पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण और बड़े जनपदों में से एक बिजनौर जनपद में 8 विधानसभा सीट है। 49 फीसद मुस्लिम और 27 फीसद दलित आबादी के साथ सरकार बदलने को आतुर इस जनपद में प्रत्यशियों के खराब चयन ने विपक्ष की निश्चित होती बढ़त को कमज़ोर कर दिया है। जनता का कंफ्यूजन यहां सत्ता पक्ष का ऑक्सीजन बन गया है। बिजनौर में 14 फरवरी को चुनाव है। बिजनौर में रोजगार और महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है। किसानों का गुस्सा भी सरकार के प्रति इस बार के चुनाव में घी डालने का काम करेगा।
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बिजनौर से हरिद्वार जाने वाली सड़क पर मंडावली के करीब रमजानी चाचा 64 साल की उम्र में भी शादियों में बाजा बजाकर अपना गुजारा करते हैं। खुशमिज़ाज रमजानी कई बात बेहद काम की करते हैं। रमजानी कहते हैं कि हम लोग जाति और धर्म के आधार पर वोट देते हैं, हमनें काबिल नेताओं को चुनना बंद कर दिया है इसलिए माहौल भी खराब हो गया है। नेता को सभी गुणदोष के आधार पर ठोक-बजाकर चुनना चाहिए। एक बार चुनाव होने के बाद हम यह सोचते जरूर है, मगर चुनाव के समय हमारी अक्ल पर उल्लू बैठ जाता है। रमजानी नजीबाबाद विधानसभा में आते हैं और वो बताते हैं उनके लोगों का झुकाव जिस प्रत्याशी की और है वो इससे पहले दो बार विधायक रह चुका है। इस बार वो जनता से दूर रहे मगर सत्ता पक्ष की कारगुजारियों से नाराज लोगों के लिए वो ही एक मात्र विकल्प है। रमजानी हालांकि सरकार बदलने के लिए आतुर है वो कहते हैं सरकार का रवैया भेदभावपूर्ण रहा है।
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नजीबाबाद विधानसभा से दो बार के विधायक तस्लीम अहमद इस बार भी समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। स्थानीय लोगों में उन्हें लेकर नाराजगी है, लेकिन सरकार बदलने को आतुर लोग बसपा से शाहनवाज खलील और कांग्रेस के सालिम अंसारी से ज्यादा उनकी और अधिक झुकाव रखते हैं। नजीबाबाद बिजनौर की सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा सीट में से है। यहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है। यहां के कस्बे साहनपुर के इमरान अली बताते हैं कि इस विधानसभा सीट से साहनपुर स्टेट के राज परिवार से संबंध रखने वाले कुंवर भारतेंदु सिंह भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं। कुंवर भारतेंदु पूर्व में सांसद रह चुके हैं। इस बार गठबंधन ने एक ऐसे प्रत्याशी को चुनाव लड़वा दिया है। जो लोगों की नाराजग़ी दूर नही कर पा रहा है। इसलिए यहां तीन मुस्लिम प्रत्याशियों के बीच फंसी यह सीट इस बार हाथ से निकल सकती है।
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समाजवादी पार्टी ने यहां तस्लीम अहमद को उम्मीदवार बनाया है। वो पिछली बार बसपा से और इस बार सपा विधायक बने, अब वो सपा से विधायक है, तीनों प्रत्याशियों के बीच डेढ़ लाख से अधिक मुस्लिम मतदाता कंफ्यूज हो गए है। उसमे बंटवारा दिखता है। नजीबाबाद के अबरार अंसारी बताते हैं कि टिकट चयन से स्थानीय लोगों में निराशा है। उनमें उत्साह नही है। इससे मतदान प्रतिशत पर भी फर्क पड़ेगा। सबलपुर गांव के युवा विजय कश्यप कहते हैं कि वो उसको वोट देंगे जो उनके गांव को मुख्य सड़क से जोड़ेगा। हमारे गांव के सभी रास्ते खराब है। रोजगार नहीं है और महंगाई बहुत है।
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बिजनौर की अफजलगढ़, नूरपुर और धामपुर पर भी त्रिकोणीय स्थिति है। तीनों विधानसभा सीटों पर टिकटों को लेकर नाराजगी है। भाजपा यहां विपक्ष के टिकट बंटवारे से खुश है। बिजनौर शहर सीट पर तो सबसे ज्यादा बवाल हुआ है। यहां समाजवादी पार्टी और रालोद दोनों ने अपना प्रत्याशी उतार दिया था, हालांकि बाद में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रमेश तोमर ने रालोद प्रत्याशी डॉक्टर नीरज का समर्थन कर दिया। बिजनौर शहर की नाहिद फ़ातिमा बताती है कि बिजनौर में विपक्ष पकी-पकाई हंडिया गिरा रहा है। टिकट वितरण की नासमझी से विपक्ष का खेल बिगड़ गया है। खासकर बसपा के कैंडिडेट यहां गठबंधन का ज़ायका बिगाड़ रहे हैं। मुस्लिम बहुल विधानसभा सीट पर बसपा और सपा दोनों मुस्लिम प्रत्याशी लड़ा रहे हैं। बिजनौर जनपद में दलित अच्छी संख्या में हैं। यहां मायावती, मीराकुमार और रामविलास पासवान चुनाव लड़ चुके हैं। चुनाव त्रिकोणीय लगता है। नूरपुर के आसिफ नूर कहते हैं प्रत्यशियों के चयन से सभी संतुष्ट नहीं हो सकते, हमें सरकार बदलनी है जिससे किसान अत्यंत परेशान रहे हैं।
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बिजनौर शहर से बसपा पूर्व सपा विधायक रुचिवीरा को चुनाव लड़ा रही है। सपा गठबंधन से यहां रालोद के डॉक्टर नीरज प्रत्याशी है। इसके अलावा भाजपा वर्तमान विधायक सूची चौधरी को चुनाव लड़ा रही है। राजनीतिक विश्लेषक और बिजनौर निवासी दानिश सिद्दीकी बताते हैं कि लड़ाई त्रिकोणीय है। सरकार से नाराज़ विपक्ष दो धुर्वों में बंटा हुआ दिखता है। अभी यह कहना जल्दबाजी है, हो सकता है कि वोटिंग के दिन कोई नही रणनीति हो मगर इस समय तो विपक्ष का गणित एकतरफ़ा नहीं लगता है। अफजलगढ़ में भी मुक़ाबला त्रिकोणीय है। यहां भाजपा के वर्तमान विधायक और मुरादाबाद के पूर्व सांसद सर्वेश सिंह के बेटे बसपा के मोहम्मद गाजी से मुख्य मुकाबले में लड़ रहे हैं। धामपुर में सपा गठबंधन ने अपने पुराने नेता और मंत्री मूलचंद चौहान का टिकट काट दिया था। मूलचंद चौहान अब बसपा के प्रत्याशी है। चांदपुर से सपा स्वामी ओमवेश और बसपा शकील हाशमी को चुनाव लड़ा रही है।
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खास बात यह है बहुमत की नाराजगी झेल रही भाजपा यहां समीकरणों के गणित से त्रिकोणीय संघर्ष में आ गई है, सबसे खास बात यह है वो सुरक्षित विधानसभा सीटों पर सबसे कमज़ोर है। जैसे नहटौर और नगीना पर भाजपा काफी कमजोर दिखाई दे रही है। नगीना पर सपा पूर्व मंत्री मनोज पारस को चुनाव लड़ा रही है जबकि नहटौर पर रालोद ने मुंशी रामपाल को लड़ा रही है। नहटौर के जाहिद अंसारी कहते हैं कि यहां भाजपा इसलिए कमज़ोर दिख रही है क्योंकि यहां मुस्लिमों और दलितों में कोई कन्फ्यूजन नहीं है। दोनों सीटों पर डेढ़ लाख से अधिक तो मुसलमान ही है। इसके अलावा नहटौर में जाटों की भी अच्छी संख्या है। नगीना के विपिन कुमार भी यही बात कहते हैं मनोज पारस यहां से अभी भी विधायक हैं और अब समीकरण और भी अधिक मजबूत है।
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बता दें, बिजनौर में कुल 8 विधानसभा सीट है। इनमे से 5 पर इस समय भाजपा के विधायक है। जिला मुस्लिम बहुल है। बिजनौर शहर के मोहल्ला मिरदगान के जुबैर खान बताते हैं समीकरण से जो गणित दिखता है दरअसल वो समय के साथ बदल जाएगा। पिछले दो दिनों से वो बदलाव दिख भी रहा है। सरकार से नाराज समाज नहीं बंटेगा वो सरकार को बदलने के लिए आतुर है। बसपा ने जरूर 4 मुस्लिम प्रत्यशियों को टिकट दिया है मगर किसानों की नाराजगी सरकार को बहुत भारी पड़ने वाली है। बिजनौर में भी किसान आंदोलन का बड़ा असर है।
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चांदपुर के सुरेंद्र चौधरी इसकी पुष्टि करते हैं वो बताते हैं कि कागज़ के गणित से अलग ज़मीन का हिसाब है। सुरेंद्र कहते हैं इस सरकार के विरुद्ध बिजनौर के किसानों से अधिक किसी ने संघर्ष नहीं किया है। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के जब आंसू बहे तो उस समय उनके साथ 5 किसान नेताओं में से 2 बिजनौर के थे। उस दिन बिजनौर से ही हजारों किसान रात में ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पहुंचे थे। याद कीजिये तीन दिन बाद हुई बिजनौर किसान पंचायत से एक हजार ट्रैक्टर का काफिला ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पहुंचा था। बिजनौर का किसान फूंका (गुस्साया) बैठा है। मतदान वाले दिन एक अलग ही उत्सव होगा। भाजपा अपनी पांच सीट बचा नहीं पाएगी। अब हमारा जवाब देने का समय है।
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