विचार

खरी-खरी: हिन्दू समाज को एक और विवेकानंद की आवश्यकता

जब हिन्दू धर्म के नाम पर मानव संहार अथवा महिला नीलामी की बात उठ खड़ी हो, तो फिर उस समाज को अपने मन में झांक कर देखने की आवश्यकता होनी चाहिए। कारण यह कि दुनिया का कोई भी धर्म नरसंहार या महिलाओं की बोली लगाने जैसे अश्लील विचार की अनुमति दे ही नहीं सकता है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

इस लेख को लिखने बैठा तो स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस के अवसर पर मेरे मन में विचार आया कि क्यों न इस सप्ताह हिन्दू धर्म के विषय में कुछ लिखा जाए क्योंकि जिस प्रकार स्वामी विवेकानंद के शिकागो में सन 1893 में एक भाषण ने हिन्दू धर्म में चिंतन-मनन का एक नया मार्ग उत्पन्न कर दिया था, उसी प्रकार एक बार फिर से हिन्दू समाज के लिए धर्म के संबंध में चिंतन का अवसर उठ खड़ा हुआ है। मैं हिन्दू धर्म का ज्ञानी नहीं हूं, न ही मैं वेद-पुराण या अन्य हिन्दू धर्मों का स्कॉलर हूं। परंतु जब हिन्दू धर्म के नाम पर मानव संहार अथवा महिला नीलामी की बात उठ खड़ी हो, तो फिर उस समाज को अपने मन में झांक कर देखने की आवश्यकता होनी चाहिए। कारण यह कि दुनिया का कोई भी धर्म नरसंहार अथवा महिलाओं की बोली लगाने जैसे अश्लील विचार की अनुमति दे ही नहीं सकता है। धर्म तो आत्मा की शुद्धि एवं मोक्ष का विषय है। भला किसी भी धर्म में हिंसा अथवा महिलाओं के प्रति अश्लील विचार का कोई भी स्थान कैसे हो सकता है। वह भी हिन्दू धर्म में जिसमें शांति धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। हिन्दू धर्म संसार में वह अकेला धर्म है जिसमें महिलाओं को भगवान का रूप दिया गया है। वह लक्ष्मी हो या दुर्गा अथवा सीता, यह सब धर्म के अनुसार पूजनीय हैं। ऐसे में धर्म के नाम पर महिलाओं की बोली लगवाई जाए, यह पूरे हिन्दू समाज के लिए गंभीर चिंता का अवसर है।

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मेरे अपने विचार में पिछले कुछ समय से हिन्दू धर्म के नाम पर बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो कि धर्म नहीं अपितु घोर राजनीति है। और जब धर्म राजनीति का रूप ले लेता है, तो वह धर्म स्वयं अपने समाज के विनाश का माध्यम बन जाता है। यह बात मेरी समझ में मुस्लिम समाज के पतन को देख कर आती है। आज भारत वर्ष का मुसलमान जैसी असह्य स्थिति में है, वैसा मुस्लिम समाज पहले कभी नहीं था। कहने को यह कहा जा सकता है कि इसका कारण भारतीय जनता पार्टी एवं संघ की मुस्लिम विरोध की राजनीति है।

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परंतु मुख्य प्रश्न यह है कि जिस मुस्लिम समाज का इस देश पर लगभग एक हजार वर्षों तक वर्चस्व रहा, वही मुस्लिम समाज केवल पचास-साठ वर्षों में ऐसी दयनीय अवस्था में कैसे आ गया। इसके बहुत सारे कारण हो सकते हैं। परंतु मेरे विचार में इसका मुख्य कारण यह है कि भारतीय मुसलमान ने जब इस्लाम धर्म को राजनीति का रूप दे दिया, तो बस वहीं से मुस्लिम समाज का पतन शुरू हो गया। और इसका श्रेय मुख्यतया मुस्लिम इतिहास में दो व्यक्तियों को जाता है। वे हैं औरंगजेब एवं मोहम्मद अली जिन्ना।

औरंगजेब ने सम्राट अकबर की सेकुलर राजनीति का मार्ग छोड़कर एक कट्टरपंथी इस्लामी राजनीति का मार्ग चुना। बस, वहीं से मुगल शासन के पतन का आरंभ हो गया। इसी प्रकार मोहम्मद अली जिन्ना ने आजादी से पूर्व भारतीय मुस्लिम राजनीति को हिन्दू- मुस्लिम बंटवारे के मार्ग पर डाल कर भारतीय मुस्लिम समाज के पतन की नींव रख दी। बंटवारे ने मुस्लिम समाज को न केवल पांच-छह दशकों के भीतर संपूर्णतया असहाय बना दिया, अपितु संघ की हिन्दुत्व राजनीति को अपार शक्ति एवं मान्यता प्रदान कर दी। आज भारतीय हिन्दू समाज हिन्दुत्वमय है और मुस्लिम समाज के प्रति देश में घृणा का सैलाब है। यह नतीजा है जिन्ना की धर्म के आधार पर बंटवारे की राजनीति का जिसमें संघ की बंटवारे की राजनीति को संभावित कर दिया और अंततः मुस्लिम समाज को अपंग बना दिया।

जिन्ना की धर्म की राजनीति की क्षति केवल हिन्दुस्तानी मुसलमान ही नहीं झेल रहा है। स्वयं बंटवारे के आधार पर जिन्ना ने जिस इस्लामी देश पाकिस्तान को जन्म दिया, वह पाकिस्तान भी सात दशकों बाद संसार के सबसे पिछड़े देशों की पंक्ति में खड़ा है। जिन्ना के बाद जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान को एक कट्टरपंथी इस्लामी जिहादी स्वरूप दिया और उस जिहादी राजनीति ने देश की ऐसी गत बना दी कि पाकिस्तान सभ्य समाज में लगभग अछूत हो गया। यह सब कुछ फल है जिन्ना की धार्मिक राजनीति का। केवल एक पाकिस्तान ही क्या, अपने को इस्लामी राज्य कहने वाले लगभग सभी देशों का यही हाल है। सऊदी अरब के पास तेल की दौलत की भरमार है परंतु कट्टरपंथी वहाबी राजनीति ने देश को प्रगति के मार्ग से दूर कर दिया है। यही हाल तेल में डूबे अधिकांश अरब मुस्लिम देशों का है। लब्बोलुबाब यह कि इस्लामी कट्टरपंथी राजनीति का खामियाजा सबसे अधिक स्वयं मुस्लिम समाज भुगत रहा है।

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भारत वर्ष के हिन्दू समाज को स्वयं इस देश के मुस्लिम समाज एवं पड़ोसी पाकिस्तान की दुर्दशा से सबक लेना चाहिए। अरे, इस समाज ने तो सन 1947 में ही बंटवारे एवं धर्म की राजनीति छोड़कर आधुनिकता का मार्ग चुना था। गांधी जी, नेहरू एवं आम्बेडकर जैसे नेताओं के नेतृत्व में हर धर्म को सम्मानित मानकर धर्म को भारतीय नागरिकों के एक निजी विषय का रूप दिया। देश के हर धर्म के नागरिक को बराबर के अधिकार देकर धर्म से परे आधुनिकता का मार्ग चुना। इसी मार्ग पर चलकर भारत केवल सत्तर वर्षों में संसार की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। देखते- देखते हम संसार के एक सम्मानित देश की पंक्ति में पहुंच गए।

परंतु सन 2014 से अब तक केवल सात वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था समस्याओं में घिर गई है। इस देश में बेरोजगारी का सैलाब है। भले ही हम कोविड वैक्सीन के गुणगान कर रहे हों परंतु सत्य यह है कि इस महामारी के समय हमारी सरकारें मरीजों को ऑक्सीजन तक मुहैया नहीं करवा पाईं। नतीजा यह हुआ कि लाखों लोग मारे गए। इसका कारण यह है कि हमने गांधी-नेहरू का मार्ग छोड़कर पाकिस्तान के समान धर्म को राजनीति का रूप दे दिया।

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यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि आज भारतवर्ष अपने पड़ोसी पाकिस्तान जैसा दिखाई पड़ता है। यदि पाकिस्तानी मुल्ला जिहाद का नारा देता है, तो हमारे साधु-संत मुस्लिम नरसंहार का आह्वान कर रहे हैं। क्या यह हिन्दू जिहादी राजनीति नहीं है? समाज में मुस्लिम घृणा का जहर इतना घोल दिया गया है कि नौजवान हिन्दू-मुस्लिम महिलाओं की नीलामी का ऐप बना रहे हैं। पाकिस्तान में मुल्ला जबरदस्ती हिन्दू महिलाओं को मुसलमान बना रहे हैं, तो घर वापसी के नाम पर हमारे देश में मुसलमानों का हिन्दूकरण हो रहा है।

यह सब कुछ धर्म को राजनीति से जोड़ देने का नतीजा है। इस राजनीति से भले ही भाजपा को सत्ता प्राप्ति का लाभ मिल रहा हो परंतु वास्तविकता में सबसे अधिक हानि स्वयं हिन्दू समाज की हो रही है। इस राजनीति ने देश की अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न कर दी। इसकी क्षति सबसे अधिक हिन्दू समाज को भुगतनी पड़ी। लॉकडाउन के बाद बेरोजगारी फैली तो स्वाभाविक है कि सबसे अधिक हिन्दू नौजवान बेरोजगार हुआ। यदि दुकानें और धंधे बंद हुए तो उनको भी चलाने वाले अधिकांश हिन्दू ही थे। जैसे पाकिस्तान की कट्टरपंथी इस्लामी राजनीति का निशाना स्वयं वहां का मुसलमान है, वैसे ही हिन्दुत्व राजनीति से क्षति सबसे अधिक हिन्दू समाज की है।

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क्या यह हिन्दू समाज के लिए चिंता का विषय नहीं है। निःसंदेह केवल भारतवर्ष ही नहीं, अब तो समस्या सबसे अधिक हिन्दू भारतीयों के लिए उत्पन्न हो रही है। उसके धर्म की आड़ में अटपटी बातें हो रही हैं और दुनिया भर में लज्जित हिन्दू हो रहा है। अब समय आ गया है कि स्वामी विवेकानंद के समान कोई खड़ा होकर हिन्दू समाज को धर्म की राजनीति से परे कर दे। क्योंकि अब इसके निशाने पर स्वयं हिन्दू समाज ही नहीं अपितु सदियों पुराना ऋषि-मुनियों एवं संतों का सनातन धर्म भी है।

भाजपा में भगदड़

अब तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के विरुद्ध आंधी नहीं, एक तूफान पनप रहा है। मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान सहित चार और भाजपा विधायकों का भाजपा छोड़कर जाना कुछ ऐसा ही संकेत है। बात यह है कि भाजपा को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पांच वर्षीय ठाकुरवादी शासन अधिक भारी पड़ रहा है। मौर्य का भाजपा छोड़ना इस बात का भी संकेत है कि पिछड़ी जातियों में भाजपा के प्रति रोष है। चुनाव के समय भगवाकरण से ये जातियां मोदी जी से मोहित तो हो गईं और पिछले दो चुनाव 2017 के विधानसभा और 2019 में लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट डाल बैठीं। परंतु योगी जी ने विशुद्ध हिन्दुत्व राजनीति कर पिछड़ों एवं दलितों को इस हद तक रगड़ दिया कि चुनाव आते-आते यह जातियां बाप-बाप कर बैठीं। चुनाव की घोषणा होते ही अब जनता का समय है। और अब जनता के प्रतिनिधि बोल रहे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है टिकट बटते-बटते कहीं भाजपा में भगदड़ न मच जाए। आगे-आगे देखिए होता है क्या!

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