मनहूस! केवल एक यही शब्द है जो वर्ष 2020 के संबंध से दिमाग में कौंध पड़ता है। अरे, इस बीत रहे वर्ष को मनहूस न कहा जाए तो फिर कौन-सा वर्ष होगा जिसे आप मनहूस कहेंगे! यह वह वर्ष है जब मानवता ताले में बंद हो गई। लगभग सारा संसार मौत के खौफ से डरा-सहमा स्वयं अपनी मर्जी से घरों में बंद हो गया। मानव इतिहास में जो कुछ आज तक नहीं हुआ, वह वर्ष 2020 में हो गया। मानव जगत में ऐसा कोई दूसरा वर्ष नहीं मिलता जब इंसान पेट के लिए दो रोटी कमाना भूलकर चुपचाप अपनी इच्छा से घर में दुबक गया हो।
सन 2020 में यही हुआ। बाजार बंद, कारखाने बंद, ऑफिस-दफ्तर बंद, रेलगाड़ी बंद, हवाई जहाज हवाई अड्डों पर खामोश खड़े और सड़कों पर चलने-फिरने का हर साधन बंद। चारों ओर सन्नाटे का आलम। दिन में पत्ता खड़के तो दिल दहल जाए। चारों ओर मौत का सन्नाटा, डरी-सहमी और सिकुड़ी जिंदगी। एक ऐसा जीवन जिसकी कल्पना कर अब दिल कांप उठता है।
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यह क्यों और कैसे हुआ? इस प्रश्न का उत्तर अभी तक किसी के पास नहीं। वह मानव जो इस अकड़ में था कि उसने प्रकृति को संपूर्णतया अपनी मुट्ठी में कर लिया है, उसे एक मामूली से वायरस ने बेबस कर दिया। चीन से उत्पन्न एक मामूली वायरस ने दो महीनों के भीतर ऐसी छलांग लगाई कि मानवता की सारी उन्नति एवं प्रगति उसके आगे धरी-की-धरी रह गई। कितने हजारों वर्ष लगे थे इस मानव जाति को प्रकृति को अपनी मुट्ठी में बंद करने में।
वह डरते-डरते जंगलों से बाहर निकला। दो पत्थरों को रगड़ कर उसने आग जलानी सीखी। फिर उसको खाना बनाने की चाह हुई। खाने के लिए केवल शिकार ही नहीं बल्कि जंगलों में उगी सब्जियां और गेहूं को उसने अपना भोजन बनाया। फिर भोजन के लिए अनाज इकट्ठा करने के लिए नदियों के किनारे खेती-बाड़ी आरंभ कर दी और इस प्रकार धीरे-धीरे नगर बने और मानव सभ्यता चल पड़ी।
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धीरे-धीरे मानव जाति को यह समझ में आने लगा कि प्रकृति ही सबसे बड़ा खजाना है और इसके रहस्यों को समझकर वह उन्नति और प्रगति प्राप्त कर सकता है। बस, प्रकृति के इन रहस्यों को ही अंततः विज्ञान की संज्ञा दे दी गई। अरे, हम-आप जिसे न्यूटन लॉ कहते हैं, वह न्यूटन ने तो जन्मे नहीं थे। न्यूटन से हजारों वर्ष पूर्व भी सेब पक कर जमीन पर गिरता ही था। न्यूटन का कमाल बस यह था कि वह पहला मानव था जिसको प्रकृति का यह रहस्य समझ में आया कि धरती चीजों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
बस, मानव ने अब प्रकृति के रहस्यों की ऐसी खोजबीन करनी आरंभ की कि उसने भाप से इंजन चला लिया और बिजली बना ली। फिर क्या था, एक औद्योगिक क्रांति उत्पन्न हो गई, जिसे वह ‘इंडस्ट्रीयल रिवोल्यूशन’ कहने लगा। और इस सभ्यता ने ऐसी छलांग लगानी शुरू की कि 21वीं सदी आते-आते मोबाइल फोन, वाट्सएप, फेसबुक और कहानी जूम तक पहुंच गई।
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परंतु इस प्रगति की होड़ में मानव यह भूल गया कि वह जिस उन्नति पर अकड़ता है, वह प्रकृति के रहस्यों पर आधारित है। यह भूलकर उसने दुनिया से जंगल ही खत्म करने आरंभ कर दिए। नदियों को ऐसा गंदा किया कि वे सूखने लगीं। प्रकृति ने उसको जमीन के नीचे जो पानी दिया था, उसे ऐसा खींचा कि नगर के नगर गर्मियों में पानी के अकाल से तड़प उठे। समुद्रों को पाट कर पूरी-पूरी बस्तियां बना दीं। उन्नति की होड़ में ऐसा धुआं उगलते कारखाने बना डाले कि दिन अंधेरे होने लगे। अब तो मानव ऐसी अकड़ में आ चुका था कि वह यह भूल ही गया कि उसने जो कुछ भी प्राप्त किया है, वह उसकी अपनी देन नहीं बल्कि प्रकृति के रहस्यों की समझ है। वह तो प्रकृति के आगे पहले भी बौना था और आज भी वैसे ही छोटा है।
जाहिर है, मानवता की इसी अकड़ ने प्रकृति को ऐसा क्रोधित किया कि उसकी कोख से जन्मे एक मामूली से वायरस ने उसकी संपूर्ण सभ्यता और उन्नति एवं प्रगति को ऐसा तहस-नहस कर दिया कि वह चीख उठा- भगवान दया कर! परंतु प्रकृति के प्रलय ने ऐसा तांडव किया कि उसकी संपूर्ण साइंस और टेक्नोलॉजी ठप हो गई। उसने बहुत अकड़ से और बहुत मेहनत के बाद इस महामारी को वश में करने के लिए एक वैक्सीन बनाई तो एक सप्ताह के भीतर इंग्लैंड में उसी कोरोना वायरस ने एक ऐसा नया रूप धारण कर लिया कि उसकी वैक्सीन धरी की धरी रह गई और फिर यह हल्ला मच गया कि क्या फिर जनजीवन लॉकडाउन की नजर हो जाएगा।
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अर्थात सन 2020 के आगमन पर जिस मनहूसियत का आरंभ हुआ था, वही मनहूसियत और बेबसी एक बार फिर सन 2021 के आरंभ में मुंह खोले खड़ी है। अब क्या हो! फिर वही प्रश्न! और फिर इस प्रश्न का कोई ठीक उत्तर नहीं। परंतु मानव भी हार मानने वाला प्राणी तो है नहीं। उत्तर तो चाहिए ही चाहिए। और उत्तर मिलेगा भी इसी प्रकृति की कोख से। फिर इसी प्रकृति के नियमों को समझकर ही इस कोविड-19 की कोई काट निकलेगी। आखिर हैजा, टीबी, एड्स- जैसी महामारी को इंसान ने काबू किया ही और अंततः कोरोना वायरस भी काबू में आ जाएगा। परंतु इस बार प्रकृति ने जो चेतावनी दी है, उससे मानवता के लिए सबक सीखने का समय है।
कोरोना वायरस महामारी संपूर्ण मानवता के लिए गंभीर चेतावनी है। इस महामारी की आड़ में वास्तव में प्रकृति हमको चेतावनी दे रही है- बस, अब यह हद है। वह हमको यह याद दिला रही है कि जिन जंगलों से निकल कर आए, हम उन्हीं के दुश्मन हो गए। हमें जिन पहाड़ों ने गंगा-जमुना जैसी बड़ी-बड़ी नदियां दीं, हमने उन पहाड़ों को ही काटना आरंभ कर दिया। जिस प्रकृति के नियमों को समझकर सभ्यता को जन्म दिया और प्रगति और उन्नति की छलांगें लगाई, उसी को अपने अधीन करने की चेष्टा आरंभ कर दी।
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यदि मानव अभी भी प्रकृति से वही खिलवाड़ करता रहा तो फिर प्रलय भी संभव है। क्योंकि यदि एक छोटा-सा कोरोना वायरस पूरी मानव सभ्यता को ठप कर सकता है तो फिर ये नदियां, ये पहाड़, ये समुद्र क्रोध में आ गए तो फिर प्रलय ही तो होगी। धार्मिक ग्रंथों में प्रलय का वर्णन कुछ ऐसा ही है कि जब शिव का तीसरा नेत्र खुल जाएगा तो पहाड़ रूई के गालों की तरह उड़ जाएंगे और समुद्र जमीन को निगल लेंगे।
सन 2020 में जीवन केवल थम-सा गया है। मानव उन्नति रुक-सी गई है। अभी तक दुनियाभर में 17,03,584 मौतें हुई हैं। अभी भी कोई प्रलय नहीं आई है। यह प्रकृति की ओर से केवल एक चेतावनी है। यदि मानवता प्रकृति के साथ ऐसा ही खिलवाड़ करती रही तो फिर प्रलय भी संभव है। अतः अब नए वर्ष में इस चेतावनी से सीखकर आगे भी बढ़ना होगा। प्रश्न यह है कि आगे बढ़ने का नया रास्ता क्या है? वह रास्ता तो मानवता को मिल-बैठ कर ढूंढना होगा।
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परंतु इस 2020 की मनहूसियत से बचने के लिए मानव जाति को औद्योगिक क्रांति की कोख से जन्मी क्रांति पर लगाम लगानी होगी, अर्थात साइंस और टेक्नोलॉजी पर आधारित सभ्यता एवं प्रकृति के बीच एक संतलुन तथा समन्वय पैदा करना होगा। क्योंकि साइंस के बगैर भी नहीं जिया जा सकता और प्रकृति को भी तहस-नहस नहीं किया जा सकता है। इन दोनों अर्थात प्रकृति और साइंस एवं टेक्नोलॉजी पर आधारित सभ्यता के बीच संतलुन में ही मानवता की भलाई है।
सन 2021 में इस सबक के साथ आगे बढ़ने से ही 2020 की मनहूसियत टल सकती है। और शायद मानव जाति को यह समझ में भी आ रहा है। संकटों की कोख से बुद्धि आती है। आशा रखिए कि 2021 में मानवता इसी सद्बुद्धि से 2020 के संकट को हर लेगी।
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