इस समय भारत पूरी तरह से बंद है। सरकार, जनता और सामाजिक तथा अन्य संगठन, कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। देश में अब तक लगभग 5,000 लोग इस जानलेवा बीमारी से ग्रस्त हो चुके हैं और 125 के करीब अपनी जान गंवा चुके हैं। पिछले एक पखवाड़े के घटनाक्रम से देश की जनता हतप्रभ और भयभीत है। कहने की जरुरत नहीं कि इस मुसीबत से पिंड छुड़ाने के बाद भी देश में सामान्य स्थिति की बहाली में एक लंबा समय लगेगा।
इस त्रासदी के बीच मीडिया का एक बड़ा हिस्सा और सोशल मीडिया के स्वनियुक्त विद्वतजन कोरोना कहर के लिए एक धार्मिक संस्था, तब्लीगी जमात की एक भूल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सोशल मीडिया में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले संदेशों, विडियो और टिप्पणियों की बाढ़ आ गई है। इस कुत्सित और अत्यंत निंदनीय प्रयास का असर जमीन पर भी दिखाई देने लगा है। अरुणाचल प्रदेश सहित कई राज्यों में मुस्लिम ट्रक चालकों के साथ मारपीट की घटनाएं हुई हैं।
यहां बता दें कि तब्लीगी जमात कोई राजनैतिक संगठन नहीं है। यद्यपि इसकी स्थापना लगभग एक सदी पहले हुई थी, इसके बावजूद भारतीय मुसलमानों में इसके अनुयायियों की संख्या बहुत कम है। इस संस्था का उद्देश्य मुसलमानों को इस बात के लिए प्रेरित करना है कि वे इस्लाम का आचरण उसी तरह से करें जैसा कि पैगम्बर मोहम्मद साहब के दौर में किया जाता था।
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जमात दूसरे धर्म के लोगों को मुसलमान बनाने का प्रयास नहीं करती बल्कि जो पहले से ही मुसलमान हैं उन्हें उस राह पर चलने के लिए कहती है, जो उसकी दृष्टि में सही है। जमात का वास्ता दुनियावी जिंदगी से नहीं बल्कि जन्नत और जहन्नुम से है। हां, कभी कुछ राजनैतिक मुद्दों पर वह अपनी राय देती रहती है। जैसा कि हाल में उसने सीएए का समर्थन करके किया था।
बीते कुछ दिनों से ऐसा कहा जा रहा है कि देश में कोविड19 के मरीजों में से एक-तिहाई, तब्लीगी जमात की वजह से इसके शिकार बने हैं। जमात ने दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित अपने मुख्यालय मरकज़ में 13 से लेकर 15 मार्च तक एक आयोजन रखा था। उसमें भारत के विभिन्न राज्यों के अलावा, दुनिया के कई देशों के लोग शामिल हुए। इसके पहले, इसी तरह का आयोजन मलेशिया में किया गया था और संभवतः वहीं से तब्लीगी जमात के सदस्य यह वायरस लेकर भारत पहुंचे।
यहां यह भी बता दें कि जो लोग इस आयोजन में शामिल थे, वे अनधिकृत रूप से देश में नहीं घुसे थे। उन्होंने सभी आवश्यक अनुमतियां ली थीं और भारत सरकार ने उन्हें वीजा जारी किया था। जमात का मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन पुलिस थाने से कुछ ही मीटर की दूरी पर है और थाने के पुलिसकर्मी वहां चल रही गतिविधियों पर नजर रखते हैं। संस्था के प्रमुख मौलाना मुहम्मद साद के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा चुकी है। ऐसा बताया जाता है कि वे क्वारंटाइन में हैं। जाहिर है कि पूरे घटनाक्रम की गहराई से जांच जरूरी है।
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शुरुआत में मौलाना साद ने अपने अनुयायियों से कहा कि 70,000 देवदूत कोरोना से मुसलमानों की रक्षा करेंगे और उन्हें डरने की जरुरत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी सच्चे मुसलमान को मरना ही है तो बेहतर है कि वह मस्जिद में मरे। जाहिर है कि यह अतार्तिक और निहायत बचकाना दावा, सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के मान्य सिद्धांतों के खिलाफ था। जल्द ही उन्होंने अपने बयान में सुधार किया और कहा, “मैं डॉक्टरों की सलाह पर दिल्ली में क्वारंटाइन में हूं और जमात के सभी सदस्यों से अपील करता हूं कि वे देश में जहां कहीं भी हैं, वे वहां के स्थानीय प्रशासन के निर्देशों का पालन करें।”
यह साफ है कि तब्लीगी जमात कोरोना को फैलाने में अपनी भूमिका से इंकार नहीं कर सकती। यह भी साफ है कि उसने एक आपराधिक कृत्य किया है। परन्तु यदि हम तत्समय के घटनाक्रम पर नजर डालें तो हमें पता चलेगा कि इसी तरह की गलतियां कई स्थानों पर कई व्यक्तियों और संस्थाओं ने कीं। फरवरी के मध्य में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने कोरोना को वैश्विक खतरा घोषित करते हुए हवाईअड्डों पर स्क्रीनिंग की व्यवस्था करने को कहा था, लेकिन भारत में स्क्रीनिंग मार्च में शुरू की गई। इस सिलसिले में यह तथ्य अहम है कि देश में कोरोना के शुरुआती मरीज विदेश से यहां आए लोग थे।
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इस बीच 13 मार्च को कोरोना से सम्बद्ध दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। एक थी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल का यह बयान कि कोरोना भारत के लिए आपातकालीन स्थिति नहीं है। उसी दिन, दिल्ली के मुख्यमंत्री ने आदेश जारी किया कि महामारी नियंत्रण कानून के अंतर्गत, 200 से अधिक लोगों को एक स्थान पर जमा होने की अनुमति नहीं होगी। तीन दिन बाद, एक और अधिसूचना जारी कर यह संख्या घटा कर 50 कर दी गई।
इसका अर्थ यह था कि जिस समय तब्लीगी जमात का कार्यक्रम चल रहा था, उस समय भारत सरकार का मानना था कि देश में किसी तरह की आपातकालीन स्थिति नहीं है। परन्तु यह भी सही है कि जमात ने 200 से अधिक लोगों के एक स्थान पर जमा न होने संबंधी आदेश का उल्लंघन किया। निश्चित तौर पर यह एक गंभीर भूल और अपराधिक कृत्य था।
फिर, इसी बीच 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का एलान कर दिया गया और 24 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई। इसके पहले, 21 मार्च को रेलों की आवाजाही रोक दी गई थी और दिल्ली सरकार ने अपने स्तर से लॉकडाउन का आदेश जारी कर दिया था। जिससे देश के कई अन्य स्थानों की तरह, मरकज में भी यात्री फंस गए।
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साफ है कि डब्ल्यूएचओ और भारत सरकार ने कोरोना को पर्याप्त गंभीरता से नहीं लिया और समय रहते कई जरूरी कदम नहीं उठाए। इस दौरान जमात के अतिरिक्त कई अन्य राजनैतिक और धार्मिक संगठनों ने भी सोशल डिस्टेंसिंग संबंधी नियमों का पालन नहीं किया। निस्संदेह, उनकी गलतियों से जमात अपने दोष से मुक्त नहीं हो जाती। परन्तु समस्या यह है कि केवल जमात को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। यह संस्था इस्लाम के एक विशेष संस्करण का प्रचार करती है। और उसकी गलती के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराना कतई उचित नहीं है।
मीडिया के एक बड़े हिस्से ने जिस तरह जमात की गलती को एक साजिश और भारतीय मुसलमानों का देश पर हमला बताया वह घिनौना था। इससे उन तत्वों के हाथ मजबूत हुए हैं जो समाज को धर्म के आधार पर विभाजित कर कोरोना संकट में भी अपना उल्लू सीधा करने का कुत्सित खेल रच रहे हैं। इस दुष्प्रचार के कारण देश को बहुत नुकसान हुआ है।
यह प्रसन्नता की बात है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने कोरोना संकट के दौरान धर्म या नस्ल के आधार पर व्यक्तियों या समूहों को निशाना बनाने के खिलाफ चेतावनी दी है। यह भी संतोष का विषय है कि केरल, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों ने घृणा फैलाने के इन प्रयासों की निंदा करते हुए सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की अपील की है। इस तरह की संकट की घड़ी में ही किसी देश की एकता और उसके नागरिकों के बीच प्रेम और सद्भाव की परीक्षा होती है। आशा है हम इस परीक्षा में खरे उतरेंगे।
(लेख का हिंदी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)
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