ट्विटर ने बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा समेत कई पार्टी नेताओं और समर्थकों के ट्वीट पर मैनीपुलेटेड मीडिया यानी तिकड़बाजी या शरारतपूर्ण छेड़छाड़ का तमगा लगा दिया है। यह तमगा उन ट्वीट पर लगा है जिसमें बीजेपी नेताओं ने एक दस्तावेज शेयर कर उसे कांग्रेस की टूलकिट करार दिया था, जिसमें कथित तौर पर भारत को बदनाम करने की कोशिश की गई थी। लेकिन तथ्यों की पड़ताल करने वाली वेबसाइट ऑल्टन्यूज ने साबित कर दिया कि बीजेपी नेताओं द्वारा शेयर किया गया दस्तावेज फर्जी है और इसे तिकड़मबाजी से तैयार किया गया है।
बीजेपी नेताओं ने दावा किया था कि कांग्रेस के लेटरहेड पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं, वॉलंटियर्स और समर्थकों को निर्देश जारी किए गए थे कि वे कुंभ को सुपर स्प्रेडर यानी कोरोना फैलान वाला सबसे बड़ा आयोजन बताएं, ईद के लिए जमा हुई भीड़भाड़ पर टिप्पणी न करें, अंतिम संस्कारों और कोरोना से जान गंवाने वालों की नाटकीय तस्वीरें इस्तेमाल करें, क्योंकि विदेशी मीडिया ने यह सब करना पहले ही शुरु कर दिया है। लेकिन आल्टन्यूज ने साबित कर दिया कि यह फर्जी था।
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ट्विटर ने भारत सरकार से कहीं ज्यादा अहमदाबाद स्थित इस वेबसाइट की तथ्यपरक पड़ताल पर भरोसा किया और इस टूलकिट के नाम से प्रचारित किए जा रहे दस्तावेज को फर्जी की श्रेणी में डाल दिया। जाहिर है इससे बीजेपी की भवें तन गईं और उसने ट्विटर को धमकाते हुए कहा कि इन ट्वीट से मैनीपुलेटेड मीडिया का टैग हटाया जाए, क्योंकि सरकार इस मामले की जांच कर रही है जो अभी पूरी नहीं हुई है।
दिक्कत दरअसल यह है कि सरकार ने पहले तो कांग्रेस को बदनाम करने की कोशिश की, लेकिन जब इसका झूठ पकड़ा गया तो दावा कर रही है कि वह अपने ही उस दावे की जांच कर रही है जिसे उसके ही कई कई मंत्रियों ने अपने अधिकारिक ट्विटर अकाउंट का इस्तेमाल कर प्रचारित किया। यही कारण है कि एक छोटे से समाचार संस्थान की विश्वसनीयता सरकार से कई ज्यादा नजर आती है।
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दरअसल ट्विटर का अपना एक पारदर्शिता केंद्र है, जहां वह सभी किस्म के डाटा और सूचनाओं पर मांगी गई दरख्वास्त पर काम करता है। लेकिन अब सरकार की तरफ से ट्विटर को कानूनी नोटिस भेजकर कहा जाता है कि वह कुछ अकाउंट को या तो ब्लॉक कर दे या किसी अकाउंट से शेयर किए गए किसी कंटेंट यानी सामग्री को हटा दे क्योंकि सरकार को वह सामग्री पसंद नहीं है।
जनवरी 2012 से जून 2014 के बीच ट्विटर को सरकार की तरफ से इक्का-दुक्का आग्रह ही इस किस्म के भेजे गए हैं। लेकिन 2016 की दूसरी छमाही में ट्विटर को सरकार की तरफ से ऐसी 151 दरख्वास्त भेजी गईं। जनवरी और जून 2018 में इनकी संख्या दोगुनी से ज्यादा यानी 306 हो गई। जुलाई और दिसबंर 2019 के बीच इनकी संख्या और बढ़कर 662 हो गई। वहीं जनवरी 2020 से जून 2020 तक (यही सबसे लेटेस्ट डाटा है) सरकार ने ट्विटर को 2,367 आग्रह भेजे जिसमें या तो किसी यूजर की पहचान बताने, या किसी का अकाउंट ब्लॉक कराने या कोई सामग्री हटाने का आग्रह किया गया।
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सवाल है कि आखिर सरकार हजारों की संख्या में ऐसे आग्रह ट्विटर को क्यों भेजकर इन पर अमल करने को कहती है? इसका जवाब तो यही है कि सोशल मीडिया पर ऐसी हकीकत सामने आ रही है जिसे बीजेपी छिपाना चाहती है या उस पर बात नहीं करना चाहती। सोशल मीडिया पर लोग अब अधिकतर ऐसी बातें कर रहे हैं जिससे सरकार असहज हो रही है। इससे निपटने का एक तरीका तो यह हो सकता था कि सरकार इनकी अनदेखी कर देती, जैसा कि पिछले दौर में सरकारें करती रहीं और ट्विटर को कम से कम ऐसी दरख्वास्तें मिलीं। लेकिन अगर कोई सरकार इस बात को लेकर काफी संवेदनशील है कि सोशल मीडिया पर क्या कुछ कहा जा रहा है और इससे इस हद तक बेचैन हो जाती है कि वह आलोचना को बरदाश्त ही नहीं कर पाती, तो वह सबकुछ वही करती है जो इन दोनों सरकार कर रही है।
लेकिन, ट्विटर कुछ मायनों में फेसबुक से जरा अलग है और कुछ ज्यादा स्वतंत्र है और खुद को बोलने की आजादी का पक्षधर बताता रहा है। दूसरी तरफ फेसबुक एक प्रतिस्पर्धा वाली कार्पोरेट कंपनी है जो सरकारों के साथ सांठगांठ करने में हिचकती नहीं है और सरकारें जो कुछ कहती हैं उस पर अमल करने को तैयार हो जाती है, इनमें किसी यूजर को बलॉक करना, किसी सामग्री पर रोक लगाना या सरकार का प्रचार करना आदि सब शामिल है, भले ही इससे हिंसा भड़कने की आशंका ही क्यों न हो। ट्विटर कहता है कि वह अपने सभी यूजर्स की स्वतंत्रता का पक्षधर है और सूचनाओं के स्वतंत्र आदान-प्रदान के लिए कृतसंकल्प है। इसीलिए वह उसने साथ में अपनी पारदर्शिता रिपोर्ट भी प्रकाशित की जिसके आधार पर बीजेपी नेताओं के ट्वीट को टैग किया गया।
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भारत अकेला लोकतंत्र नहीं है जो ट्विटर के इस तरह के अनुरोध करता है। अमेरिका में राष्ट्रपति की रक्षा करने वाली सीक्रेट सर्विस राष्ट्रपति के खिलाफ किए गए हर खतरे का आकलन करने के लिए बाध्य है, भले ही वह मजाक में ही क्यों किया गया हो। लेकिन यह विचारों की सेंसरशिप नहीं है। पर, भारत में जो कुछ हो रहा है वह यह कि सरकार की आलोचना करने पर पाबंदी लगाई जा रही है। साथ ही विपक्ष को जानबूझकर बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। और जब यह झूठ पकड़ा जाता है तो यह जवाबदेही का विरोध करती है।
भारत भी क्या चीन के रास्ते पर चल पड़ा है जहां सोशल मीडिया पर सरकार का एक तरह का पूर्ण नियंत्रण है और सरकार हर किस्म के संदेश को देख-सुन सकती है और उस पर पैनी नजर रखती है। इसे समझने में कोई रॉकेट साइंस नहीं लगती कि भारत में अब बोलने की स्वतंत्रता वैसी नहीं रही जैसी कि मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले तक थी। कुछ लोकतंत्र ऐसे हैं जहां सरकार अपना जोर चलाकर नागरिक के बोलने पर पहला लगाती है, और भारत में भी अब ऐसा ही हो रहा है। इसके लिए नागिरकों को जेल भेजा जा रहा है, स्वतंत्र अभिव्यक्ति के लिए आपराधिक मानहानि, राष्ट्रद्रोह जैसे मुकदमे हो रहे हैं।
लेकिन किसी भी तरह सरकार की आलोचना बरदाश्त नहीं की जा रही है। सरकार सिर्फ एक ही सूत्रवाक्य चाहती है और उसके विरोध में उठने वाली आवाजों को दबाना चाहती है। पूरे टूलकिट मामले में यही हकीकत एक बार फिर खुलकर सामने आ गई है।
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