राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान भारत सरकार की एक महत्त्वपूर्ण योजना रही है, जो केंद्र से सहयोग प्राप्त योजनाओं की श्रेणी में आती है। इसका उद्देश्य विभिन्न राज्यों में स्थित विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की शिक्षा में सुधार करना है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के इस उद्देश्य के लिए यह प्रमुख योजना रही है।
हाल ही में पेश केंद्र सरकार के बजट में बड़ी कटौती होने से इस योजना के लिए बहुत कठिनाई उत्पन्न होने की स्थिति बन रही है। इस अहम योजना में आश्चर्यजनक हद तक की कटौती हुई है जो लगभग 86 प्रतिशत की कटौती है। साल 2019-20 में इस स्कीम के लिए 2100 करोड़ रुपए का आवंटन था, लेकिन संशोधित अनुमान में इसे मात्र 1380 करोड़ रुपए कर दिया गया था। अब आगामी वित्त वर्ष 2020-21 में इसके लिए मात्र 300 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।
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इस चिंताजनक स्थिति को हम पिछले चार साल के बजट आवंटन से समझ सकते हैं। राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के लिए साल 2016-17 में 1,416 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था। इसी तरह साल 2018-19 में 1,393 करोड़ रुपये। वहीं, साल 2019-20 में इसके लिए बजट अनुमान 2,100 करोड़ रुपये रखा गया था, लेकिन बाद में 2019-20 के संशोधित अनुमान में इसे घटाकर 1,380 करोड़ कर दिया गया। अब चालू वित्त वर्ष के लिए पेश बजट में इसे एकदम घटाकर 300 करोड़ कर दिया गया है।
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ऊपर के विवरण से स्पष्ट है कि 2019-20 का बजट तैयार होने तक इस अभियान के महत्व को समझकर इसके बजट में महत्त्वपूर्ण वृद्धि की गई थी। पर साल 2019-20 के बीच में ही इसका संशोधित अनुमान बहुत कम कर दिया गया। इसे इसके पहले के वर्ष से भी कम कर दिया गया। पर सबसे बड़ी कटौती तो 2020-21 के बजट अनुमान में हुई है, जब इसका आवंटन मात्र 300 करोड़ रुपए कर दिया गया है। निश्चित तौर पर इसका प्रतिकूल असर उच्चतर शिक्षा पर पड़ेगा और यह चिंता का विषय है।
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लेकिन सवाल है कि इतनी बड़ी कटौती क्यों की गई। इस प्रश्न का उत्तर बजट भाषण में मिलना चाहिए था पर नहीं मिला। इसी योजना के अंतर्गत जो राशि अनुसूचित जातियों के लिए उपलब्ध थी, वह पहले 412 करोड़ रुपए थी और अब मात्र 50 करोड़ रुपए रह गई है। इसी तरह अनुसूचित जन-जातियों के लिए पहले 222 करोड़ रुपए उपलब्ध थे, जो अब मात्र 25 करोड़ रुपए रह गया है।
यह चिंताजनक स्थिति है और इसका उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता पर और कमजोर वर्गों की शिक्षा प्राप्त करने के अवसरों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। अतः इस योजना में हुई कटौती को रोकना चाहिए और इस योजना के लिए कम से कम उतना आवंटन तो होना चाहिए जितना पिछले वर्ष हुआ था।
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