आज के दौर में तथाकथित लोकतांत्रिक पर सत्ताभोगी सरकारें भले ही चुनाव जीत कर आ रही हों, पर अधिकतर देशों में इस समय दक्षिणपंथी और छद्म-राष्ट्रवादी ताकतें हुकूमत में हैं। ऐसी ताकतें, भले ही सतही तौर पर बहुत मजबूत दिखती हों, और जनता का भला करने का नाटक करती हों पर वास्तविकता बिलकुल उलटी होती है। इन्हें जनता से कोई मतलब नहीं होता, इनका अपना एजेंडा होता है, जिसे पूरा करने का उद्देश्य होता है, इसलिए ऐसी सरकारें हमेशा डरी होतीं हैं और अपने एजेंडा को साधने का मौका तलाशती हैं।
कोविड-19 वायरस से फैली महामारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है। लगभग हरेक देश की आम जनता डरी हुई है, परेशान है। ऐसे में सत्ताभोगी सरकारों को निर्विरोध अपनी ताकत बढ़ाने का एक सुनहरा अवसर मिल गया है। सामान्य परिस्थितियों में जिन कदम पर उन्हें जनता और विपक्ष से भारी चुनौती मिल सकती थी, आज के दौर में कहीं कोई विरोध नहीं है। महामारी के इस दौर में सरकारें अपनी ताकत बढ़ा रही हैं, वैश्विक स्तर पर अपनी पैठ बढ़ा रही हैं, या फिर अपने ही देश के लोकतंत्र को खोखला कर रही हैं।
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अपनी ताकत बढाती सरकारें
इस समय अधिकतर देशों में अपनी ताकत बढाने, अपने विरोधियों को कुचलने और विपक्षियों को बदनाम करने का सबसे बड़ा माध्यम सोशल मीडिया है और इसपर आंशिक या पूरे तौर पर सरकारी नियंत्रण है। यह सब कोरोना वायरस से जुड़े भ्रामक खबरों या पोस्टों पर अंकुश लगाने के नाम पर किया जा रहा है। हकीकत तो यही है कि जिन खबरों पर रोक लगाने का दावा किया जाता है, वे खबरें तो धड़ल्ले से पोस्ट की जा रही हैं। यह सारी कवायद जनता की जानकारी जुटाने के लिए की जा रही है, अपने विरोधियों की पहचान के लिए की जा रही है। ऐसे समय जब सभी परेशान हैं, तब सरकारी तौर पर घोषित तरीके से सबके स्मार्टफोन की निगरानी पर कोई विरोध नहीं होगा।
रूस के राष्ट्रपति पुतिन तो कोरोना का उपयोग आजीवन राष्ट्रपति बनने के लिए भी कर रहे हैं। इस पर जब मतसंग्रह कराया गया था, तब पुतिन के पक्ष में अच्छे परिणाम नहीं आए थे और विरोध के सुर तेज होने लगे थे। कोरोना के बाद से तो सारी ताकतें पुतिन के पास आ गई हैं, जिसमें अब आवश्यक कानूनी संशोघन आसान होगा। कुछ दिनों पहले उन्होंने जनता के नाम संदेश में कोरोना से लड़ने के लिए देश की स्थिरता पर जोर दिया था और कहा था कि स्थिरता के लिए जरूरी है कि उनके जैसे सशक्त राष्ट्रपति को आजीवन राष्ट्रपति रखा जाए।
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इसके साथ ही उन्होंने रूस के बड़े शहरों में कोरोना से ग्रस्त व्यक्तियों की निगरानी के नाम पर फेस रिकग्निशन के लिए कैमरों का जाल बिछा दिया और सोशल मीडिया पर तमाम पाबंदियां लगा दीं। अकेले मास्को में अब तक 178000 कैमरे लगाए जा चुके हैं। इनका उपयोग कोरोना ग्रस्त व्यक्तियों की पहचान से अधिक पुतिन के विरोधियों की पहचान करने के लिए किया जा रहा है।
हंगरी के प्रधानमंत्री ने कोरोना संकट का हवाला देकर संसद से ऐसा बिल पारित करा लिया जिसके अनुसार वे जब तक चाहेंगें तब तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे। इजराइल के प्रधानमंत्री को लम्बे समय तक अपने पद पर बने रहने के बाद अब ये पद छोड़ना था। उनके लिए तो कोरोना साक्षात वरदान जैसा है। अब उनको पद से हटाने की कवायद खत्म हो गई है और दूसरी तरफ उन्होंने अपने अधिकार का इस्तेमाल कर अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों में दायर मुकदमे को न्यायालयों से हटवा दिया। कोरोना ने उन्हें अपने पद पर फिर से काबिज कर दिया।
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भारत के प्रधानमंत्री भी समय-समय पर अपना शक्ति प्रदर्शन करते रहे हैं। कोरोना संकट के बीच मध्य प्रदेश की सत्ता पलट गयी और दूसरी तरफ कश्मीर में अब गैर-कश्मीरी भी जमीन-जायदाद खरीद सकेंगे, ऐसे कानून का अनुमोदन कर दिया गया। सामान्य परिस्थिति में इसका व्यापक विरोध होता, पर अब कोई विरोध नहीं हो रहा है। कोरोना के नाम पर सोशल मीडिया भी सरकारी नियंत्रण में आ गया है और मेनस्ट्रीम मीडिया को सख्त हिदायत है कि कोरोना पर केवल सरकार की वाहवाही करें और जहां तक संभव हो इसे एक धर्म विशेष के साथ जोड़ दें।
वैश्विक स्तर पर आगे निकलने की होड़
चीन अपने यहां कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के बाद से लगातार दुनिया में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। सबसे पहले तो यह प्रचारित किया गया कि ऐसी महामारी से निपटने के लिए एक सशक्त राष्ट्रपति की जरूरत है, जो आजीवन अपने पद पर बना रहे। फिर, चीन ने सबसे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपने पक्ष में किया। इस संगठन ने हरेक स्तर पर चीन ही सराहना की, जिसका नतीजा यह है कि उसके प्रबल दुश्मन भी अब इस महामारी से निपटने के लिए उसकी सहायता ले रहे हैं।
चेक गणराज्य के एक मंत्री ने हाल में ही बयान दिया है कि इस महामारी से निपटने में पूरी दुनिया में चीन अकेला देश है जो मदद कर सकता है। सर्बिया के राष्ट्रपति ने चीन का राष्ट्रीय ध्वज चूमते हुए कहा कि उन्हें चीन की सहायता पर पूरा भरोसा है। जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों ने इटली को अपेक्षाकृत अधिक संख्या में फेस मास्क मुहैया कराए, पर चीन ने कुछ मास्क भेजकर ऐसा प्रचारित किया कि मानो मदद केवल उसी ने की हो। चीन ने तो अमेरिका को वेंटीलेटर्स भी भेंट कर वाहवाही लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ा, जबकि वो वेंटीलेटर्स उस कंपनी ने बनाए थे जिसे अमेरिका वर्ष 2014 में प्रतिबंधित कर चुका था।
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दक्षिण कोरिया और ताइवान भी कोरोना के सफल नियंत्रण के बाद दुनिया के अन्य देशों में अपनी साख बढाने में जुटे हैं। रूस अपने यहां कोरोना से संबंधित आकड़ों को दबाकर दुनिया को बता रहा है कि उसे कोई परेशानी नहीं है। अब वह चीन और ईरान के साथ मिलकर कोरोना की उत्पत्ति को अमेरिका की सेना से जोड़ रहा है। रूस समय-समय पर यूरोपियन यूनियन के देशों को मदद कर अपनी छवि सुधारने में लगा है। भारत भी मलेरिया की दवाइयों के निर्यात पर प्रतिबंध हटाकर अमेरिका और ब्राजील जैसे देशों पर अपना प्रभुत्व जमाने में संलग्न है।
आतंरिक लोकतंत्र को खोखला करती सरकारें
लोकतंत्र को खोखला करने में सबसे बड़ा योगदान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाकर किया जा रहा है। अधिकतर देशों ने सोशल मीडिया पर आंशिक या पूरी पाबंदी लगाई है। इस पर पोस्ट की लगातार निगरानी की जाती है, और सरकार के विरोधियों को किसी न किसी बहाने धमकाया जा रहा है, दंडित किया जा रहा है, या फिर जेल में डाला जा रहा है। सरकारी तौर पर अपने पक्ष में भ्रामक खबरों को फैलाया जा रहा है। इस पूरे सरकारी दुष्प्रचार में मेनस्ट्रीम मीडिया सरकार की भागीदार है। इसमें दिन भर वही खबरें प्रसारित होती हैं, जो सरकार चाहती है।
फिलिपिन्स के राष्ट्रपति ने फेक न्यूज के नाम पर सोशल मीडिया को सरकारी चंगुल में डाल दिया है और राष्ट्रपति ने आपातकाल के नाम पर असीमित अधिकार हासिल कर लिया है। तुर्कमेनिस्तान में तो उन लोगों को भी जेल में डाला जा रहा है जो सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट में कोरोना का जिक्र भी करते हैं। यहां की सरकार अपने यहां कोरोना के फैलने से इनकार करती है, जबकि सबसे अधिक प्रभावित देश ईरान की सीमा इससे लगी है।
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थाईलैंड के प्रधानमंत्री के पास इतने अधिकार हैं कि वे चाहें तो मेनस्ट्रीम मीडिया को बंद कर सकते हैं और सोशल मीडिया को सरकारी नियंत्रण में ला सकते हैं। बेलारूस के राष्ट्रपति कोरोना को अफवाह से अधिक कुछ नहीं समझते और उन्होंने फूटबाल के प्रीमियर लीग के आयोजन की अनुमति दे दी है। इनके अनुसार कोरोना का सामना पब जाकर और पार्टियों से ही किया जा सकता है।
उत्तरी कोरिया भी लगातार कोरोना के संक्रमण से इनकार करता रहा है। जबकि इसके नियंत्रण के नाम पर इसने विश्व बैंक से लोन लिया है। मार्च में सैनिक अधिकारियों के मार्च पास्ट की जो तस्वीरें सामने आई थीं, उसमें अधिकतर अधिकारियों ने अपने चहरे पर फेस मास्क लगाया हुआ था। रूस ने भी लगभग 2 महीन पहले उत्तर कोरिया को कोरोना परीक्षण के 1500 किट का उपहार दिया था।
भविष्य कैसा होगा?
कोरोना के साथ-साथ दुनिया बहुत बदल चुकी है। लोग मरते रहें, परेशान होते रहें पर अधिकतर सरकारों को अपनी ताकत बढ़ाने का, जनता पर निगरानी का और दुनिया में ताकत बढ़ाने का अचानक एक मौका मिल गया है। जाहिर है, जब इस महामारी के असर के बाद दुनिया सामान्य होगी, तब जनता की मुसीबतें और बढेंगी। अमीर और अमीर होंगे साथ ही मध्य वर्ग और निम्न वर्ग और गरीब होता जाएगा। सरकार की बहुत सारी कल्याणकारी योजनाएं बंद हो चुकी होंगीं और सरकारों का विरोध करने वालों पर दमनचक्र और गहरा होता जाएगा। कुल मिला कर दुनिया पर दक्षिणपंथी, राष्ट्रवादी, अलगाववादी और सत्तालोभी सरकारों का राज होगा।
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