विचार

देश की भलाई के लिए 'न्याय' और कृषि कानूनों की वापसी समेत सरकार को उठाने चाहिए यह 7 जरूरी कदम

देश को मौजूदा आर्थिक और सामाजिक संकट से उबारने के लिए सरकार को 'न्याय' लागू करने और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव खत्म करने के साथ ही कुछ कदम उठाने की सख्त जरूरत है। ऐसे में सरकार को इन सुझावों पर विचार करना अति आवश्यक है।

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फोटो : Getty Images Hindustan Times

हाल के अनेक अध्ययनों-सर्वेक्षणों से यह सामने आया है कि देश के जनसाधारण की कठिनाईयां और समस्याएं बहुत बढ़ गई हैं। गंभीर समस्याएं पहले से मौजूद थीं व कुछ समस्याएं कोविड-19 के दौर में तेजी से बढ़ गईं। अतः अब समय आ गया है कि केन्द्रीय सरकार कुछ ऐसे नीतिगत महत्त्वपूर्ण निर्णयों की घोषणा करे जिससे लोगों को बड़ी राहत मिले।

तुरंत लागू हो 'न्याय'

सबसे पहली राहत की जरूरत तो आर्थिक स्तर पर है क्योंकि मजदूरों, किसानों, अन्य स्वः रोजगारियों, व्यापारियों, बेरोजगारों व हाल में नए बेरोजगार हुए लोगों की समस्याएं बढ़ रही हैं व इस दायरे में देश की बड़ी जनसंख्या आ जाती है। जिसे कमजोर या जरूरतमंद आर्थिक स्थिति का परिवार कहा जाता है, उनकी संख्या में हाल के समय में बहुत वृद्धि हुई है। अतः सरकार को सभी जरूरतमंद व कमजोर स्थिति के परिवारों को आर्थिक सहायता व सहयोग की एक बड़ी स्कीम की घोषणा करनी चाहिए जिससे वे अपनी बिगड़ती स्थिति को संभाल सकें। यह सच है कि कोविड के दौर में सरकार पहले ही आर्थिक पैकेज की घोषणा कर चुकी है, पर यह पर्याप्त नहीं रहे। कुछ संदर्भों में तो विशेषज्ञों के आकलन से स्पष्ट हुआ कि पहले से आवंटित राशि को ही नए रूप में प्रस्तुत कर दिया गया। अब जरूरत इस बात की है सरकार सही मायनों में बड़ी राहत व सहायता की घोषणा करे।

कृषि कानूनों की हो तुरंत वापसी

दूसरी बड़ी जरूरत यह है कि खेती-किसानी संबंधी तीन विवादग्रस्त कानूनों को वापस लेने की मांग को सरकार स्वीकार कर ले। यह तो बहुत पहले हो जाना चाहिए। जिस देश के 70 प्रतिशत लोग गांवों में रहते हैं, वहां सरकार और किसानों के बीच तनाव लंबे समय तक खिंचे यह देश के हित में नहीं है। अनेक जाने-माने विशेषज्ञों ने भी अपने आकलन में बताया है कि यह तीन कानून राष्ट्रीय हित में नहीं है। इन कानूनों को वापस लेकर सरकार को टिकाऊ, पर्यावरण की रक्षा वाली खेती को तरह-तरह से प्रोत्साहित कर देश में खेती-किसानी का दीर्घकालीन भविष्य उज्ज्वल करना चाहिए व मिट्टी का उपजाऊपन बचाने व जल-संरक्षण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

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मजदूर हितों पर हो विशेषज्ञ समिति का गठन

हाल में सरकार ने देश के मजदूर कानूनों को चार कोडों में एकत्र किया है, पर इस प्रक्रिया में कुछ ऐसे बदलाव भी हो गए हैं, जिनके कारण देश के अधिकांश मजदूर संगठन चिंताग्रस्त हैं व उनकी शिकायत है कि अनेक दशकों के संघर्ष व प्रयास से प्राप्त मजदूरों के अधिकारों को कम कर दिया गया है। अतः सरकार को विभिन्न मजदूर संगठनों के प्रतिनिधियों व मजदूर हितों से संबंधित विशेषज्ञों से मिलकर एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन करना चाहिए व उसकी संस्तुतियों के आधार पर इन मजदूर कोडों में, श्रमिक-हितों की रक्षा का ध्यान में रखते हुए, जरूरी सुधार करने चाहिए।

बदले की भावना से बंद करे सरकार कार्यवाही

इसके अतिरिक्त मानवाधिकारों के मोर्चों पर चिंता बढ़ रही है, व हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि जिन कानूनों से ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार स्वतंत्राता सेनानियों को उत्पीड़ित करती थी उनके दुरुपयोग अब न हो। दूसरी ओर आज भी बहुत से व्यक्ति (छात्र व युवा, बीमार व वृद्ध व्यक्ति भी) जेल में हैं जो आंदोलनों में भागेदारी व खुली आलोचना के कारण जेल में हैं। पर यह तो बुनियादी लोकतांत्रिक हक है। अतः ऐसे सभी, कैदियों को रिहा करना चाहिए व जो रह जाते हैं उनके लिए लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए समर्पित, अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों की समिति नियुक्ति कर संस्तुति प्राप्त करनी चाहिए व इसे स्वीकार करना चाहिए। बदले की भावना से अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति कोई भी कार्यवाही करने से सरकार को परहेज करना चाहिए।

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धार्मिक अल्पसंख्यकों से बंद हो भेदभाव

धर्म-निरपेक्ष व सब धर्मों के समानता हमारे देश के संविधान का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। इसकी रक्षा में भी हाल के समय में अनेक समस्याएं आई है व धार्मिक अल्पसंख्यकों से भेदभाव या अन्याय की घटनाएं बढ़ी है। हमारे लोकतंत्र में आई इस कमी को भी शीघ्र से शीघ्र दूर करना चाहिए।

पर्यावरण रक्षा पर ध्यान दे सरकार

पर्यावरण की रक्षा का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। पर हाल के समय में पर्यावरण की रक्षा के लिए पहले बताए गए अनेक कानूनों व नियमों में ढील दी गई है अथवा उनका पालन ठीक से नहीं किया जा रहा है। इसके कारण पर्यावरण की क्षति की संभावना बढ़ गई है। अतः सरकार को शीघ्र इस क्षति को दूर करने के लिए व पर्यावरण के कानूनों-नियमों का उनकी सही भावना के अनुकूल पालन करने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए। इसके साथ सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पर्यावरण की रक्षा व आजीविका की रक्षा में (विशेषकर कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा) में आपसी सामंजस्य बनाया जाए व पर्यावरण की रक्षा के नाम पर जो कमजोर वर्गों को विस्थापित करने की जो प्रवृत्ति है उस पर रोक लगनी चाहिए।

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राजनीतिक दलों की फंडिंग में हो पारदर्शिता

हाल के कुछ चुनावों के संदर्भ में यह देखा गया है कि लोकतांत्रिक मर्यादाओं का ठीक से पालन नहीं हो रहा है। पक्षपात, धन के दुरुपयोग, हिंसा व डराने-धमकाने की प्रवृत्तियों को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने में पर्याप्त सावधानी नहीं बरती जा रही है। राजनीतिक दलों की फंड प्राप्त करने की व्यवस्था में पारदर्शिता कम हो रही हैं व एक ही दल के पास अधिकतम धन एकत्र होने की संभावना बढ़ रही है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि इन सभी चिंताजनक प्रवृत्तियों पर रोक लगनी चाहिए।

यदि इन सभी सात बिंदुओं पर तुरंत असरदार, महत्त्वपूर्ण कार्यवाही करे सरकार तो इससे लोगों को न सिर्फ राहत मिलेगी बल्कि उसे प्रशंसा भी मिल सकती है।

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