ट्विटर हर साल दो बार ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट प्रकाशित करता है। इस रिपोर्ट में बहुत सारी जानकारी के साथ ही यह भी बताया जाता है कि किस देश की सरकार ने ट्विटर से कितने यूजर्स की जानकारी मांगी और कितने मैसेज को हटा देने का फरमान जारी किया। ट्विटर इस रिपोर्ट को वर्ष 2012 से लगातार प्रकाशित कर रहा है और सरकार द्वारा यूजर्स की जानकारी मांगने के सन्दर्भ में अमेरिका लगातार पहले स्थान पर रहा है। इसी जुलाई के शुरू में ट्विटर की नई ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट आई है, जिसमें जुलाई 2020 से दिसंबर 2020 तक के आंकड़े हैं। इस रिपोर्ट में पहली बार भारत ने अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए पहला स्थान हासिल किया है। निश्चय ही अभिव्यक्ति की गुलामी के सन्दर्भ में मोदी जी के राज में तथाकथित न्यू इंडिया विश्वगुरु बन गया है।
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इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष जुलाई से दिसंबर के बीच ट्विटर को दुनिया भर की सरकारों द्वारा यूजर्स की जानकारी मांगने से संबंधित कुल 14561 आदेश मिले, जो 51584 एकाउंट्स से संबंधित थे। इसमें से लगभग 25 प्रतिशत, कुल 3615 आदेश, अकेले भारत सरकार द्वारा दिए गए। अमेरिका की हिस्सेदारी महज 22 प्रतिशत ही रही। जनवरी से जून 2020 की तुलना में भारत सरकार द्वारा ट्विटर यूजर्स की जानकारी मांगने के आदेशों में जुलाई से दिसंबर के बीच 38 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी आंकी गई।
आंकड़ों से ऐसा पता चलता है कि अभिव्यक्ति की जिस कदर सरकारी गुलामी से मोदीमय न्यू इंडिया जूझ रहा है, वही हालात अमेरिका के भी हैं, पर ऐसा कतई नहीं है। हमारे देश में केंद्र सरकार सीधा यूजर्स की पहचान कर ट्विटर से सरकारी स्तर पर ही उसकी जानकारी मांगती है, जबकि अमेरिका में सरकार कोई जानकारी नहीं मांगती। वहां विभिन्न न्यायालयों में चल रहे मुकदमों में जब न्यायाधीश को ऐसी किसी जानकारी की आवश्यकता महसूस होती है, तब ट्विटर को जानकारी देने के लिए न्यायिक आदेश भेजा जाता है।
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ट्विटर की ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट के अनुसार सरकारी स्तर पर ट्विटर से कोई विशेष पोस्ट हटाने के आदेश के मामले भी मोदीमय न्यू इंडिया दुनिया में दूसरे स्थान पर है, केवल जापान हमसे आगे है। भारत के बाद इस सूचि में रूस, तुर्की और दक्षिण कोरिया हैं। ट्विटर को दुनिया भर से 131933 एकाउंट्स से कुल 38524 सामग्री/जानकारी हटाने के आदेश मिले, जिसमें से 6971 आदेश अकेले भारत से थे। जनवरी से जून 2020 की तुलना में भारत सरकार द्वारा ट्विटर यूजर्स के अकाउंट से जानकारी हटाने के आदेशों में जुलाई से दिसंबर के बीच 151 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी आंकी गई। भारत सरकार के इन आदेशों के स्तर का आकलन करने के लिए यह आंकड़ा महत्वपूर्ण है– ट्विटर ने दुनिया भर की सरकारों के आदेशों का औसतन 29 प्रतिशत अनुपालन किया, पर हमारे देश के लिए यह आंकड़ा महज 9.1 प्रतिशत ही है।
हमारे प्रधानमंत्री अभिव्यक्ति और मानवाधिकार की रक्षा के स्वयंभू मसीहा हैं और पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा जून 1975 से घोषित आपातकाल को लोकतंत्र का काला दिन लगातार बताते रहे हैं। अब, उनके राज में देश घोषित आपातकाल से अधिक बुरा दौर अघोषित आपातकाल झेल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने घोषित आपातकाल के दौर में क्या किया, यह कोई नहीं जानता– वैसे उनके चाय बेचने का किस्सा भी कोई नहीं जानता। पर, आपातकाल ख़त्म होने के बाद वर्ष 1978 में उन्होंने गुजराती में एक पुस्तक प्रकाशित की, संघर्षमां गुजरात।
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इस पुस्तक में उन्होंने बताया है कि किस तरह उन्होंने अपनी वेशभूषा बार-बार बदल कर आपातकाल के पूरे 19 महीने के दौरान भूमिगत जीवन व्यतीत किया, सरकार के विरुद्ध आदोलनकारियों को सहायता पहुंचाई और तत्कालीन सरकार द्वारा प्रतिबंधित साहित्य और पुस्तकों को गुजरात के साथ ही मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र तक पहुंचाया। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि यह सब उन्होंने लोकतंत्र, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी को बचाने के लिए किया। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आज सत्ता के शीर्ष पर बैठे मोदी जी लोकतंत्र, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी पूरी तरह कुचल रहे हैं। पूरी दुनिया में लोकतंत्र के नाम पर जितने भी बड़े आन्दोलन हुए हैं, उसका ऐसा ही हश्र हुआ है।
इन्टरनेट पर नजर रखने वाली संस्था, असेस नाउ की एक रिपोर्ट के अनुसार इन्टरनेट पर पाबंदी लगाने के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है। ऐसा कारनामा हमारा देश वर्ष 2018 से लगातार करता आ रहा है। कश्मीर में लोकतंत्र बहाली के नाम पर इंटरनेट बंद कर दिया जाता है, आन्दोलनकारी किसानों से बातचीत के दिखावे के बीच इन्टरनेट बंद कर दिया जाता है, सरकार प्रायोजित दिल्ली दंगों के नाम पर इन्टरनेट बंद कर दिया जाता है और कभी-कभी तो बिना कारण ही डिजिटल इंडिया में यह कारनामा किया जाता है।
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साल 2020 में दुनिया के 29 देशों में सरकारी स्तर पर 155 बार इन्टरनेट बंद किया गया, जिसमें से 70 प्रतिशत से भी अधिक, 109 बार हमारे देश में ही बंद किया गया। हमारे देश में इन्टरनेट बंदी का आलम यह है कि इस सूचि में दूसरे स्थान पर यमन है, जहां महज 6 बार ऐसी बंदी की गई। पिछले वर्ष हमारे देश में कुल 8927 घंटे इन्टरनेट बंद किया गया, दूसरे स्थान पर म्यांमार है जहां 5160 घंटे की बंदी की गई।
साल 2014 से अभिव्यक्ति की सरकारी गुलामी से हम इस कदर घिर गए हैं कि इजराइल के एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित और दुनिया भर के निरंकुश और डरपोंक शासकों का चहेता निगरानी तंत्र पेगासस सॉफ्टवेयर की मदद से मोबाइल हैक करने की खबर भी कोई आश्चर्य नहीं पैदा करती। आश्चर्य इस तथ्य पर जरूर होता है कि इस सरकार ने केवल 40 पत्रकारों, राहुल गांधी समेत चन्द विपक्षी नेताओं, प्रशांत किशोर, पुर्व मुख्य न्यायाधीश पर आरोप लगाने वाली महिला और कुछ वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ही जासूसी की। सरकार ने अपने दो मंत्रियों के साथ यह कारनामा कर अपने कलंक को भी धो डाला, जैसे हत्यारे खून के दाग धोते हैं।
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भीमा कोरेगांव कांड के नाम पर मोदी सरकार के नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी ने मोदी सरकार की नीतियों के विरोध में खड़े लीगों को, जिसमें बहुत बुजुर्ग और अशक्त लोग भी हैं, लम्बे समय से जेल में डाला है। उन्हें आतंकवादी बताया गया और कहा गया कि इन लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी की हत्या का षड्यंत्र रचा। रोना विल्सन के लैपटॉप से ई-मेल भी अचानक बरामद कर लिए गए, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी के हत्या की साजिश रचने की बात कही गई थी। रोना विल्सन शुरू से ही कहते रहे थे कि उन्हें ई-मेल की और संबंधित फाईलों की जानकारी नहीं है और इसे किसी और ने उनके लैपटॉप में डाला है।
फरवरी 2021 में अमेरिका के मेस्सचुस्सेट्स स्थित प्रतिष्ठित डिजिटल फोरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग ने जांच के बाद पाया था कि विल्सन के लैपटॉप में 10 फाईलें मैलवेयर द्वारा डाली गईं थीं। इन दस फाईलों में वह बहुचर्चित ई-मेल भी शामिल था, जिसमें एनआईए के अनुसार प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश की बात कही गई थी। वाशिंगटन पोस्ट ने 20 अप्रैल 2021 को फिर से इस विषय पर समाचार प्रकाशित किया है, Further evidence in case against Indian activists accused of terrorism was planted, new report says।
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इस समाचार के अनुसार आर्सेनल कंसल्टिंग ने एनआईए कोर्ट में 27 मार्च को अपनी दूसरी रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसके अनुसार पहले की 10 फाईलों के अतिरिक्त 22 दूसरे डॉक्यूमेंट भी रोना विल्सन के लैपटॉप में मैलवेयर के माध्यम से डाले गए थे। इस रिपोर्ट से यह चिंता तो स्वाभाविक है कि मोदी सरकार अपने विरोधियों का दमन करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। मानवाधिकार कार्यकर्ता और कानूनी विशेषज्ञ शुरू से ही इस मुकदमे को मोदी सरकार की साजिश बताते रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार मोदी के भारत में विरोध का दायरा संकुचित हो चला है, विरोध करने वाले पत्रकारों, एक्टिविस्ट और आंदोलनकारियों को या तो जेल में ठूंस दिया जाता है, या फिर तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है।
अभी हम संसद में दिखावे के लिए ही सही, पर अभिव्यक्ति की आजादी की बात करते हैं, पर सेंट्रल विस्टा वाले नए संसद भवन तक पहुंचते-पहुंचते हम अभिव्यक्ति की गुलामी पर चर्चा करेंगें और इन सबके बीच हमारे प्रधानमंत्री लोकतंत्र, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति पर प्रवचन देंगें और अभिव्यक्ति को विलुप्त कर चुका मेनस्ट्रीम मीडिया इस प्रवचन को बार-बार प्रसारित करेगा। यही न्यू इंडिया है, जहां अभिव्यक्ति की आजादी भी सरकारी दया है।
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