पिछले कुछ दशकों से भारत में सांप्रदायिक राजनीति का बोलबाला बढ़ा है। पाकिस्तान में इस तरह की राजनीति का वर्चस्व इससे कहीं अधिक समय से रहा है। इस तरह की राजनीति, इतिहास के विरूपण के आधार पर फलती-फूलती है। इतिहास का उपयोग 'दूसरे' समुदाय के खिलाफ नफरत का भाव पैदा करने के लिए किया जाता है। भारत में इस मामले में मुस्लिम निशाने पर रहते हैं और पाकिस्तान में हिन्दू।
इन आख्यानों में मध्यकालीन राजाओं को गैर-अनुपातिक महत्व दिया जाता है। उद्धेश्य यह भाव पैदा करना होता है कि इन राजाओं ने जो कुछ किया उसके लिए उनके आज के धर्मावलंबी जिम्मेदार हैं। जहां तक भारत का सवाल है इस आख्यान में यह भी बताया जाता है कि हिन्दू, महान मुस्लिम राजाओं के गुलाम थे। इन आख्यानों के पैरोकार हमें यह सिखाते हैं कि हिन्दू और मुसलमान एकसार समुदाय थे और हैं, और राजाओं, बादशाहों और नवाबों के जीवन की चुनिंदा घटनाओं का प्रयोग उनके दानवीकरण या महिमामंडन के लिए किया जाता है।
Published: undefined
भारत में लोगों को यह पाठ पढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है कि मुस्लिम शासक अत्यंत क्रूर थे, उन्होंने देश पर इस्लाम का राज कायम करने की कोशिश की, हिन्दू मंदिरों को जमींदोज किया, तलवार की नोंक पर हिन्दुओं को मुसलमान बनाया और हिन्दू प्रजा पर घोर अत्याचार किए। मुस्लिम सांप्रदायिक आख्यान, मुस्लिम बादशाओं का महिमामंडन करता है, उनकी सफलताओं को इस्लाम की उपलब्धि बताता है और हिन्दुओं को एक कमजोर और डरपोक समुदाय के रूप में प्रस्तुत करता है।
आज जहां देश में बहुसंख्यकवादी सांप्रदायिकता अपने चरम पर है, वहीं मुस्लिम सांप्रदायिक तत्व, जिनकी संख्या और ताकत बहुत कम है, भी बाज नहीं आ रहे। एआईएमआईएम के शौकत अली का एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसमें वे कह रहे हैं कि, "मुसलमानों ने इस देश पर 832 साल तक राज किया। हिन्दू इन मुस्लिम राजाओं के आगे हाथ जोड़कर दंडवत करते रहे। मुसलमानों ने जोधाबाई को भारत की साम्राज्ञी बनाया।" उनके इस वक्तव्य से ऐसा लगता है कि वे मानते हैं कि मुसलमानों ने हिन्दुओं पर कई शताब्दियों तक राज किया और हिन्दू महिलाओें का उपभोग किया।
Published: undefined
इस तरह का प्रचार और समझ, सांप्रदायिक इतिहास लेखन का नतीजा है, जिसे अंग्रेजों ने 'बांटो और राज करो' की अपनी नीति के तहत भारत में शुरू किया था। अंग्रेजों को पता था कि अगर उन्हें भारत को बांटना है तो इसका सबसे बेहतर तरीका होगा भारत के दो मुख्य धर्मों- हिन्दू और इस्लाम के मानने वालों के बीच खाई खोदना। जेम्स मिल ने सन् 1818 में अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ इंडिया' से इतिहास को धार्मिक और सांप्रदायिक चश्मे से प्रस्तुत करने की शुरूआत की। इस पुस्तक में भारतीय इतिहास को तीन कालों में विभाजित किया गया- पहला, प्राचीन हिन्दू काल, दूसरा, मध्यकालीन मुस्लिम काल और तीसरा आधुनिक ब्रिटिश काल। यह दिलचस्प है कि जहां मिल ने प्राचीन और मध्यकालीन शासकों को उनके धर्म से जोड़ा वहीं उन्होंने ब्रिटिश शासन को 'ईसाई काल' नहीं बताया।
सांप्रदायिक इतिहास लेखन को इलियट और डाउसन अपनी 8 खंडों की रचना 'हिस्ट्री ऑफ इंडिया एज टोल्ड बाय इट्स हिस्टोरियन्स' से आगे ले गए। यह पुस्तक विभिन्न शासकों के दरबारियों की रचनाओं पर आधारित थी। जाहिर है कि दरबारी अपने आका का महिमामंडन करते थे और यह बताते थे कि संबंधित बादशाह या राजा अपने धर्म के लिए क्या कुछ कर रहा है। हर धर्म के राजाओं का लक्ष्य अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार और अपनी सत्ता को मजबूत करना था। परंतु अंग्रेजों ने भारत का जो इतिहास लिखा इससे ऐसा मालूम होता था मानो सभी शासक अपने-अपने धर्मों के ध्वजवाहक थे और अपने धर्म को आगे बढ़ाना ही उनका एकमात्र लक्ष्य था।
Published: undefined
इसके अलावा, इतिहास की चुनिंदा घटनाओं को गैर-आनुपातिक महत्व दिया गया। जैसे यह तो बताया गया कि मुस्लिम शासकों ने हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त किया परंतु यह छिपा लिया गया कि कई हिन्दू राजाओं ने भी हिन्दू मंदिरों को नष्ट किया और यह भी कि कई मुस्लिम बादशाहों ने हिन्दू मंदिरों को दान दिया।
इस इतिहास में जो सबसे महत्वपूर्ण बात छिपाई गई वह यह थी कि हिन्दू और मुसलमान राजाओं के प्रशासन और सेना में दोनों धर्मों के लोग हुआ करते थे। अकबर की सेना के सेनापति राजा मानसिंह थे और बीरबल और टोडरमल, अकबर के नवरत्नों में शामिल थे। शिवाजी और औरंगजेब के बीच लंबी लड़ाई हुई, परंतु शिवाजी की सेना के सिपहसालार मुस्लिम थे और औरंगजेब के सेनापति राजा जयसिंह थे।
Published: undefined
भारत में इस्लाम के फैलाव को मुस्लिम राजाओं से जोड़ा जाता है। परंतु यह कहीं नहीं बताया जाता कि नीची जातियों के हिन्दुओं ने क्रूर और भयावह जाति प्रथा के चंगुल से निकलने के लिए इस्लाम को अपनाया। यह बात स्वामी विवेकानंद ने भी कही है। शौकत अली गर्वित हैं कि एक हिन्दू महिला जोधाबाई का विवाह एक मुस्लिम राजा से हुआ। परंतु वे यह भूल जाते हैं कि उस समय राजाओं द्वारा उन शासकों की पुत्री/बहिन से शादी करना आम था जिनसे वे राजनैतिक संधियां करते थे।
सांप्रदायिक इतिहास लेखन से परे एक दूसरा आख्यान भी है, जिसे हम 'राष्ट्रीय इतिहास लेखन' कह सकते हैं। रोमिला थापर, हरबंस मुखिया और इरफान हबीब सहित अनेक मेधावी अध्येताओं ने इस पर काम किया है, परंतु वे तनखैया घोषित कर दिए गए हैं। इनके पहले महात्मा गांधी (हिन्द स्वराज) और जवाहरलाल नेहरू (डिस्कवरी ऑॅफ इंडिया) ने असली इतिहास को हमारे सामने प्रस्तुत किया है। इस इतिहास में विभिन्न समुदायों के बीच मेलजोल और उसके सामाजिक और राजनैतिक निहितार्थों पर चर्चा की गई है।
Published: undefined
हिन्द स्वराज में गांधी लिखते हैं, "मुस्लिम शासकों के राज में हिन्दू फले-फूले और हिन्दुओं के राज में मुसलमान। दोनों पक्षों को यह अहसास था कि आपस में लड़ना दोनों के लिए आत्मघाती होगा और यह भी कि दोनों में से कोई भी मौत के डर से अपना धर्म नहीं छोड़ेगा। इसलिए दोनों ने शांतिपूर्वक एक-दूसरे के साथ रहने का निर्णय लिया। अंग्रेजों के आने के साथ उनके बीच विवाद और संघर्ष शुरू हो गए.... क्या हमें यह याद नहीं रखना चाहिए कि कई हिन्दुओं और मुसलमानों के पूर्वज एक ही हैं और उनकी नसों में एक सा खून बह रहा है? क्या लोग केवल इसलिए एक-दूसरे के दुश्मन बन जाएंगे क्योंकि उन्होंने अलग-अलग धर्म अपना लिए हैं? क्या मुसलमानों का ईश्वर हिन्दुओं के ईश्वर से अलग है? धर्म तो दरअसल एक ही लक्ष्य पर ले जाने वाले अलग-अलग रास्ते हैं। अगर हम एक ही मंजिल पर पहुंचने वाले हैं तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि हमने कौन सा रास्ता चुना है? इसमें आपस में लड़ने जैसी क्या बात है?"
Published: undefined
इसी तरह 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' में नेहरू लिखते हैं, "भारत एक प्राचीन किताब की तरह था जिस पर एक के बाद एक नए विचारों की पर्तें चढ़ती गईं परंतु कोई भी पर्त अपने नीचे की पर्त में जो कुछ लिखा गया था उसे न तो पूरी तरह मिटा सकी और न छुपा सकी.... बाहर से देखने पर ऐसा लग सकता है कि हमारे लोगों में विविधता है और असंख्य तरह के नागरिक हमारे देश में रहते हैं। परंतु हर जगह हम एकता की एक छाप देख सकते हैं जिसने अतीत में हम सबको एक रखा। फिर चाहे हमारे ऊपर कितनी ही मुसीबतें क्यों न आईं हों।"
स्वाधीनता आंदोलन और उसके काफी लंबे समय बाद तक भी यह 'राष्ट्रवादी इतिहास' प्रमुख विमर्श बना रहा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले तीन-चार दशकों से सांप्रदायिक विमर्श हम पर हावी हो गया है और धर्म के आधार पर हमारे नागरिकों को ध्रुवीकृत किया जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर हालात ऐसे ही बने रहे तो देर-सबेर हम दूसरा पाकिस्तान बन जाएंगे।
(लेख का अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined