़ सकें’’।
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अमेरीका में हुए जबर्दस्त जलसे के समानांतर कई घटनाएं हुईं। मीडिया, मोदी के कार्यक्रम में भारतीयों की भारी भीड़ उमड़ने के बारे में तो बहुत कुछ कह रहा है, लेकिन इससे जुड़ी कई अन्य घटनाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, मोदी की नीतियों के विरोध में जो प्रदर्शन वहां हुए उनकी कोई चर्चा नहीं हो रही है। अमेरीका में रह रहे भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा हिन्दू राष्ट्रवाद का समर्थक और मोदी भक्त है। परंतु वहां के कई भारतीय, भारत में मानवाधिकारों की स्थिति और प्रजातांत्रिक अधिकारों के साथ हो रहे खिलवाड़ से चिंतित भी हैं।
डेमोक्रेट नेता बेरनी सेंडर्स ने अपने ट्वीट में कहा कि भारत में धर्म स्वातंत्र्य और मानवाधिकारों पर हो रहे हमलों को नजरअंदाज कर ट्रंप, मोदी का समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जब धार्मिक उत्पीड़न, दमन और निष्ठुरता पर डोनाल्ड ट्रंप चुप रहते हैं तो वे पूरी दुनिया के निरंकुश नेताओं को यह संदेश देते हैं कि “तुम जो चाहे करो तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा’’। मोदी ने अपने लंबे भाषण में जो कुछ कहा उसका लब्बोलुआब यही था कि भारत में सब कुछ एकदम ठीक-ठाक है।
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मोदी यह तब कह रहे हैं जब पूरे कश्मीर सहित भारत के अनेक इलाकों में रहने वाले भारतीयों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। आखिरी पंक्ति में खड़े उस आखिरी व्यक्ति- जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अत्यंत प्रिय था- से मोदी को कोई लेनादेना नहीं है। यद्यपि अधिकांश दर्शकों ने मोदी का भाषण बिना सोचे-विचारे निगल लिया परंतु स्टेडियम के बाहर बड़ी संख्या में विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों ने मोदी राज में देश की असली स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करवाने का प्रयास किया।
प्रदर्शनकारियों में से एक- सुनीता विश्वनाथन की टिप्पणी अत्यंत उपयुक्त थी। सुनीता विश्वनाथन, ‘हिन्दूज फॉर ह्यूमन राईटस’ की सदस्य हैं। यह संस्था अनेक संगठनों के गठबंधन का हिस्सा है। इस गठबंधन का नाम है- ‘अलायेंस फॉर जस्टिस एंड एकाउंटेबिलटी’। सुनीता ने कहा, “हम यह देखकर अत्यंत व्याकुल और चिंतित हैं कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की शिक्षा देने वाले हमारे धर्म को ऐसे अतिवादियों और राष्ट्रवादियों ने अपहृत कर लिया है जो मुसलमानों की लिंचिंग कर रहे हैं, प्रजातंत्र को रौंद रहे हैं, कानून-व्यवस्था का मखौल बना रहे हैं और अपने खिलाफ आवाज उठाने वालों को गिरफ्तार कर रहे हैं और यहां तक कि उनका कत्ल भी करवा रहे हैं। इन दिनों कश्मीरी लोग जो भुगत रहे हैं उसका हमें बहुत क्षोभ है। देश में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) के नाम पर 19 लाख लोगों को राज्य-विहीन कर दिया गया है।‘’
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आज यह समझना मुश्किल हो गया है कि भारत आखिर किस दिशा में जा रहा है। हमारे प्रधानमंत्री अमरीका में जश्न मना रहे हैं जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था गड्ढ़े में जा रही है। लाखों श्रमिकों को अपनी आजीविका से हाथ धोना पड़ा है। आम लोग सरकार की नीतियों से पीड़ित हैं। सरकार को उनकी कोई चिंता नहीं है। सरकार के लिए तीन तलाक, अनुच्छेद 370 और एनआरसी जैसे मुद्दे कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। चर्चा है कि पूरे देश में एनआरसी और समान नागरिक संहिता लागू किए जाएंगे।
पिछले कुछ वर्षों में सरकार की प्राथमिकताओं और नीति-निर्माण की दिशा में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। हमारे गणतंत्र के शुरूआती सालों में हमने उद्योगों, विश्वविद्यालयों और विशाल बांधों से देश की नींव रखी। इसके पीछे सोच यही थी कि नागरिकों की आजीविका सबसे महत्वपूर्ण है। उन नीतियों के क्रियान्वयन में भले ही कमियां रहीं हों परंतु उनकी दिशा ठीक थी। उन नीतियों के कारण देश का औद्योगिक और कृषि उत्पादन बढ़ा, साक्षरता दर में सुधार आया, स्वास्थ्य संबंधी सूचकांक बेहतर हुए और देश की आर्थिक प्रगति हुई।
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उस समय पहचान से जुड़े मुद्दों को हाशिए पर रखा गया और उन्हें देश की नीतियों की दिशा को प्रभावित नहीं करने दिया गया। उस समय अधोसंरचना के विकास के चलते ही आज भारत वैश्विक आर्थिक शक्ति बन सका है। परंतु पिछले कुछ सालों से देश की दिशा बदल गई है। अब सरकार जनता की अभिभावक नहीं रह गई है। उसे इस बात से कोई लेनादेना नहीं है कि लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हो रही हैं या नहीं, बल्कि वह उन क्षेत्रों से हट रही है जो जनता की जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
राममंदिर आंदोलन को सीढ़ी बनाकर सत्ता तक पहुंची बीजेपी का यह दावा रहा है कि वह ‘पार्टी विथ ए डिफरेंस’ है। और अब तो सभी मान रहे हैं कि वह सचमुच ही एक अलग तरह की पार्टी है। हिन्दू राष्ट्रवाद उसका नीति निर्धारक और पथप्रदर्शक है। इस तरह का राष्ट्रवाद, धार्मिक पहचान और अल्पसंख्यकों के प्रति घृणा की भावना पर जिंदा रहता है। इससे जो ध्रुवीकरण होता है वह पूरी दुनिया में राष्ट्रवादी पार्टियों की चुनावों में मदद करता है। हाउडी मोदी जैसे कार्यक्रमों के शोर के बीच हम आम भारतीयों की समस्याओं की ओर देश का ध्यान कैसे आकर्षित करें, यह आज हमारे समक्ष उपस्थित सबसे बड़ा प्रश्न है।
(लेख का अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)
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