विचार

खरी-खरी: 'हेट पॉलिटिक्स' का ही डिज़ायन है हरिद्वार 'हेट कॉन्क्लेव' से लेकर बुली बाई ऐप तक जारी प्रचार

भाजपा केवल एक ही राजनीति समझती और करती है। और वह है ‘मुस्लिम हेट पॉलिटिक्स’। यह उस समय तक संभव नहीं दिखाई पड़ती जब तक बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी जैसी कोई कट्टरपंथी संस्था मुसलमानों को लेकर हिन्दू विरोध में सड़कों पर न निकले।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

शुरुआत हुई गुरुग्राम में पार्कों एवं खुले स्थलों पर जुमे की नमाज पर पाबंदी से! कुछ ही समय बाद ‘धर्म संसद’ ने मुसलमानों के नरसंहार का फतवा जारी कर दिया। देखते- देखते नव वर्ष की बेला पर ‘बुली बाई ऐप’ के माध्यम से मुस्लिम महिलाओं की नीलामी आरंभ हो गई! आखिर यह हो क्या रहा है। यह कैसा पागलपन है। क्या यह किसी भी सभ्य समाज में संभव है कि मां और बेटियों की नीलामी लगवाई जाए और उनको खबर भी न हो? जी हां, जिस बुली बाई ऐप पर अस्सी मुस्लिम महिलाओं की फोटो लगी हैं, उनमें नौजवान बेटियां भी हैं और नौजवान बालकों की मांएं भी हैं। क्या यह सदियों पुरानी सभ्यता वाले भारतवर्ष में आज से कुछ समय पहले तक संभव था। और वह भी धर्म के नाम पर! आखिर ऐसी अश्लील हरकतें यकायक क्यों आरंभ हो गईं और वह भी इस समय क्यों? कमाल यह कि ऐसी बेहूदा हरकतें धर्म के नाम पर हो रही हैं।

एक बात भलीभांति जान लीजिए- यह धर्म नहीं, राजनीति है। और यह भी समझ लीजिए कि यह कोई पागलपन नहीं अपितु सोची-समझी साजिश है। मेरी राय में गुरुग्राम में जुमे की नमाज पर लगी पाबंदी से लेकर बुली बाई ऐप तक सारी बातों का आपस में संबंध है। और ऐसी बातों के ताने-बाने राजनीति से जुड़े हैं। राजनीति भी केवल एक है और उस राजनीति का उद्देश्य मुस्लिम समाज के प्रति घृणा उत्पन्न करना है। आप समझ गए होंगे कि इस ‘हेट पॉलिटिक्स’ का केन्द्र कहां है। आइए, अब इसके उद्देश्य को समझने की चेष्टा करें।

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मैं पिछले दो-तीन सप्ताह से यह लिखता चला आ रहा हूं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा खेमे में घबराहट है। चुनाव के ऐलान से लगभग दो माह पूर्व स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनाव प्रचार में पूरी ताकत से व्यस्त हो गए। कभी लखनऊ, कभी प्रयागराज, कभी काशी एवं अयोध्या, तो कभी नोएडा जैसे नगरों में प्रधानमंत्री के भाषणों की झड़ी लग गई। मोदी जी के चुनाव प्रचार का एक सेट फार्मूला है। गुजरात में सन 2002 के दंगों के बाद से वह इसी फार्मूले के आधार पर चुनाव लड़ते चले आ रहे हैं और अधिकांश चुनाव जीतते भी रहे हैं। वह डेवलपमेंट के सपने बेचकर उसमें मुस्लिम घृणा का तड़का लगाकर अपने सभी प्रदिद्वंद्वियों को चित कर लेते हैं। मोदी जी की राजनीति इन्हीं दो बिंदुओं पर केन्द्रित रहती है। स्वाभाविक है कि उत्तर प्रदेश में भी उनका चुनाव प्रचार इन्हीं दो बातों पर आधारित है। तब ही तो उत्तर प्रदेश में कभी वह इंटरनेशनल एयरपोर्ट तो कभी एक्सप्रेस वे जैसी स्कीमों का शुभारंभ कर रहे हैं। वह उत्तर प्रदेश वासियों को एक नया सिंगापुर एवं दुबई माल के डेवलपमेंट मॉडल का सपना बेच रहे हैं। इसके साथ-साथ हिन्दू वोट बैंक भाजपा के हक में एकत्र करने के लिए काशी कॉरिडोर में औरंगजेब की याद दिला कर मुस्लिम समाज को हिन्दू धर्म के विरोधी की छवि देने की चेष्टा कर रहे हैं।

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परंतु ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री का यह पुराना चुनावी नुस्खा अभी तक बहुत सफल नहीं हो रहा है। आपको भाजपा का अयोध्या का राम मंदिर निर्माण संघर्ष याद होगा। लगता था, हिन्दू समाज में एक नई चेतना उत्पन्न हो गई है। नगर-नगर, गांव-गांव बच्चा-बच्चा राम की सौगंध खा रहा था और बाबरी मस्जिद के प्रति हमदर्दी रखने वाले मुस्लिम वर्ग को अपना शत्रु समझ रहा था। इस बार न तो अयोध्या की करोड़ों दीयों की दीवाली, न ही काशी कॉरिडोर की महिमा भी देश क्या, उत्तर प्रदेश तक में भी चौबीस घंटों से अधिक चर्चा का विषय नहीं बनी। अभी तक मुस्लिम समाज अयोध्या विवाद के समान हिन्दू शत्रु का रूप नहीं ले पाया है।

यह प्रधानमंत्री सहित भाजपा के संपूर्ण खेमे के लिए चिंता का विषय है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस चुनाव में अभी तक उत्तर प्रदेश कब्रिस्तान-श्मशान के मूड में नहीं आया है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो फिर कदापि भाजपा को उत्तर प्रदेश चुनाव भारी पड़ सकता है।

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आखिर, उत्तर प्रदेश में पुनः अयोध्या जैसा वातावरण कैसे उत्पन्न किया जाए! राम मंदिर निर्माण संघर्ष के समय ऐसी क्या बात थी कि हिन्दू समाज भगवान राम के लिए कुछ भी करने को तत्पर था। उस समय अयोध्या में हिन्दू विश्वास के अनुसार भगवान के जन्मस्थल पर बाबरी मस्जिद खड़ी हुई थी। केवल इतना ही नहीं, उस मस्जिद के संरक्षण के लिए एक बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी नगर-नगर नारा ए तकबीर अल्लाहो अकबर के नारों के साथ मुस्लिम समाज को एकत्र कर रही थी। स्पष्ट है कि इससे हिन्दू समाज में रोष उत्पन्न हो रहा था। राम मंदिर निर्माण के विरोध में एक खुला मुस्लिम शत्रु खड़ा था जिसके प्रति हिन्दू समाज में क्रोध एवं बदले की भावना उत्पन्न हो रही थी। और सन 1990 की दहाई में विश्व हिन्दू परिषद इस भावना को हवा दे रहा था जिसका राजनैतिक लाभ भाजपा को मिल रहा था।

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परंतु इस समय हिन्दू समाज के सामने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी जैसा कोई दूसरा प्रतिद्वंद्वी नहीं है। जब तक सामने एक मुस्लिम प्रतिद्वंद्वी न हो, तब तक हिन्दू रोष कैसे उत्पन्न हो। इस समय काशी कॉरिडोर निर्माण में बाधा उत्पन्न करने वाली कोई मुस्लिम संस्था नहीं खड़ी हुई। अतः काशी में औरंगजेब बनाम शिवाजी की ललकार हिन्दू समाज को कोई बहुत उत्तेजित नहीं कर सकी। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में कम-से-कम अभी तक चुनाव हिन्दू-मुस्लिम जिहाद का रूप नहीं ले सका है। जैसे संकेत मिल रहे हैं, उससे यह आभास हो रहा है कि प्रदेशवासी अपनी चिंताओं एवं जातीय समीकरण के आधार पर सोच रहे हैं। प्रियंका गांधी की मैराथन दौड़ में उमड़ती महिलाओं और अखिलेश यादव की रैलियों में इकट्ठा होने वाली भीड़ से यह संकेत मिल रहा है कि प्रदेश में प्रशासन बदलाव की सोच है। और यह भाजपा के लिए चिंता ही नहीं घबराहट का विषय है।

अब भाजपा करे तो क्या करे! भाजपा केवल एक ही राजनीति समझती और करती है। और वह है ‘मुस्लिम हेट पॉलिटिक्स’। यह उस समय तक संभव नहीं दिखाई पड़ती जब तक बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी जैसी कोई कट्टरपंथी संस्था मुसलमानों को लेकर हिन्दू विरोध में सड़कों पर न निकले। वह गुरुग्राम में नमाज पर पाबंदी हो अथवा धर्म संसद की ओर से मुस्लिम नरसंहार अथवा बुली बाई ऐप से मुस्लिम महिला नीलामी। सबका उद्देश्य यही है कि मुस्लिम समाज में किसी तरह गुस्सा उत्पन्न हो और कोई असदुद्दीन ओवैसी जैसा नेता खड़ा होकर हिन्दू विरोध में गर्म-गर्म भाषण दे। तब ही तो हिन्दू क्रोध उत्पन्न होगा और बस, फिर मोदी जी का औरंगजेब बनाम शिवाजी नैरेटिव सफल हो जाएगा।

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परंतु दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीता है। बाबरी मस्जिद बचाने की भावुक प्रतिक्रिया में दर्जनों दंगों के बीच मुस्लिम समाज के हजारों व्यक्तियों की जानें गईं। मस्जिद भी गई और साथ में मोदी जी ने देश को हिन्दू राष्ट्र का रंग दे दिया। इस कठिन दौर में मुस्लिम समाज को यह समझ में आने लगा कि कट्टरपंथी नेतृत्व में भावुक हिन्दू विरोधी राजनीति स्वयं उसके लिए जान का सौदा है। अतः वह जुमे की नमाज हो अथवा बुलली बाई ऐप पर नीलामी, मुसलमान चुप होकर बैठा है।

अब आपकी समझ में आया बुली बाई ऐप जैसी अश्लील हरकतों का रहस्य! परंतु ऐसी हरकत करने वाले यूपी चुनाव तक ऐसा कुछ करते ही रहेंगे। ऐसे में मुस्लिम समाज धैर्य के साथ चुप ही रहे, तो यह उसके और देश- दोनों के पक्ष में ही होगा।

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