विचार

जी-20 बनाम वी-20 : गरीबों को हटाने और गरीबी को छिपाने की कवायद आखिर किसके लिए!

भारत संभवतः जी-20 के सदस्य देशों में सबसे गरीब है। फिर भी, वह अपनी प्रगति और विकास का दिखावा करने पर अंधाधुंध पैसे खर्च कर रहा है। गरीबी दिखाने वाले चिह्नों को हटाया-ढका जा रहा है। जाहिर है, इसकी कीमत तो उन्हीं आम और गरीब लोगों को चुकानी पड़ रही है।

G20 शिखर सम्मेलन दिल्ली में 9 और 10 सितंबर को होना है
G20 शिखर सम्मेलन दिल्ली में 9 और 10 सितंबर को होना है 

नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन कितनी बड़ी बात है? विदेश मंत्री एस. जयशंकर और सरकार के अन्य लोगों के मुताबिक तो यह बहुत बड़ी बात है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि कभी भी इतने सारे विश्व नेताओं ने एक ही समय में भारत का दौरा नहीं किया। वे कहते हैं, यह दिखाता है कि भारत ‘वैश्विक दक्षिण’ की आवाज बनकर उभरा है। हालांकि, अतिउत्साह को काबू करना जरूरी है। दिए जा रहे बयानों और उनके प्रतिवाद पर निष्पक्ष नजर डालते हैं।

पिछले 10,000 वर्षों में भारत को कभी भी जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी का सम्मान नहीं मिला (सही है। जी-20 का गठन ही 1999 में हुआ और इसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं!)

अमृत काल का धन्यवाद, हर देश के नेताओं ने सर्वसम्मति से भारत को जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी के लिए चुना क्योंकि हम दुनिया में सबसे अच्छे और सबसे प्रतिष्ठित देश हैं (गलत। जी-20 के सदस्य देश रोटेशन के आधार पर शिखर सम्मेलन की मेजबानी करते हैं। पिछले शिखर सम्मेलन इंडोनेशिया, इटली और सऊदी अरब (वर्चुअल शिखर सम्मेलन) में आयोजित किए गए। जहां तक ‘सर्वश्रेष्ठ’ देश होने की बात है, अन्य सदस्य जानते हैं कि हम कहां खड़े हैं, इसलिए इसे तो छोड़ ही दें।)

जी-20 की मेजबानी करके भारत सरकार भारत की गरीबी, बेरोजगारी, सांप्रदायिक घृणा, पर्यावरणीय गिरावट, बढ़ती असमानता और बढ़ती मूर्खता की सदियों पुरानी समस्याओं को एक ही बार में हल कर देगी (हां/नहीं। जो लोग नहीं चाहते कि आईबी या आयकर विभाग उनके पीछे पड़े, वे ‘हां’ कह सकते हैं। अन्य लोग गुमनाम रहते हुए ‘नहीं’ कह सकते हैं) ।

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सितंबर महीने की 9 और 10 तारीख को नई दिल्ली जी-20 के सदस्य देशों के शासनाध्यक्षों की मेजबानी करेगी। कनॉट प्लेस और खान मार्केट सहित ‘नई दिल्ली पुलिस जिले’ में कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों, बैंकों और बाजारों को इस दौरान बंद करने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। झुग्गियों को ध्वस्त कर दिया गया है, सड़क पर रेहड़ी-पटरी वालों को दूसरी जगह भेजने को कहा गया है और दुकानदारों के अलावा उनमें से ज्यादातर को शिखर सम्मेलन के दौरान व्यवसाय और उनकी कमाई का नुकसान होगा।

डिनर, एक शानदार उद्घाटन समारोह, हेरिटेज वॉक, सांस्कृतिक कार्यक्रम और फोटो-ऑप होगा। नेताओं के स्वागत के लिए लाखों पौधे वाले गमले, फूलों की क्यारियां और ‘फूल-फव्वारे’ लगाए जा रहे हैं। फरवरी, 2023 में एनडीएमसी (नई दिल्ली नगर निगम) ने जी-20 के ‘कार्यसमूह’ या मंत्रिस्तरीय बैठकों में से एक के लिए दिल्ली को सजाने के लिए नीदरलैंड से 1.24 लाख ट्यूलिप फूल आयात किए थे। मुख्य शिखर सम्मेलन के लिए और कितने फूल आयात किए जा रहे हैं, यह बाद में पता चल सकेगा। दिसंबर, 2022 में भारत के जी-20 की अध्यक्षता संभालने के बाद कथित तौर पर कई स्थानों पर ऐसी सौ बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं। इन पर कितना खर्च हुआ होगा, इसकी कल्पना ही की जा सकती है। 

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हालांकि शिखर सम्मेलन की मेजबानी पर अंततः कितना खर्च किया जाएगा, इसका अंदाजा किसी को नहीं है लेकिन यह ज्ञात है कि वर्ष 2023-24 के लिए केंद्र सरकार के बजट में ‘भारत की जी-20 अध्यक्षता’ के लिए 990 करोड़ रुपये अलग रखे गए थे।

प्रधानमंत्री ने जी-20 शिखर सम्मेलन को सफल बनाने के लिए सभी का सहयोग मांगने के लिए पिछले साल एक सर्वदलीय बैठक को संबोधित किया था। काबिले गौर है कि उनका अब तक मणिपुर हिंसा पर सर्वदलीय बैठक को संबोधित करना बाकी है। बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि शिखर सम्मेलन ‘राष्ट्रीय गौरव’ से जुड़ा विषय है और यह हर राज्य को अपने आप को प्रदर्शित करने का अवसर देगा।

राज्यों को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने और अपने शिल्प, व्यंजन और ‘पर्यटन स्थलों’ का प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया गया। यह बताया गया कि यह ‘नेटवर्क’ बनाने, विचारों को साझा करने और व्यापार के अवसरों और सहयोग के अवसरों का पता लगाने का मौका देगा। बैठक में विपक्षी नेताओं ने प्रधानमंत्री से कहा कि वह जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी को सरकार की ‘उपलब्धि’ के तौर पर न गिनाएं क्योंकि यह तो रोटेशन से मिलती है। हालांकि उन्होंने इसमें सहयोग करने की पेशकश की। निश्चित रूप से राज्यों के पास इस पर अमल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

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मणिपुर ने इस साल फरवरी में पहली बैठकों में से एक की मेजबानी की और प्रतिनिधियों के मनोरंजन के लिए इम्फाल में एक ‘जल मनोरंजन पार्क’ का अनावरण किया। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को उम्मीद थी कि बैठक से राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन पहले से ही उबल रहा राज्य दो महीने बाद जातीय संघर्षों की चपेट में आ गया और अब तक उससे उबर नहीं सका है।

श्रीनगर स्मार्ट सिटी लिमिटेड (एसएससीएल) को मुख्य सड़कों पर स्थायी बंकरों को ‘नया रूप देने’ का काम सौंपा गया था जिसमें श्रीनगर हवाई अड्डे से डल झील पर शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर (एसकेआईसीसी) तक का मार्ग भी शामिल था, जो जी-20 बैठक का मुख्य स्थल था। बैठक में लगभग 200 प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिनमें से आधे से भी कम जी-20 देशों से थे। हालांकि श्रीनगर निवासियों को अपनी दीवारों को सफेद और अन्य रंगों में रंगकर बाहरी हिस्से को बेहतर बनाने के लिए कहा गया था।

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तमाम एहतियात के बाद भी कुछ शहरों में हल्के-फुल्के विरोध प्रदर्शन हुए। विशाखापत्तनम में जन सेना पार्टी ने जी-20 वर्किंग ग्रुप कमेटी की बैठक से पहले आरोप लगाया कि विकास कार्यों के नाम पर जनता के पैसे का दुरुपयोग किया गया है। आरोप लगाया गया कि ‘फेसलिफ्टिंग’ का काम एनएच-16, बीच रोड और कुछ अन्य इलाकों तक ही सीमित था जहां प्रतिनिधियों के जाने की संभावना थी। पार्टी ने कहा कि ठेका देने में मानदंडों का उल्लंघन किया गया और आपातकालीन खरीदारी की गई। गुस्से से भरे प्रवक्ता ने कहा, ‘चट्टानों पर आठ जानवरों की पेंटिंग के लिए, जीवीएमसी ने 12 लाख रुपये खर्च करने का दावा किया है। चट्टानों पर जानवरों की पेंटिंग के लिए इतनी रकम भला कौन देता है?’ 

हालांकि जी-20 सरकार के लिए एक ‘बड़ी बात’ है। इस साल की शुरुआत में ऑस्ट्रिया में भारतीय प्रवासियों को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘मुझसे कभी-कभी यह सवाल किया जाता है, आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वे कौन लोग हो सकते हैं, कि यह (जी-20 शिखर सम्मेलन) तो आपको मिलना ही था तो भला इसमें बड़ी बात क्या है? लेकिन यह बहुत बड़ी बात है। क्योंकि हमारे राजनयिक इतिहास में, हमारे यहां पहले कभी इतने शक्तिशाली देश- दुनिया की शीर्ष 20 अर्थव्यवस्थाएं- नहीं आए। ये आज वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का बड़ा हिस्सा हैं और विश्व व्यापार पर हावी हैं।’ 

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जी-20 शिखर सम्मेलन कितनी बड़ी बात है, यह हमसे कहीं बेहतर कोई भी गरीब व्यक्ति समझ सकता है। शिखर सम्मेलन ऐसे नेताओं को एक साथ ला सकते हैं जो ‘व्यक्तिगत रूप से कुछ नहीं कर पाते और एक समूह के रूप में मिलकर इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि हां, कुछ नहीं किया जा सकता’। लेकिन गरीबों को बताया गया है कि शिखर सम्मेलन उनके लिए है। नेता गरीबी, आवास की कमी, जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं का समाधान देंगे। इसलिए, उन्हें कुछ बलिदान देना होगा क्योंकि इसमें राष्ट्र का गौरव शामिल है।

जहां जी-20 कार्य समूह या इसकी मंत्रिस्तरीय बैठकें हुई हैं, उनमें से ज्यादातर शहरों के सबसे गरीब लोग पहले ही इसकी कीमत दे चुके हैं। अकेले दिल्ली में हजारों लोगों को बेदखल कर दिया गया है, उनके अस्थायी आवास ध्वस्त कर दिए गए जिनमें से तमाम को अधिकारियों द्वारा मंजूरी मिलने के बाद पानी और बिजली जैसी सुविधाएं दी जा रही थीं । तर्क दिया गया कि ये झोंपड़ियां आंखों को खटकेंगी।

स्ट्रीट वेंडर जो वर्षों से पर्यटकों और लोगों की आवाजाही वाली जगहों पर अपना सामान बेचते रहे हैं, उन्हें हटा दिया गया है। पूर्व नौकरशाह और ऐक्टिविस्ट हर्ष मंदर ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘इन कामकाजी हाथों के बिना शहर एक दिन भी नहीं चल सकता, लेकिन हम उनके लिए कोई जगह नहीं बनाएंगे। हम चाहते हैं कि वे अलादीन के जिन्न की तरह हमारी सेवा में आएं और फिर काम पूरा करके गायब हो जाएं।’

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जागरूक नागरिकों और ऐक्टिविस्टों द्वारा ‘वी-20’ के तहत आयोजित जन अदालत ने एक सार्वजनिक सुनवाई की और उसके बाद पिछले महीने बेदखली पर रिपोर्ट जारी की। पीड़ितों ने अधिकारियों द्वारा गरीबी छिपाने की कोशिशों के बारे में बताया। नागपुर पुलिस कमिश्नर ने आदेश दिया कि जी-20 बैठक के दौरान कोई भी भिखारी सड़क-चौराहे पर दिखाई न दे। मुंबई में, वाकोला और विले पार्ले के फूल बेचने वालों को बांद्रा स्थानांतरित कर दिया गया। जिन झुग्गियों और झोपड़ियों को तोड़ा नहीं जा सका, उन्हें प्लास्टिक की घास या स्टील फ्रेम से बैरिकेड करके उनपर प्लास्टिक शीट डाल दी गई। क्या जी-20 को गरीबों पर शर्म आती है?

जी-20 की बैठक उधम सिंह नगर में नहीं हुई, लेकिन प्रतिनिधियों को राम मनोहर लोहिया बाजार से होकर गुजरना था। रास्ते में जिनकी दुकानें पड़ रही थीं, उन्हें कहा गया कि वे खुद ही अपनी दुकानों को ढक लें लेकिन इसे लोगों ने अनसुना कर दिया। नतीजा यह हुआ कि जीर्ण-शीर्ण बाजार को ध्वस्त कर दिया गया।

गुजरात के भुज में अडानी द्वारा संचालित अस्पताल के बगल में सड़क किनारे लगे स्टालों को 10 दिनों तक हट जाने को कहा गया। अब खबरें हैं कि उन्हें स्थायी रूप से वहां से बेदखल कर दिया गया है।

इंदौर में भी बैठक की मेजबानी कर रहे कन्वेंशन सेंटर के पास के रेहड़ी-पटरी वालों को देश का गौरव बनाए रखने के लिए वहां से चले जाने को कहा गया है।

दार्जिलिंग में जी-20 वर्किंग ग्रुप की बैठक खत्म होने के बाद भी फेरीवालों को माल रोड पर वापस आने की इजाजत नहीं दी गई।

गुवाहाटी में फुटपाथों को विक्रेताओं से साफ कर दिया गया और विशाखापत्तनम में हजारों फेरीवालों को हटा दिया गया।

महाबलीपुरम में विक्रेताओं से कहा गया कि जब तक जी-20 प्रतिनिधि आसपास हैं, वे दिखने नहीं चाहिए। 

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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में तो बड़ी ही बेरहमी के साथ बेदखली की कार्रवाई की गई है। पिछले कुछ महीनों के दौरान महरौली, कुतुब मीनार, सराय काले खान, तुगलकाबाद और यमुना पुश्ता के आसपास के इलाकों को ‘साफ’ कर दिया गया है। पीड़ितों में एक पूजा ने कहा, ‘हमें खाली करने के लिए तीन घंटे का समय दिया गया था। अब हम फ्लाईओवर के नीचे रह रहे हैं।’ यमुना के बाढ़ क्षेत्र को ‘विश्व स्तरीय’ शहरों, कॉन्डोमिनियम, मनोरंजक सुविधाओं, गोल्फ कोर्स, मॉल और राजमार्गों ने अपने कब्जे में ले लिया है। वहां सदियों से रह रहे लोगों को बेदखल कर दिया गया है। बेला एस्टेट के एक पीड़ित ने पूछा, ‘जबकि अक्षरधाम मंदिर जैसे निर्माण को वैध माना जाता है, खेतों और किसानों को अवैध क्यों माना जाता है?’

रिपोर्ट में एक ऐक्टिविस्ट सुचेता डे के हवाले से कहा गया है कि ‘आज दिल्ली एक युद्ध का मैदान बन गई है। यह लड़ाई सरकार और शहर के सबसे गरीब लोगों के बीच है। अगर आप आज तुगलकाबाद जाएं तो आपको ऐसा लगेगा मानो यहां हवाई बमबारी हुई हो।’ अदालत से किसी तरह की राहत नहीं मिलने की बात करते हुए डे कहती हैं कि ‘पहले कम-से-कम अस्थायी स्थगन आदेश प्राप्त करना संभव था लेकिन अब नहीं।’

कानूनी ऐक्टिविस्ट करुबाकी मोहंती कहते हैं कि अदालतों को बताया गया है कि वे लोग ‘अतिक्रमणकारी’ थे और उनके पास जमीन का कोई कानूनी अधिकार नहीं था। अदालतों के उन तमाम आदेशों का ध्यान नहीं रखा गया कि सरकार को पुनर्वास की व्यवस्था करने के बाद ही लोगों को बेदखल करना चाहिए।

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जाने-माने समाजशास्त्री पार्थ चटर्जी ने 2017 में लिखा था, ‘(हम भारत के) लोग’ ऐसे संसाधन हैं जिनका उपयोग राज्य द्वारा राजनीतिक विधान के लिए किया जाता है। वह कहते हैं, ‘यह बमुश्किल वंचितों, कमजोरों और असहायों को नागरिक मानता है, सिवाय उस समय के जब राज्य को लगता है कि इन खास समूहों का भरोसा खोने से उसे भारी राजनीतिक नुकसान हो सकता है।’ 

सीमा की दुर्दशा इस तर्क का समर्थन करेगी। वह सराय काले खां इलाके में सरकार द्वारा बनाए गए ‘रैन बसेरा’ में रह रही थी। लेकिन जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले इस रैन बसेरा को तोड़ दिया गया। ऐसा करने को जायज ठहराने के लिए दलील दी गई कि इस आश्रय गृह का उपयोग ‘शराबी, नशेड़ी और जुआरियों’ द्वारा किया जा रहा था। 

सीमा पिछले साल दुर्घटना का शिकार हो गई थीं जिसमें वह अपने दोनों पैर खो बैठी थी। सौंदर्यीकरण अभियान ने उन्हें एक बच्चे के साथ खुले आकाश के नीचे छोड़ दिया है। वह चीख पड़ती हैं- आखिर मैंने क्या अपराध किया था? 

(सार्वजनिक सुनवाई और वी-20 पीपुल्स समिट द्वारा संकलित रिपोर्ट के इनपुट के साथ)

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