पाठक इस बात को जानते हैं कि पिछले सप्ताह या गुजरे सप्ताह अडानी समूह की कंपनियों के शेयर धड़ाम हो गए। इनकी कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई। निवेशकों ने दरअसल अमेरिका की निवेश फर्म हिंडरबर्ग की एक रिपोर्ट के आधार पर शेयरों में बिकवाली की। इस रिपोर्ट में अडानी समूह की कार्यप्रणाली पर बहुत ही गहन अध्ययन के बाद कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। हिंडनबर्ग ने अडानी के शेयरों पर बिकवाली की यानी शेयर बाजार की भाषा में कहें तो उसने शॉर्ट पोजीशन ली। इसका अर्थ है कि अगर अडानी समूह के शेयरों की कीमत गिरती है तो उसे फायदा होगा। इस तरह कहा जा सकता है, जैसा कि अडानी ग्रुप ने संकेत भी दिया है कि इस रिपोर्ट और उसके कारण शेयरों में गिरावट के पीछे हिंडनबर्ग के निहित स्वार्थ हैं। इसके विपरीत यह भी जानना चाहिए कि हिंडनबर्ग ने जो कुछ किया है उसमें उसकी वास्तविक हिस्सेदारी है और उसने एक सही कदम उठाया है।
लेकिन एक और बात है, वह यह कि भारतीय म्यूचुअल फंड्स ने अडानी समूह में निवेश नहीं किया है। लेकिन सरकारी नियंत्रण वाली लाइफ इंश्योरेंस कार्पोरेशन (एलआईसी) ने टैक्सपेयर्स के करीब 75,000 करोड़ रुपए अडानी में निवेश किए हैं। इसलिए यह जानना भारतीयों का हक है और महत्वपूर्ण है किआखिर अडानी के खिलाफ क्या आरोप लगाए जा रहे हैं। मैं इन्हीं पर बात कर रहा हूं कि आखिर बड़े मुद्दे हैं क्या।
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सबसे पहली बात तो यह है कि विदेशी (ऑफशोर) कंपनियां, जोकि पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाली कंपनियों का एक समूह है, उनके पास अडानी समूह की कंपनियों के अधिकांश नॉन-प्रोमोटर शेयर (ऐसे शेयर जो कंपनी के प्रोमोटर या मालिकों के अलावा होते हैं) हैं। अगर ऐसा होना साबित होता है, तो इसका अर्थ होगा कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, या सेबी द्वारा इन कंपनियों को डीलिस्ट यानी शेयर बाजार से बाहर कर दिया जाएगा। अगर प्रोमोटर्स के पास अपनी कंपनी के अधिकांश शेयर होते हैं, तो वे सप्लाई को सख्ती से नियंत्रित करके शेयरों की कीमत में हेरफेर कर सकते हैं। क्या ऐसा हो रहा है, और क्या इसके कोई प्रमाण हैं?
पिछले साल ब्लूमबर्ग ने एक रिपोर्ट में बताया था कि अडानी समूह की कंपनियों का साझा मूल्य 255 अरब डॉलर है, जबकि “इन सभी कंपनियों (शेयर बाजार में मौजूद सात कंपनियां) की कुल साझा कमाई 2 अरब डॉलर से भी कम है।“ यह भी बताया था कि “अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के शेयरों में बीते तीन साल के दौरान 4500 फीसदी का उछाल देखने को मिला।” इस तरह अडानी जोकि हाल तक दुनिया के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति थे, की कुल संपत्ति या दौलत इन कंपनियों के बाजार मूल्य के आधार पर आंकी गई न कि इन कंपनियों की असली कमाई के आधार पर।
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अडानी समूह का कुल रेवेन्यू यानी राजस्व 2019 में 15,500 करोड़ रुपए, 2020 में 16,200 करोड़ रुपए, 2021 में 13,358 करोड़ रुपए और फिर 2022 में 26,800 करोड़ रुपए रहा। इनका कुल मुनाफा 2020 में 698 करोड़, 2021 में गिरकर 368 करोड़ और 2022 में बढ़कर 720 करोड़ रुपए रहा। बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, “यह वह मुनाफा नहीं है जो इससे 300 या 600 गुना अधिक बाजार मूल्य वाली कंपनियों से अपेक्षित होता है, ये ऐसे आंकड़े हैं जो किसी ग्रोथ की संभावना वाले छोटे स्टार्टअप के तो हो सकते हैं, न कि ऐसी कंपनियों के जो पूंजी वाली बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के।”
हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में जिन कंपनियों का जिक्र किया है, ऐसा लगता है कि उनकी स्थापना सिर्फ और सिर्फ अडानी समूह के शेयर ही खरीदने के लिए की गई है। उदाहरण देखिए, रिपोर्ट में एक कंपनी इलारा का नाम है, जिसके पास अडानी समूह के कुल 3 अरब डॉलर के शेयर हैं, इसके पास एक फंड भी जिसके कुल निवेश का 99 फीसदी अडानी में हैं।”
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संसद को बताया गया है कि अडानी की कंपनियों या इस फंड की प्रवर्तक निदेशालय यानी ईडी द्वारा कोई जांच नहीं की जा रही है। बता दें की ईडी ही मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की जांच करती है। सरकार ने 2021 में कहा कि सरकार अजानी समूह में कुछ प्रक्रिया संबंधी मामलों को देख रही है और डीआरआई (डारेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस) अडानी समूह की कुछ कंपनियों की जांच कर रहा है। लेकिन इस जांच में अभी तक कुछ निकलकर नहीं आया है।
यहां तक कि जब ब्लूमबर्ग न्यूज ने खबर दी कि संसद में सरकार ने इस फंड को चलाने वालों के जो नाम दिए उनके पते उसे नहीं मिल सके। ये नाम थे मार्कस बीट डेंजेल, एना लूजिया वॉन सेंजर बर्गर और एलेस्टर गगेनबूशी ईवन और योंका ईवन गूगेनबूशी आदि। इसकी तुलना जरा सरकार के राजनीतिक विरोधियों और उससे असहमति रखने वालों पर हो रही कार्रवाई से करके देखिए जिनके मामले में छापे, खाते फ्रीज करना और यहां तक कि गिरफ्तारियां तक शामिल हैं।
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इसी तरह कार्पोरेट गवर्नेंस के मामले में भी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कुछ गंभीर बातें सामने रखी गई हैं। मसलन अडानी एंटरप्राइज एक लिस्टेड कंपनी है और हाल ही में इसने बाजार से फिर 20,000 करोड़ जुटाने के लिए एफपीओ पेश किया है। इस कंपनी का एक स्वतंत्र ऑडिटर है जिसका नाम है शाह धंधारिया, जिसके चार साझीदार यानी पार्टनर हैं, लेकिन इस ऑडिट कंपनी में सिर्फ 11 कर्मचारी हैं। हिंडनबर्ग का कहना है कि यही फर्म अडानी टोटल गैस का भी ऑडिट करती है।
एक और बात जानने वाली है, वह यह कि इस किस्म के आरोप दूसरी प्रतिष्ठित न्यूज एजेंसियां भी लगाती रही हैं लेकिन सरकार के कान पर उससे भी जूं नहीं रेंगी। फाइनेंशियल टाइम्स ने नवंबर 2020 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसका शीर्षक था, ‘मोदीज रॉकफेलर’- गौतम अडानी और भारत में सत्ता का केंद्रीकरण...इस रिपोर्ट में बताया गया था कि “अडानी समूह को एयरपोर्ट प्रबंधन के क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं था फिर भी इस कंपनी को 2018 में जिन 6 एयरपोर्ट का निजीकरण किया गया वह सभी अडानी समूह को देने के लिए नियमों मे बदलाव किया गया। और इसके बाद देखते-देखते श्री अडानी देश के सबसे प्राइवेट एयरपोर्ट ऑपरेटर बन गए। इसी तरह वह देश के सबसे बड़े पोर्ट (बंदरगाह) ऑपरेटर और ताप बिजली कोयला उत्पादक भी बन गए। इसके अलावा अडानी समूह की हिस्सेदारी बिजली प्रसारण (पॉवर ट्रांसमिशन) गैस वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) बाजार में भी बढ़ती जा रही है।“
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अडानी समूह की कंपनियों पर लगे आरोपों पर इस समूह की कंपनियों के शेयरों में गिरावट के बाद भी अभी तक सरकार एकदम खामोश है। हो सकता है कि वह शेयर कीमतों के स्थिर होने का इंतजार कर रही हो ताकि इस विषय में शुरु हुई चर्चा शांत हो जाए। ऐसा हो भी सकता है और अगर इस बारे में कुछ भी सामने नहीं आता है तो भी हमें हैरानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि पूर्व में भी ऐसा हो चुका है।
लेकिन हिंडनबर्ग रिपोर्ट में सरकार, उसकी आर्थिक योजनाओं, खासकर अडानी जैसे समूहों पर केंद्रित आर्थिक नीतियों, क्रोनी कैपिटलिज्म और कानून के शासन को लेकर कुछ महत्वपूर्ण और अहम सवाल उठाए गए हैं। और इन सबका कोई जवाब अभी तक नहीं है।
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद अडानी समूह ने संकेत दिए हैं कि वह हिंडनबर्ग पर मुकदमा करेगा, जिसके जवाब में हिंडनबर्ग ने भी कहा है कि मुकदमा अमेरिका में करना जहां वह कंपनी से इससे संबंधित दस्तावेज पेश करने का आग्रह करेगी। उम्मीद करें कि यह मुकदमा दर्ज होगा और काफी कुछ स्पष्ट होगा।
(ये निजी विचार हैं। लेखक एम्नेस्टी इंडिया के प्रमुख हैं)
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