हिमाचल प्रदेश की सरकार अपने अनुचित निर्णयों से न केवल अपने राज्य में अपितु देश के अन्य भागों में भी शराब के नशे की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही है।
ध्यान रहे कि हिमाचल प्रदेश में ग्रामीण महिलाएं अनेक बार शराब-विरोधी आंदोलन कर चुकी हैं। जब दूर-दूर के गांवों में शराब के ठेके खोले जाते हैं तब शराब की खपत इन गांवों में बढ़ जाती है। इससे स्वास्थ्य की तबाही के साथ आर्थिक तबाही होती है। इतना ही नहीं, नशे में महिलाओं के विरुद्ध तरह-तरह की हिंसा भी बढ़ने लगती है। यही वजह है कि दूर-दूर के गांवों ने बहुत हिम्मत कर कई बार शराब का नशा फैलाने वाले ठेकों का विरोध किया।
पर हाल ही में हिमाचल प्रदेश की सरकार के जिन निर्णयों के समाचार प्रकाशित हुए हैं वे तो और भी खतरनाक हैं। पहला समाचार यह प्रकाशित हुआ कि सेब, बुरांस, प्लम जैसे पौष्टिक फलों का उपयोग अब बड़े पैमाने पर शराब बनाने के लिए किया जाएगा। इसके लिए एक निजी कंपनी से अनुबंध किया गया कि वह इस फ्रूट वाइन को देश में जगह-जगह पर बेचे। इतना ही नहीं, उसे इस कार्य के लिए सार्वजनिक उपक्रम की मशीनें भी उपलब्ध करवाई जाएंगी।
दूसरा समाचार जो 1 मई को प्रकाशित हुआ है वह और भी चिंताजनक है। उसमें बताया गया है कि फलों के साथ कांगड़ा की मशहूर चाय पत्ती का उपयोग भी शराब बनाने के लिए किया जाएगा और इसे टी वाइन के नाम से देश में जगह-जगह बेचने के लिए एक कंपनी से अनुबंध किया गया है। इसमें सरकार भी कमाएगी और कंपनी भी। एक सार्वजनिक उपक्रम के वैज्ञानिक इस कार्य में जुट गए हैं कि टी वाइन बना कर पूरे देश में फैलाई जाए। विज्ञान अनुसंधान के सीमित संसाधनों का यह घिनौना दुरुपयोग है।
चाय हमारे देश का सबसे प्रचलित पेय है। यदि चाय से मिलती-जुलती चायपत्ती के उपयोग वाली और चाय के नाम वाली शराब बनाई जाएगी तो यह समझा जा सकता है कि इसका चाय जैसे पेय के नाम पर प्रचलन तेजी से बढ़ सकता है। इस तरह उन परिवारों में भी नशे का प्रवेश हो सकता है जहां अभी तक शराब वर्जित थी।
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इस षड़यंत्र को समझने के लिए विश्व स्तर पर शराब उद्योग की कुछ प्र्वृत्तियों को समझना जरूरी है। जब विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों के प्रचार-प्रसार के कारण रम, वोदका, व्हिस्की आदि ‘हार्ड लिक्वर’ की वृद्धि कुछ सीमित हो गई तब शराब उद्योग ने ‘रेड वाईन’ जैसे उत्पादों का यह मिथ्या प्रचार फैलाया कि यह स्वास्थ्य के लिए बुरी नहीं है। इस प्रचार का पर्दाफाश कुछ वर्षों में पूरी तरह हो गया और यह पता चल गया कि रेड वाइन में वे सभी दुष्परिणाम हैं जो शराब में सामान्यतः पाए जाते हैं। पर जब तक यह पर्दाफाश होता तब तक रेड वाइन के मिथ्या प्रचार से बहुत से लोग इसका सेवन अधिक मात्रा में कर चुके थे और उन्हें इसकी लत लग चुकी थी।
इसी तर्ज पर अब हमारे देश में फ्रूट वाइन और टी वाइन को फैलाने के कुप्रयास आरंभ हो रहे हैं। नागरिक संगठनों को चाहिए कि जन-अभियान, सत्याग्रह और शांतिपूर्ण विरोध द्वारा इन नशा फैलाने के कुप्रयासों को रोक दें।
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