देश में कुपोषण कम करने से जुड़े सभी लोगों को साल 2017 में उस समय बहुत प्रसन्नता हुई थी, जब राष्ट्रीय पोषण मिशन आरंभ किया गया था। इसे केंद्रीय सरकार ने उच्चतम स्तर पर एक उच्च प्राथमिकता का मिशन बताया है। यह सब तो बहुत अच्छा है, पर एक गंभीर सवाल यह है कि क्या इस पोषण अभियान के अति प्रशंसनीय लक्ष्यों के अनुकूल संसाधन भी सरकार उपलब्ध करवा रही है, क्योंकि यदि पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं करवाए जाएंगे तो लक्ष्य बस लक्ष्य ही रह जाएंगे या उनपर लीपापोती करनी पड़ेगी।
राष्ट्रीय पोषण मिशन का लक्ष्य यह है कि कम वजन के बच्चों (0-6 वर्ष आयु वर्ग) की संख्या को अगले तीन वर्षों में 2 प्रतिशत वार्षिक दर से 6 प्रतिशत कम कर दिया जाए। साल 2022 तक इनका प्रतिशत कम कर 25 तक पहुंचा दिया जाए। एनेमिया से प्रभावित महिलाओं (15-49 वर्ष आयु वर्ग) और बच्चों (6 से 59 महीने आयु वर्ग) में भी मिशन के दौरान 3 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से कमी लाई जाए।
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यह महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है जिसके जरिये पहले दर्ज की गई धीमी प्रगति को अब तेज करना चाहते हैं। ये लक्ष्य बहुत अच्छे हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या इन्हें प्राप्त करने के लिए जरूरी संसाधन उपलब्ध होने वाले हैं?
नया राष्ट्रीय पोषण मिशन आरंभ होने के बावजूद खाद्य सब्सिडी सहित सभी पोषण स्कीमों के बजट को अगर मिला कर देखा जाए तो इनमें मात्र 11 प्रतिशत की वृद्धि है और इसमें भी कुछ महंगाई का अंश है। कुछ खाद्य निगम की बकाया राशि भी है। इसलिए वास्तविक वृद्धि दर बहुत कम है। इस स्थिति में राष्ट्रीय पोषण मिशन को अपने पहले वर्ष में तेज प्रगति के लिए जो विशेष संसाधन चाहिए वे कैसे मिल पाएंगे?
पिछले वर्ष समग्रीकृत बाल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत सप्लीमेंट्री (पूरक) पोषण कार्यक्रम के मूल्य मानदंडों को बढ़ा दिया गया था, जो बहुत जरूरी हो गया था। पर यदि अब इसके अनुकूल इस कार्यक्रम का पालन ठीक से करना है, तो इसके लिए लगभग 25000 करोड़ रुपए की जरूरत है। जबकि पूर्ण समग्रीकृत बाल विकास कार्यक्रम (कोर आईसीडीएस/आंगनवाड़ी सेवाएं) के बजट में महज 3000 करोड़ रुपए से भी कम की वृद्धि हुई है।
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के बजट की स्थिति भी इस दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण है। साल 2017-18 का संशोधित अनुमान 2594 करोड़ रुपए था, तो इस साल का बजट अनुमान 2400 करोड़ रुपए है, यानि 7.5 प्रतिशत की कटौती हुई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के बजट में भी 2.1 प्रतिशत की कटौती हुई है।
मिड-डे मील और ‘सबला’ योजनाओं का बजट बढ़ा तो है पर बहुत मामूली वृद्धि है जो शायद महंगाई का असर भी न दूर कर सके। ग्रामीण राष्ट्रीय पेयजल कार्यक्रम इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है कि इसके बजट में भी 0.7 प्रतिशत की कटौतीकी गई है। इसलिए कुल मिलाकर इस बारे में चिंता की स्थिति बनी हुई है कि केंद्र सरकार ने जो पोषण के बड़े लक्ष्य निधारित कर लिए हैं, आखिर वे कैसे प्राप्त होंगे।
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