मैं सलमान खान का प्रशंसक नहीं हूं। लेकिन जब स्टार पावर को देखता हूं तो मैं उसे पहचान सकता हूं। और सलमान में यह प्रचुरता से भरी हुई है। ‘राधे : योर मोस्ट वॉन्टेड भाई’ जैसी बेकार फिल्म जिसमें खलनायकों को देखकर लगता है कि उऩ्होंने अगर हफ्तों नहीं तो कम-से-कम कई दिनों से नहाया नहीं होगा, उनके साथ सलमान की भीड़ को लुभाने वाली फाइट को लेकर मैं यह कल्पना कर सकता था कि उनके अंधभक्तों की इस पर क्या प्रतिक्रिया रहती।
वे जंगलियों की तरह चीखने-चिल्लाने लग जाते! स्पष्ट है कि ‘राधे’ ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए नहीं बनी है। इसका आनंद बड़े पर्दे पर ही लिया जा सकता है। हालांकि अपवादस्वरूप यदि यह एक बड़े पर्दे का अनुभव होता तो शायद सलमान के कट्टर प्रशंसक भी इसे मुश्किल से ही हजम कर पाते, तारीफ करना तो दूर की बात है।
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यह एक बहुत बड़ी त्रासदी है कि एक सुपर स्टार स्वयं अपनी ही छवि का शिकार हो गया। सलमान खान में वह जादू है कि वह दर्शकों का इकट्ठा कर लें। उनमें यह एक विशिष्ट शक्ति भी है कि वह बदलावों को आकार दे सकें और फिल्म देखने जाने वाली जनता की रुचि को परिवर्तित कर सकें। उनको बस कैमरे के आगे खड़ा होना है और उनके प्रशंसक उन्हें देखकर गदगद हो जाते हैं। फिल्म में वह क्या करते हैं या क्या कहते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बस, वे सब सलमान के साथ होते हैं।
क्या यह रुला देने वाली शर्मनाक बात नहीं है कि इतने विशाल स्टार पावर को ‘प्रेम रतन धन पायो’, ‘दबंग-3’ और ‘राधे : योर मोस्ट वॉन्टेड भाई’ जैसी घिसी-पिटी और बिल्कुल बेकार फिल्मों पर खर्च कर दिया जाए। जिन तीनों फिल्मों के नाम मैंने लिए हैं उनके निर्देशक वे लोग हैं जो बहुत लंबे समय से सलमान के मित्र हैं। लेकिन स्पष्ट है कि यह गठजोड़ चल नहीं पाया। बल्कि सच तो यह है कि अगर मैं कहूं कि प्रभुदेवा की 2008 में आई ‘वॉन्टेड’ ने सलमान को बहुत सारी फ्लॉप फिल्मों के बाद दौड़ में वापस स्थापित कर दिया था तो ‘राधे’ एक प्रकार से सलमान के करियर के लिए मौत की घंटी है।
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अगर उन्हें अपने स्टारडम को बचाए रखना है तो उन्हें नए विजन वाले नए निर्देशकों के साथ काम करना होगा। इसीलिए हाल के वर्षों में आई फिल्म ‘सुल्तान’ सलमान की बेहतरीन फिल्मों में से एक है। यह वह फिल्म थी जहां सलमान ने अपनी छवि को लेकर निर्देशक अली अब्बास जफर की निगरानी में एक जोखिम लिया था। निर्देशक अली अब्बास जफर को मालूम था कि सलमान से सबसे बेहतरीन काम कैसे करवाया जा सकता है। लेकिन यही निर्देशक ‘भारत’ फिल्म में नाकामयाब हो गए क्योंकि सलमान ने अपने निर्देशक को सुनना बंद कर दिया। उन्होंने निर्देशक को ही निर्देशित करना शुरू कर दिया। यही कबीर खान के साथ हुआ जिन्होंने ‘बजरंगी भाईजान’ फिल्म में सलमान से बहुत ही बेहतरीन और भावनात्मक अभिनय करवाया लेकिन ‘ट्यूबलाइट’ फिल्म बनाकर वह चारों खाने चित्त पड़ गए। दोनों ही, अली अब्बास जफर और कबीर खान, सलमान के दरबार से भाग गए।
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इसके अलावा ‘इंशा अल्लाह’ फिल्म के प्रोजेक्ट के रद्द होने का भी बड़ा दुःखदायी मामला है। इसे एक ऐसे निर्देशक निर्देशित करने वाले थे जो जानते थे कि सलमान के जादू को कैसे स्क्रीन पर बिखेरना है। यह बहुत ही उत्सुकता से भरी बात थी जब संजय लीला भंसाली ने ‘हम दिल दे चुके सनम’ फिल्म के बाद सलमान के साथ एक और विशेष फिल्म करने का निश्चय किया। लेकिन तब तक सलमान बदल चुके थे। वह पूरे प्रोजेक्ट को ही अपने हाथों में लेना चाहते थे। वह कास्ट के ऊपर भी अपना नियंत्रण करना चाहते थे। वह एक आइटम गीत के लिए डेजी शाह और सुष्मिता सेन को चाहते थे। और इस प्रोजेक्ट पर अंतिम चोट तब लगी जब सलमान चाहते थे कि संजय लीला भंसाली ‘इंशा अल्लाह’ के प्रदर्शन की तारीख 2021 की ईद से हटाकर क्रिसमस के समय कर दें। उनका तर्क था कि ‘राधे’ असल में ज्यादा ऐसी फिल्म है जिसे उनके प्रशंसक यानी सलमान के दीवाने ईद पर देखना चाहेंगे।
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बस, इतना था और भंसाली ने पूरा प्रोजेक्ट ही रद्द कर दिया। कितने दुःख की बात है! मेरा ऐसा मानना है कि यह फिल्म सलमान को एक कलाकार के रूप में स्थापित कर सकती थी। उन्हें भंसाली के साथ अपने सारे ही मतभेद सुलटा लेने चाहिए और इस प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करना चाहिए। इंशा अल्लाह, अब भविष्य में वह जी-हजूरी करने वाले लोगों के साथ काम करना बंद कर देंगे और ऐसे निर्देशकों के साथ अपनी टीम बनाएंगे जिन्हें मालूम है कि उनसे (सलमान) बेहतरीन काम कैसे करवाना है। क्योंकि अगर वह इसी प्रकार अपने कम्फर्ट जोन में बने रहे, तो एक दिन दर्शक आगे बढ़ जाएंगे और उनके रुके-थके प्रदर्शन से असहज हो जाएंगे।
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