आमतौर पर हम जानते हैं कि अच्छी फिल्म बनाने की पहली शर्त अच्छी पटकथा यानी स्क्रीन प्ले होती है। लेकिन सिनेमा का कोई गंभीर प्रेमी या छात्र उससे भी पहले की एक शर्त की बात करेगा। वह शर्त क्या है? अच्छी कहानी! सबसे पहले आपके पास एक अच्छी कहानी होनी चाहिए। लेकिन यह समझ कई लोगों के पास नहीं होती। वे अच्छी पटकथा की बात करेंगे लेकिन उससे पहले उस अच्छी कहानी की बात नहीं करेंगे जिसकी नींव पर अच्छी पटकथा का भवन खड़ा होना है।
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‘कैश’, ‘दस’ और ‘रा वन’ जैसी सामान्य से भी औसत फिल्में बनाने वाले अनुभव सिन्हा ने जब ‘मुल्क’, ‘आर्टिकल 15’ जैसी संवेदनशील और बॉक्स ऑफिस पर सफल फिल्में बनाईं तो लोगों को उनके इस ‘ट्रांसफॉर्मेशन’ पर ताज्जुब हुआ। कई लोगों ने उनकी बदलती सिनेमाई समझ की तारीफ की। लेकिन जो बात महत्वपूर्ण है, वह यह कि उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में कहा कि सालों बाद यह समझ में आया कि सबसे महत्वपूर्ण चीज कहानी होती है। अगर आपके पास एक अच्छी कहानी है, तो आप एक अच्छी फिल्म बना सकते हैं, लेकिन अगर आपके पास कहानी ही नहीं है और आप जबरन एक कहानी बनाकर उस पर एक धांसू सी पटकथा लिख भी दें तो खराब फिल्म ही बनेगी।
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यह एक सच है। लेकिन इसका एक दूसरा पक्ष भी है। जरूरी नहीं कि आप एक अच्छी कहानी या विषय पर एक अच्छी फिल्म बना डालें। हाल में कई ऐसी फिल्में आईं जो अच्छे विषय या अच्छी कहानी के बावजूद खराब फिल्में थीं। उन फिल्मों को आलोचकों ने धोया और वो बॉक्स ऑफिस पर भी पिटीं।
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वैसे, हमारा मकसद यहां सिर्फ उस शख्सियत के बारे में बात करना है जिसे आजकल इस पूरे मामले का सबसे मजबूत खिलाड़ी कहा जा रहा है। यानी, अपनी फिल्मों की कहानी और पटकथा चुनने में। यह सच है कि आयुष्मान खुराना ने ‘विकीडोनर’ को नहीं चुना। ‘विकीडोनर’ ने आयुष्मान खुराना को चुना। शुजीत सरकार जब इस फिल्म की कहानी को लेकर घूम रहे थे, तो कोई अभिनेता इस स्पर्म डोनर वाले चरित्र की कहानी को करने के लिए तैयार नहीं था। शुजीत सरकार ने इस नए अभिनेता को चुना और उसके बाद जैसा कि सामान्य बोलचाल में कहा जाता है कि आयुष्मान खुराना ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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फिल्म की सफलता का कोई फॉर्मूला नहीं होता। लेकिन कुछ अभिनेताओं का ट्रैक रिकॉर्ड ऐसा रहा है कि वे ऐसी फिल्में चुनते हैं कि वे सफल होती हैं। अक्षय कुमार और आमिर खान के बारे में भी यही कहा जाता है कि उन्हें दर्शकों की नब्ज मालूम है। उन्हें मालूम है कि उन्हें क्या पसंद आएगा और क्या नहीं। लेकिन हाल की बात करें तो आमिर खान की पिछली फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ और अक्षय कुमार की हाल की फिल्म ‘हाउसफुल 4’ दोनों न केवल खराब फिल्में थीं बल्कि बॉक्स ऑफिस पर पिट भी गईं। हालांकि, अक्षय कुमार बॉक्स ऑफिस के उन आंकड़ों को सही ठहरा रहे हैं जिनको लेकर विवाद चल रहा है। विवाद यह है कि ‘हाउसफुल 4’ को हिट करार देने के लिए फर्जी बॉक्स ऑफिस आंकड़े मीडिया और फिल्म ट्रेड वेबसाइट्स में ‘प्लांट’ किए जा रहे हैं।
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अब अगर हम आयुष्मान खुराना की बात करें, तो उनका ट्रैक रिकॉर्ड लगातार सफल फिल्में देने का बन गया है। नजर डालते हैं उनकी सफल फिल्मों पर। ‘दम लगा के हैसा’, ‘बरेली की बर्फी’, ‘शुभ मंगल सावधान’, ‘अंधाधुन’, ‘बधाई हो’, ‘आर्टिकल 15’, ‘ड्रीम गर्ल’, ‘बाला’... सारी की सारी हिट! सिर्फ हिट ही क्यों कहें? सारी की सारी ऐसी फिल्में जो अलग-अलग विषयों पर बनी हैं, जिन्हें फिल्म आलोचकों ने सराहा, जो बॉक्स ऑफिस पर चलीं और जिनसे फिल्म इंडस्ट्री का भला हुआ। इसे इस तरह भी समझिए कि अगर कोई फिल्म पचास करोड़ लगाकर सत्तर करोड़ का व्यवसाय कर रही है तो वह घाटे का सौदा है, लेकिन अगर कोई फिल्म पच्चीस- तीस करोड़ लगाकर सौ करोड़ से ऊपर का कारोबार कर रही है, तो निश्चित तौर पर यह लाभ का सौदा है। आयुष्मान खुराना ने बॉलीवुड के कुछ बड़े सितारों की नींद खराब कर दी होगी, संदेह नहीं।
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एक बात और गौर करने वाली है। कुछ समय पहले तक कहानी और पटकथा पर पकड़ के मामले में आयुष्मान खुराना के साथ जिस एक और अभिनेता का नाम आता था, वह राजकुमार राव थे। ‘बरेली की बर्फी’ देखिए। किसी भी सीन में राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना से हल्के नहीं पड़े हैं लेकिन राव की कम से कम पिछली दो फिल्मों (‘जजमेंटल है क्या’ और ‘मेड इन चाइना’) से उनका ट्रैक रिकॉर्ड कमजोर पड़ा है।
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कहानियां किसी दुकान या फैक्टरी में नहीं मिला करतीं। कहानियां लेखकों के पास होती हैं। मुंबई में छोटे शहरों से आकर संघर्ष करने वाले लेखक कहानियां लेकर आते हैं। उनमें से कुछ के पास अच्छी कहानियां होती हैं। लेकिन अगर उनकी पहुंच किसी स्टार तक नहीं है, तो स्टार तक अच्छी कहानियां कैसे पहुंचेंगी? आयुष्मान खुराना ने इस सच्चाई को समझा है। वह लेखकों से, नए लेखकों से मिलते हैं। उनकी कहानियां सुनते हैं। अगर उन्हें जमती हैं, तो वह उनसे दोबारा, तिबारा मिलते और बातें करते हैं। यह भी बहुत जरूरी है कि आप लोगों की बातें सुनें। उनके तर्क समझें। उनकी अच्छाई को सामने लाएं। उन्हें उनकी कमजोरी बताकर सुधारने को कहें। लेकिन ज्यादातर फिल्मस्टार और बड़े फिल्मकार तक संघर्षशील लेखकों की पहुंच ही नहीं होती।
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हां, एक बात जो रह ही गई कि जरूरी नहीं कि अच्छे विषय पर अच्छी फिल्में ही बनें। खुराना की ‘बाला’ की लगभग सभी फिल्म आलोचकों ने जमकर तारीफ की है। ‘बाला’ के पहले इसी विषय (उम्र से पहले गंजापन) ‘उजड़ा चमन’ आई। विषय अच्छा लेकिन फिल्म के लेखक और निर्देशक ने इसे औसत से भी नीचे की एक फिल्म बना दिया। आलोचकों ने फिल्म को धो डाला। लेकिन यहां यह भी बेमानी होगा कि आप खुराना की इस मजबूत स्थिति के लिए सिर्फ उन्हीं को माला पहना कर श्रेय दें और उन फिल्म लेखकों और फिल्मकारों को भूल जाएं जो उनकी सफल फिल्मों के पीछे थे या हैं।
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हम सब जानते हैं कि फिल्म विधा, कोई पेंटिंग या गायन जैसी विधा नहीं है जो आप अपने बूते साधते हैं। इस विधा में एक टीम होती है। और यह आपकी कला है कि आपने कैसे टीम चुनी है। अच्छी या बुरी। तो कहने का मतलब यह कि आयुष्मान खुराना के अगर सितारे बुलंद हैं तो इसके लिए भाग्य के सितारे की जो थोड़ी बहुत भूमिका हो, उनकी अपनी समझ की बड़ी भूमिका है। उनकी अगली दो फिल्में हैं : ‘गुलाबो सिताबो’ (अमिताभ बच्चन के साथ) और ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’। यकीन मानिए, ये दोनों भी हिट होंगी!
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