विचार

आकार पटेल का लेख: नए आईटी नियम के बहाने सच और 'तथ्य' पर कसा जाएगा सरकारी शिकंजा

निशाने पर डिजिटल मीडिया और खासतौर से छोटे और स्वतंत्र वेबसाइट हैं जिन्होंने हाल के दिनों में मुख्यधारा के मीडिया के पूरी तरह सरकार की तरफ झुकने के बाद अपनी अलग पहचान बनाई है और उनके फॉलोअर्स के एक बड़ा आधार है।

सांकेतिक फोटो
सांकेतिक फोटो 

अभी 6 अप्रैल 2023 को केंद्र सरकार ने एक नया नियम लागू किया है। इसके तहत सरकार ऐसी खबरों, सूचनाओं या सामग्री की पहचान करेगी जो सरकार से संबंधित है और वह या तो फेक यानी भ्रामक है या झूठ यानी मिथ्या है। यह काम सरकार द्वारा स्थापित एक फैक्ट चेक यूनिट द्वारा किया जाएगा जो इस किस्म की सामग्री को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से हटाने के लिए आदेश जारी करेगी। कोई खबर फेक है, झूठी है या भ्रामक है, इसका फैसला पूरी तरह सरकार के विवेक से तय होगा। इस नियम के लागू होने से सरकार को यह अधिकार मिल गया है कि वह सोशल मीडिया कंपनियों को ऐसी सामग्री हटाने के लिए मजबूर कर सकेगी वर्ना उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।

एक स्वतंत्र भारतीय डिजिटल संस्था इंटरनेट फाउंडेशन ने इस नियम पर प्रतिक्रिया में कहा है कि, "सरकार की किसी भी इकाई या एजेंसी को ऑनलाइन सामग्री की प्रामाणिकता निर्धारित करने के लिए इस तरह की मनमानी और व्यापक शक्तियां सौंपना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है, और इस तरह यह एक असंवैधानिक कदम है। इन बदले हुए या संशोधित नियमों की अधिसूचना से बोलने और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार पर, विशेष रूप से न्यूज पब्लिशर (समाचार प्रकाशकों), पत्रकारों, एक्टिविस्ट (सामाजिक कार्यकर्ताओं) पर (पहले ही) जारी भयावह प्रभाव को और अधिक बढ़ा दिया है।

Published: undefined

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी है। गिल्ड ने कहा है कि ‘इस अधिसूचना से “बेहद चिंतित” है और इस नियम में यह भी नहीं बताया गया है कि फेक्ट चेकिंग का शासकीय तंत्र क्या होगा, इसका न्यायिक निरीक्षण क्या होगा और अगर होगा भी या पहले से है तो उस पर अपील करने का क्या अधिकार होगा।’ गिल्ड ने आगे कहा है कि “ये सब प्राकृतिक न्याय के खिलाफ और सेंसरशिप जैसा मामला है।”

दरअसल इसके पीछे निशाने पर डिजिटल मीडिया और खासतौर से छोटे और स्वतंत्र वेबसाइट हैं जिन्होंने हाल के दिनों में मुख्यधारा के मीडिया के पूरी तरह सरकार की तरफ झुकने के बाद अपनी अलग पहचान बनाई है और उनके फॉलोअर्स के एक बड़ा आधार है। और, जिस तरह से सरकार इनके पीछे पड़ी है उससे जाहिर है कि इन वेबसाइट का काम काफी प्रभावपूर्ण रहा है।

नए नियमों सामने आने की एक पृष्ठभूमि भी है। बीते कुछ वर्षों के दौरान इंटरनेट शटडाउन के मामलों में भारत दुनिया का अग्रणी देश रहा है। 2014 में भारत में 6 बार, 2015 में 14 बार, 2016 में 31 बार, 2017 में 79 बार, 2018 में 134 बार, 2019 में 121 बार, 2020 में 109 बार, 2021 में 106 बार और 2022 में 84 बार इंटरनेट शटडाउन किया गया।

Published: undefined

इसे एक खास नजरिए से देखें तो 2019 में हुए कुल 213 वैश्विक इंटरनेट शटडाउन में से अकेले भारत में ही 56 फीसदी शटडाउन हुए है। इसके बाद वेनेजुएला का नंबर है जहां के मुकाबले भारत में 12 गुना अधिक बार ऐसा किया गया। 2020 में हुए कुल 155 वैश्विक इंटनेट शटडाउन में भारत में 70 फीसदी शटडाउन थे। इंटरनेट शटडाउन के जरिए मरीजों को टेली मेडिसिन और बच्चों को महामारी के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित किया गया।

कश्मीर में तो 17 महीने का इंटरनेट शटडाउन लगाया गया, इसके बाद किसान आंदोलन के दौरान भी ऐसा किया गया और अब तो यह आम बात सी हो गई है। हाल में पंजाब में लोगों के सोशल मीडिया हैंडल्स पर पाबंदी  लगाई गई थी और यहां तक कि बीबीसी की पंजाबी सेवा को भी कुछ वक्त के लिए रोक दिया गया था।

जो कुछ हो रहा है वह उस लोकतंत्र में अप्राकृतिक जैसा है, जहां अभिव्यक्ति की आजादी एक बुनियादी अधिकार है, यानी लोगों को उनके अधिकारों में सरकारी दखल से संरक्षण मिला हुआ है। लेकिन न्यू इंडिया में असहमति पर लगातार निशाना साधना और इसके लिए नए-नए हथकंडे अपनाना, आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग करना, उन्मादी भीड़ का भय पैदा करना आदि स्वतंत्र अभिव्यक्ति को रोकने के ही तंत्र हैं।

Published: undefined

फिर, जहां कानून लागू नहीं हो सकता, भीड़ नहीं पहुंच सकती, तो वहां के लिए आत्म सेंसरशिप का इस्तेमाल किया जा रहा है।

लोगों को लगता है कि कुछ विशेष बातें कहने से वे खतरे में पड़ सकते हैं। सोशल मीडिया के जमाने में यह कुछ ज्यादा ही हो गया है क्योंकि वहां प्रतिक्रिया भी तुरंत ही सामने आती है। लोगों को पता है कि कुछ बातें सच हैं, लेकिन उन्हीं बातों को कहने से वे मुसीबत में पड़ सकते हैं। आखिर किस किस्म की मुसीबत? उनके खिलाफ न सिर्फ सरकार द्वारा बल्कि कुछ निजी व्यक्तियों द्वारा एफआईआर कराई जा सकती है, सोशल मीडिया और अन्य मीडिया के जरिए उनसे गाली-गलौज और नफरती बातें कहीं जा सकती हैं। और इस सब पर सरकार का नियंत्रण नहीं है भले ही सरकार रोकना चाहे। ऐसे में भले ही कोई बात सच ही क्यों न हो, उसे नजरंदाज कर देना ही बेहतर समझा जाने लगा है।

Published: undefined

सरकार जाहिर तौर पर अपने आलोचकों और असहमति जताने वालों के खिलाफ जो कठोर और धमकाने वाली कार्रवाई करती है, वह और लोगों के लिए नसीहत का काम करती है। इसके चलते दूसरे लोग जो ऐसा ही करना चाहते हैं या कहना चाहते हैं वे रुक जाते हैं क्योंकि नतीजे उनके सामने हैं। भारत में, मुख्यधारा के मीडिया को अधिकांशत: डराने-धमकाने की जरूरत नहीं होती है। लाइसेंस और विज्ञापन आदि के लिए सरकार पर निर्भरता, सरकार की बहुसंख्यकवादी विचारधारा की लोकप्रियता और कॉर्पोरेट हितों द्वारा मीडिया के बड़े पैमाने पर स्वामित्व का मतलब है कि इसने काफी उत्साह से सरकार के सुर में सुर मिला लिया है।

सोशल मीडिया के भारतीय उपयोगकर्ताओं ने इस रास्ते को नहीं अपनाया है और इसीलिए इस समस्या पर ध्यान देने की सरकार को जरूरत पड़ी है, जो कि नए आईटी नियमों के माध्यम से सामने आई है। 2014 से पहले तक सरकार की ओर से हर साल एक दर्जन या इतने ही टेकडाउन नोटिस यानी कुछ सूचनाओं या खबरों को हटाने के नोटिस का इस्तेमाल किया जाता था, यह संख्या अब हजारों में पहुंच चुकी है। जब फैक्ट-चेकर्स यानी तथ्य-जांचकर्ता सत्ता पक्ष के अंदर या उससे जुड़े लोगों द्वारा घृणास्पद भाषण पोस्ट करते हैं, तो उस फेक्ट चेकर की पोस्ट को ही हटाने का नोटिस जारी हो जाता है।

Published: undefined

भारत सरकार को इस बात से दिक्कत है कि उसे बताया जा रहा है कि वह आजादी को मापने वाले वैश्विक सूचकांकों में लगातार नीचे गिर रहा है। सामान्य तर्क यह दिया जा रहा है कि सूचकांक को संकलित करने वाले या तो पक्षपाती हैं या अज्ञानी हैं या किसी प्रकार के एजेंडे का पालन कर रहे हैं। लेकिन आंकड़ों यानी डेटा का ईमानदारी से विश्लेषण सामने ले आएगा कि वे जो कह रहे हैं वह वास्तव में सच है क्योंकि हर दिन नए-नए प्रतिबंध की खबर सामने आती है। यह महत्वपूर्ण है कि इसके बारे में लिखा जाए और इस पर चर्चा की जाए क्योंकि नए नियमों के साथ सरकार चीजों को और दुष्कर करने की कोशिश में है। किसी भी वास्तविक लोकतंत्र में सरकार को यह निर्धारित करने का अधिकार नहीं है कि जब सरकार पर रिपोर्ट करने की बात आती है तो क्या तथ्य है और क्या भ्रामक है।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined

  • छत्तीसगढ़: मेहनत हमने की और पीठ ये थपथपा रहे हैं, पूर्व सीएम भूपेश बघेल का सरकार पर निशाना

  • ,
  • महाकुम्भ में टेंट में हीटर, ब्लोवर और इमर्सन रॉड के उपयोग पर लगा पूर्ण प्रतिबंध, सुरक्षित बनाने के लिए फैसला

  • ,
  • बड़ी खबर LIVE: राहुल गांधी ने मोदी-अडानी संबंध पर फिर हमला किया, कहा- यह भ्रष्टाचार का बेहद खतरनाक खेल

  • ,
  • विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले कांग्रेस ने महाराष्ट्र और झारखंड में नियुक्त किए पर्यवेक्षक, किसको मिली जिम्मेदारी?

  • ,
  • दुनियाः लेबनान में इजरायली हवाई हमलों में 47 की मौत, 22 घायल और ट्रंप ने पाम बॉन्डी को अटॉर्नी जनरल नामित किया