भारत में दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा लॉकडाउन चल रहा है। इसे दो हफ्ते हो चुके हैं और 1.3 अरब की आबादी वाले देश और कोविड-19 में जैसे आमने-सामने की भिड़ंत हो रही है। सरकरी एजेंसियों द्वारा संक्रमित लोगों की संख्या के बारे में जो रिपोर्ट दी जा रही है, अगर उस पर भरोसा करें तो परस्पर दूरी बनाने समेत एहतियात के जितने भी कदम उठाए गए, उन्हें काफी हद तक सफल ही कहा जा सकता है।
लेकिन इन खबरों पर गौर करें:
Published: 08 Apr 2020, 8:04 PM IST
जैसे-जैसे संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं, देश में इस तरह के तमाम ‘हॉट स्पॉट’ सामने आ रहे हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश में जब संक्रमण के कुल 4300 मामले थे और 120 लोगों की मौत हुई थी, उसमें से 75 फीसदी 62 हॉट स्पॉट से जुड़े थे। कंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव लव अग्रवाल दावा करते हैं, “वायरस हमारा पीछा नहीं कर रहा, बल्कि हम वायरस का पीछा कर रहे हैं। भारत की रणनीति इसका संक्रमण नहीं होने देना है और कह सकते हैं कि हमारी तैयारी जरूरत से ज्यादा ही रही है।”
उनके कहने का यही मतलब है कि सरकार इस भारी-भरकम समस्या से निपटने के मामले में अब आने वाली स्थिति को भांपते हुए पहले ही कदम उठा रही है और हमने ‘इंतजार करो और टालो’ की रणनीति को पीछे छोड़ दिया है। अब ऐसे में जरूरी सवाल यह उठता है कि हेल्थकेयर के मोर्चे पर हम इस युद्ध को लड़ने के लिए कितने तैयार हैं?
यह कोई छिपी हुई बात नहीं कि 1.3 अरब लोगों की ऐसी किसी भी मांग को पूरा करने के लिहाज से भारत की बुनियादी सुविधाएं हर नजरिये से अपर्याप्त हैं, चाहे बात डॉक्टरों की हो या अस्पताल बेड की, आईसीयू की हो या फिर तकनीकी सहायकों की संख्या की। ग्रामीण इलाकों में तो स्थिति और भी खराब है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने यह कहते हुए 14 अप्रैल के बाद भी लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने की सिफारिश की है कि देश में हेल्थकेयर सुविधाएं अपर्याप्त हैं।
Published: 08 Apr 2020, 8:04 PM IST
केरल अपवाद है जहां हेल्थकेयर सुविधाओं को लगातार बेहतर बनाने की एक दीर्घकालिक नीति है और दिल्ली, हैदराबाद, बंगलुरू, चेन्नै में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने में कॉरपोरेट और निजी क्षेत्र की अहम भूमिका है। लेकिन गांवों में अस्थायी कोविड अस्पताल तैयार करना और डॉक्टर-नर्स वगैरह की व्यवस्था करना बड़ी चुनौती है और कई राज्यों के लिए तो यह कभी कोई विकल्प है ही नहीं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हम अपने स्वास्थ्य अमले को इस युद्ध का सामना करने के लिए सारे जरूरी साजो-सामान मुहैया कराने के लिए तैयार हैं?
हाल ही में केंद्र सरकार ने संबंद्ध उद्योग से जुड़े लोगों के साथ एक बैठक की जिसमें आने वाले दो महीने के दौरान संभावित मांग की स्थिति पर चर्चा की गई। खबरों के मुताबिक भारत को लगभग 2.7 करोड़ एन-95 मास्क, 1.5 करोड़ पीपीई (निजी सुरक्षात्मक उपकरण), 16 लाख डायग्नॉस्टिक किट और 50 हजार वेंटिलेटर की जरूरत होगी। केंद्र सरकार ने इस दिशा में कोशिशें तो शुरू कर दी हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि मैग्नम मेडिकेयर और वीनस सेफ्टी जैसी चंद कंपनियां ही एन-95 मास्क बना रही हैं और वो भी अपना ज्यादातर उत्पादन खाड़ी के देशों, अमेरिका, यूरोप और कुछ एशियाई देशों को निर्यात करती हैं। हाल ही में संकट के समय चीन को भी सप्लाई भेजी गई।
जहां तक डिस्पोजेबल मास्क की बात है, भारतीय मेडिकल उपकरण उद्योग संघ के मुताबिक भारत हर साल 24 करोड़ मास्क बनाता है, जिनका इस्तेमाल विशेषकर घरेलू स्तर पर होता है। सर्जिकल मास्क का उत्पादन लघु औद्योगिक इकाइयों द्वारा किया जाता है और इसकी क्षमता अधिकतम एक लाख दैनिक की जा सकती है।
Published: 08 Apr 2020, 8:04 PM IST
अब बात वेंटिलेटर की। जून के अंत तक वेंटिलेटर की मांग 50,000 के आसपास होने का अनुमान है। इनमें से हमारे पास पहले से 16,000 हैं और 34,000 का ऑर्डर दिया जा चुका है। अधिकारियों के मुताबिक वेंटिलेटर और पीपीई के आयात के लिए विदेश मंत्रालय को भी लूप में रखा गया है। जाहिर सी बात है कि मांग को पूरा करने के लिए निर्माण क्षमता को बढ़ाने और आयात करने की जरूरत है। क्या हम ऐसा कर सकते हैं? उद्योग का कहना है- हां।
लेकिन क्षमता बढ़ाने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा निवेश, बाई बैक गारंटी, डंपिंग से संरक्षण और निविदा प्रक्रिया की स्थिति में विदेशी प्रतिस्पर्धा की चुनौती है। आईआईटी, सीएसआईआर, डिफेंस लैब, बायोटेक कंपनियां, विश्वविद्यालय वगैरह सैनेटाइजर से लेकर वेंटिलेटर तक के सस्ते डिजाइन और उत्पाद लेकर आ रहे हैं। इन स्थितियों में ‘मेक इन इंडिया’ के तहत इन घरेलू उत्पादकों को बढ़ावा देना चाहिए। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि उत्पादक तत्काल योजना बनाने और निवेश करने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
केंद्र सरकार कह रही है कि इन उपकरणों की सप्लाई के लिए वह राज्य सरकारों के साथ समन्वय कर रही है। इसके अलावा उत्पादकों को भी लगातार उत्पादन और आपूर्ति बढ़ाने को कहा जा रहा है। लव अग्रवाल कहते हैं कि अगले कुछ हफ्तों के भीतर आपूर्ति की स्थिति में खासा सुधार होने की संभावना है। इस बीच, अस्पताल और डॉक्टर-नर्स से लेकर एकदम निचले स्तर के कर्मचारी, जो संकट के इस समय में आगे की पंक्ति के योद्धा हैं, वाकई बहुत ही मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं। जैसा कि मुंबई अस्पताल के उदाहरण से साफ भी होता है, ये वे लोग हैं जिनके संक्रमित हो जाने की सबसे ज्यादा आशंका होती है।
Published: 08 Apr 2020, 8:04 PM IST
आंध्र प्रदेश में पिछले एक हफ्ते के दौरान संक्रमण के मामलों में तेज इजाफा हुआ है और यहीं के एक वरिष्ठ डॉक्टर कहते हैं, “सरकार की ओर से बातें ज्यादा बनाई जा रही हैं और काम कम हो रहा है। अस्पताल इस स्थिति में नहीं हैं कि पर्याप्त संख्या में जरूरी उपकरण मंगा सकें और मीडिया/टीवी पर इस सबसे अहम मुद्दे को लेकर अस्पतालों का पक्ष ही नहीं आ रहा है।” एक अन्य बड़े कॉरपोरेट अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा कि उनके यहां बहुत कम प्रोटेक्टिव उपकरण हैं जिसके कारण नर्स, आईसीयू स्टाफ जबर्दस्त खतरे के बीच काम कर रहे हैं।
वहीं एम्स रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन ने बाजाप्ता प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि जिन डॉक्टरों ने पीपीई, कोविड-19 के उपचार-बचाव और जांच संबंधी उपकरणों की कमी और अपर्याप्त क्वारंटाइन सुविधाओं का जिक्र सोशल मीडिया पर किया, उन्हें परेशान किया जा रहा है। एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि इन कमियों को सकारात्मक सुझाव के तौर पर लिया जाए।
प्रधानमंत्री ने शुरू में कोविड-19 से मुकाबले के लिए 15,000 करोड़ की धनराशि उपलब्ध कराने की घोषणा की थी। कॉरपोरेट्स से लेकर आम आदमी तक से पीएम केयर्स और मुख्यमंत्री राहत कोष में पैसे लिए जा रहे हैं। सांसदों के वेतन में कटौती जैसे कड़े कदम भी उठाए जा रहे हैं। इन सब के बीच, केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से हेल्थकेयर सेक्टर को धीरे-धीरे पैसे मिलने शुरू हो गए हैं। ज्यादातर राज्य वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहे हैं और राजस्व में आ रही तेज गिरावट को बेबस देख रहे हैं। नए अस्पताल बनाए जा रहे हैं, ट्रेनों को अस्पताल में बदला जा रहा है, वगैरह-वगैरह। लेकिन स्वास्थ्य सेवा देने वाले ज्यादातर लोग बिना ढाल युद्ध के मैदान में मोर्चा थामे खड़े हैं।
Published: 08 Apr 2020, 8:04 PM IST
अपर्याप्त टेस्ट करने की आलोचना सुनते-सुनते स्वास्थ्य मंत्रालय ने आखिरकार घोषणा की कि 9 अप्रैल से उन इलाकों में टेस्ट बढ़ाए जाएंगे जहां संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। अब तक केवल 90 हजार टेस्ट किए गए हैं जो दक्षिण कोरिया, जापान, ताईवान जैसे एशियाई देशों की तुलना में भी बेहद कम है। सार्स और मर्स से निपटने का इन देशों का अनुभव कोविड-19 से मुकाबले में काम आ रहा है।
आईसीएमआर में संक्रामक रोग विभाग के प्रमुख रमन गंगाखेड़कर ने कहा कि आईसीएमआर ने तमाम देसी-विदेशी कंपनियों द्वारा विकसित एंटी-बॉडी किट को स्वीकृति दे दी है और अब ड्रग कंट्रोलर की हरी झंडी का इंतजार है। आयातित किट महंगे हैं और शुरू में सरकार ने प्रति टेस्ट अधिकतम 4,500 रु. का शुल्क तय कर दिया, लेकिन इसकी आलोचना होने पर आनन-फानन में और टेस्ट सेंटर खोलने की पहल की गई और इस पर सब्सिडी देना शुरू किया गया। अब सरकार कह रही है कि टेस्ट पर आने वाला खर्च आयुष्मान भारत बीमा योजना के तहत कवर होगा और इस पहल से करोड़ों परिवार इस सुविधा का लाभ उठा सकेंगे।
जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ और नारायण हृदयालय के निदेशक देवी शेट्टी का मानना है कि वायरस संक्रमण के लिहाज से सबसे मुश्किल समय अप्रैल के अंत और मई के शुरू में आने वाला है। हर मेडिकल प्रोफेशनल की यही चिंता है कि हमारे लिए कारगर तैयारियों के लिए वक्त तेजी से भागा जा रहा है। हम प्रसिद्ध कवि टी.एस.इलियट की इस लोकप्रिय पंक्ति को सच होने नहीं दे सकते कि “...अप्रैल क्रूरतम महीना है।”
(लेखक जाने-माने पत्रकार और विज्ञान लेखक हैं)
Published: 08 Apr 2020, 8:04 PM IST
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Published: 08 Apr 2020, 8:04 PM IST