विचार

होली व्यंग्यः अभी नहीं आया सही वाला समय, जिसे राजनीति में टाइमिंग कहते हैं!

वह सरकार ही क्या जो सही समय पर सरके। जिसको वह सही समय पर कदम उठाना कहती है, वह हमेशा गलत कदम होता है! सरकार के पास कई कदम होते हैं, कुछ सही समय पर उठाने वाले, कई उचित वक्त पर नहीं उठाने वाले और कई अनुचित कदम भी होते हैं जिन्हें उचित समय पर उठाया जाता है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

मंत्रिमंडल की तूफानी बैठक समाप्त हुई। मैराथन चर्चाओं का दौर थमा। कैबिनेट के सदस्य भीतर से बाहर आने लग गए। पत्रकारों का समूह दरवाजे पर था। कोई भी मंत्री कुछ कहने को तैयार नहीं। सभी अंदर से ही मुंह पर टेप लगाकर निकल रहे थे।

अचानक एक बे-टेप मंत्री उधर से गुजरा। वह अपने बड़बोलेपन और विवादास्पद बयानों के लिए मशहूर था। वह जब भी अपने श्रीमुख से कुछ भी उचारता था, तो वह अखबार, टीवी चैनल और सोशल मीडिया में धमाल मचा डालता। इसीलिए पत्रकार उसे वायरल मंत्री कहते थे। हालांकि उसके बयान कोरोना वायरस से भी अधिक संक्रामक और प्राणघातक हुआ करते थे। इसलिए पत्रकारों ने उसे ही घेरा कि यह विस्फोटक तो छेड़ते ही फट ही पड़ेगा। एक पत्रकार ने पूछा, ‘सर, मीटिंग का क्या नतीजा रहा?’

वह मंत्री बोला, ‘कुछ भी नहीं। सरकार उचित समय पर उचित कदम उठाएगी।’ फिर वह आगे अपनी सरकारी कार की ओर बढ़ गया। तभी एक और माननीय बाहर आते दिखे। पत्रकारों का वही प्रश्न। वह भी बोले, ‘आप लोग निश्चिंत रहिए। सरकार उचित समय पर उचित कदम उठाने वाली है।’ जब पांच माननीयों ने यही जवाब दिए, तो पत्रकार झल्ला उठे।

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तभी प्रमुख मंत्री बाहर आए। सभी पत्रकारों के नमस्कारों को मुस्कुराते हुए स्वीकार किया। ‘सर, आप ही कुछ कहिए। आज की बैठक में क्या निर्णय हुए?’ एक पत्रकार ने पूछा। ‘आपके मंत्री लोग तो कुछ बता ही नहीं रहे।’ इलेक्ट्रॉनिक चैनल की एक महिला पत्रकार ने अपना माइक्रोफोन आगे कर दिया। कैमरे चमक उठे। नोटबुक्स सावधान हो गईं। प्रमुख मंत्री तो बताएंगे ही। सबको पूर्ण विश्वास था।

प्रमुख मंत्री बोले, ‘प्रतीक्षा कीजिए। हमारी सरकार प्रचंड बहुमत की सरकार है। इसे सबका साथ और जनता जनार्दन का विराट विश्वास प्राप्त है। हमारी सरकार किसी भी आरोप-प्रत्यारोप से नहीं घबराती है। अति आत्मविश्वास ही हमारी पूंजी है। हम विपक्ष के हमलों से नहीं डरते हैं। हमें जो भी करना है, उसका एजेंडा क्लीयर है और वह अंदरूनी तौर पर आप सब को भी पता ही है। हम सही समय पर सही कदम उठाएंगे। या यूं समझ लीजिए कि बस उठाने ही वाले हैं।’

‘लेकिन वह सही समय कब आएगा?’ एक पुराने और मुंहलगे पत्रकार ने पूछा।

‘मैंने कहा न, प्रतीक्षा कीजिए।’ प्रमुख मंत्री बोले।

‘हम लोग पिछले दो घंटों से प्रतीक्षा ही तो कर रहे हैं।’

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‘और जब यह देश पिछले सत्तर सालों से प्रतीक्षा कर रहा था, तब आप उन लोगों से नहीं पूछ रहे थे, जो सत्ता में हुआ करते थे।’ पत्रकार समझ गए। प्रमुख मंत्री अपने पुराने तकिया कलाम पर उतर आए हैं। अब इन्हें इस वक्त कोई भी वापस पटरी पर लाने की जुर्रत नहीं कर सकता है। करेगा, तो उसकी नौकरी भी दांव पर लग सकती है।

पत्रकारों के बीच कानाफूंसी होने लग गई। कोई धीरे से बुदबुदाया, ‘अब यह इतिहास की गलतियों पर अवश्य उंगली उठाने वाले हैं।’ प्रमुख मंत्री ने अपनी नजरें उठाकर आवाज की दिशा में देखा। परंतु किस मुंह से यह आवाज निकली थी, वह समझ नहीं पाए। तब एक अन्य पत्रकार, हिम्मत को कफन की तरह खोपड़ी पर बांधते हुए, बोला, ‘सर, संवेदनशील मामला है। कुछ तो कहिए।’

‘हमारे लिए एक बाइट तो दे ही दीजिए।’ एक कम उम्र कैमरामैन का स्वर आया, ‘वह क्या है कि जब तक हम चौबीस में से बीस घंटे आपको और आपकी सरकार की यशोगाथा को अपने चैनल पर नहीं दिखला देते, हमारे चैनल और जनता दोनों का ही पेट नहीं भरता है। अब तो इस देश का बच्चा- बच्चा भगवान के बाद आपके ही नाम का गुणगान करता है।’

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मगर प्रमुख मंत्री इस तरह की मक्खनबाजियों से पिघलने वाले नहीं थे। उनमें वज्रादपि कठोरता कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनमें पत्थर के समान दृढ़ता थी जिसे खंडित करना सरल नहीं था। वह बोले, ‘मैंने बता तो दिया, वेट करिए। आप सबको सही समय पर सब कुछ पता हो जाएगा।’ फिर सहसा स्मरण हो आया कि वह कैमरों की जद में हैं, इस नाते हंसते हुए कहने लग गए, ‘दाई से कहीं पेट छिपता है। वेट कीजिए।’

वेट और पेट के तुकांत पर भीड़ में हर्ष ध्वनि का ज्वार आ गया। तालियां बजने लगीं। अवसर देखकर प्रमुख मंत्री मेन गेट की तरफ बढ़ गए। वे आगे। पत्रकारों का जत्था पीछे। बीच में सुरक्षाकर्मी। प्रमुख मंत्री पीछे घूमे। सबको अभिवादन किया और सबका अभिवादन लिया। वह सही समय पर अपने उचित कदमों के निशान छोड़कर अपनी कार में बैठे और चले गए।

एक पत्रकार ने हंसते हुए दूसरे से कहा, ‘जाने कब वह सही समय आएगा जब इनकी सरकार के उचित कदम उठेंगे।’

‘कदम हैं भाई, कोई आम आदमी के पांव थोड़े ही हैं कि तत्काल उठ जाएंगे। यह इस सरकार के पैर हैं। भारी हैं। इन्हें अंगद का पांव जान लो। ये इतनी आसानी से तो उठने से रहे।’ ‘वैसे भी भारी पांव कई महीनों के बाद ही उठ पाते हैं।’ दूसरे पत्रकार ने माहौल को हल्का-फुल्का बनाने की कोशिश करते हुए कहा।

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‘आखिरकार कितने भारी हैं इस सरकार के कदम?’ पहला पत्रकार सीरियस था, इसलिए वह भारी मन से बुदबुदाया। ‘उतने ही, जितने अभी अपने दिमाग भारी हो गए हैं। यहां घंटों से चट रहे हैं और एक पिद्दी-सी स्टोरी तक नहीं मिल पाई है।’ दूसरे ने कहा। ‘बड़ी ही घाघ है यह सरकार।’ तीसरा पत्रकार बात को आगे बढ़ाने की नीयत से बोला। ‘घाघ नहीं, गुरुघंटाल कहो। ये लोग वही बोलते हैं, जैसा इन्हें प्रशिक्षण दिया गया होता है। इनके लोगों से बातें उगलवाना गिरते हुए शेयर मार्केट में अपनी पूंजी को बचाने जैसा ही दुष्कर है।’ चौथे ने अपनी भड़ास निकालते हुए कहा।

मैं एक कोने में खड़ा था और यह मनोरम दृश्य देख रहा था। सबकी सुन रहा था। फिर मैं सोचने लगा, ‘यारो, वह सरकार ही क्या जो सही समय पर सरके। वैसे जिसको वह सही समय पर कदम उठाना कहती है, वह हमेशा ही गलत कदम होता है। तिस पर उचित कदम उठाने के दावे। तो क्या सरकार के अब तक जो भी उठ रहे थे, वे अनुचित कदम थे? क्या कोई सरकार कभी अनुचित कदम उठाती है या कदम उठाती भी है। कितने कदम होते होंगे सरकार के पास? कुछ सही समय पर उठाने वाले, कई उचित वक्त पर उठाने वाले और ढेर सारे अनुचित कदम भी तो होते हैं जिन्हें उचित समय पर उठाया जाता है। इसको राजनीति में ‘टाइमिंग’ कहा जाता है।’

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तो सरकार उचित अवसर पर आंखें गड़ाए रहती है। वह संकेतों में काम करती है। तंत्र इसे समझता है। ‘राणा की पुतली फिरी नहीं, तब तक चेतक मुड़ जाता था’, टाइप मामला होता है। इधर इशारेबाजी हुई। उधर कदम उठे। इसके बाद जो कुछ होता है, वह वर्णनातीत होता है। रामचरित मानस में इसी को कहा गया है- ‘भृकुटिविलास सृष्टिलय होई।’ कई कदम जानबूझकर नहीं उठाते हैं। जनता सोचती है, इतना कुछ हो गया और सरकार के कदम उठाने में इतना विलंब। इतनी देर में तो त्रेतायुग में रावण भी मशक्कत करता तो अंगद के पांव उठा चुका होता।

तो प्रश्न जहां था, वहीं पर खड़ा है। आगे बढ़ने का नाम नहीं है। जब कदम उठेंगे ही नहीं तो चलेंगे कैसे? चलेंगे नहीं तो फिर आगे बढ़ने का कोई प्रश्न ही नहीं है। सारे के सारे सवाल जस के तस खड़े हैं। टस से मस नहीं हो रहे। वे जवाब के इंतजार में हैं।

हे पत्रकारो, अपनी अंतरात्मा में झांको। वापस जाओ। किसी और बीट में जनसरोकारों के समाचार तलाशो। यहां से उचित कदमों की आस छोड़ो। अभी इस दर पर सही वाला समय नहीं आया है।

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