बेहद ईमानदार और साहस वाले व्यक्ति ही ऐसा करते हैं कि ‘मैं रियायरमेंट की उम्र पार कर चुका हूं, और सीबीआई डायरेक्टर के पद पर सिर्फ तय कार्यकाल के लिए काम कर रहा था, इसलिए सरकार द्वारा पेशकश की गई नई नियुक्ति लेना सही नहीं होगा।’
इस तरह आलोक वर्मा ने फायर सर्विस और होमगार्ड्स के डायरेक्टर जनरल का पद ठुकराकर खुद को और बेइज्जत होने से बचा लिया। वैसे भी उनकी सीबीआई में उनका कार्यकाल 31 जनवरी को खत्म हो रहा था और फायर सर्विस और होमगार्ड्स में वे बमुश्किल तीन सप्ताह ही काम कर पाते। वैसे तो उन्हें पिछले साल जुलाई में ही रिटायर हो जाना था।
अब इस बात में कोई शक नहीं रह गया है कि सरकार ने आलोक वर्मा को सीबीआई से सिर्फ इसलिए हटाया ताकि गुजरात कैडर के आईपीएस राकेश अस्थाना को बचाया जा सके। अस्थाना को पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दोनों का नजदीकी माना जाता है। और, इन्हीं रिश्तों के चलते उन्हें सीबीआई में स्पेशल डायरेक्टर के पद पर बिठाया भी गया था। जाहिर है सरकार का इरादा राकेश अस्थाना को सीबीआई डायरेक्टर बनाना था, लेकिन 2017 में उसके इरादों पर पानी पड़ गया क्योंकि अस्थाना का बैच जूनियर था और उस समय इस पद के लिए उनके नाम पर विचार नहीं हो सकता था। लेकिन, यह तय था कि आलोक वर्मा का कार्यकाल खत्म होते ही वहीं उनके उत्तराधिकारी होंगे।
लेकिन अब पता चला है कि आलोक वर्मा ने उसी समय राकेश अस्थाना को स्पेशल डायरेक्टर बनाए जाने का विरोध किया था। ऐसा करने के लिए आलोक वर्मा जैसी हिम्मत चाहिए जो सरकार के चहेते अफसर की राह में खड़ा हो गया हो। लेकिन वर्मा को अपना एतराज वापस लेना पड़ा था क्योंकि सीवीसी ने अस्थाना की नियुक्त को हरी झंडी दे दी थी। चूंकि सरकार और सीवीसी दोनों अस्थाना को ही सीबीआई में चाहते थे, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने भी अस्थाना को स्पेशल डायरेक्टर बनाए जाने का विरोध करने वाली अर्जी खारिज कर दी थी।
इस सबका नतीजा हुआ यह कि आलोक वर्मा ने कड़ा रुख अपना लिया। अभी यह तो स्पष्ट नहीं है कि आखिर ऐसा क्या हुआ था कि राकेश अस्थाना ने कैबिनेट सचिव से आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की थी। यह सीधे-सीधे अवज्ञा का मामला था, फिर भी कैबिनेट सचिव ने अस्थाना की शिकायत को सीवीसी के पास भेज दिया था। इसके बाद सरकार महीनों तक इस शिकायत को दबाए रही।
अस्थाना का यह कदम यूं तो वर्मा पर दबाव बनाने के लिए था, लेकिन वह दबाव में नहीं आए और उन्होंने राकेश अस्थाना के खिलाफ ही पिछले साल एफआईआर दर्ज करा दी। अस्थाना पर हैदराबाद के एक कारोबारी से रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया। आलोक वर्मा ने इस कारोबारी का बयान दर्ज कराया और मामले की जांच के लिए एक टीम बना दी थी। बताया जाता है कि इस केस में जब पिछले साल 16 अक्टूबर को दुबई के एक वित्तीय सलाहकरा मनोज प्रसाद को गिरफ्तार किया गया, तो उसके बाद सीबीआई की युद्ध खुलकर सामने आ गया।
इसके बाद राकेश अस्थान बचाव का रास्ता तलाशने लगे और इसी बीच सीवीसी के वी चौधरी ने आलोक वर्मा को अपने घर बुलाकर अस्थाना की शिकायत के बारे में बात की। सूत्रों का कहना है कि सीवीसी ने आलोक वर्मा से 22 अक्टूबर को कहा कि राकेश अस्थाना को छोड़ दें तो उनके खिलाफ मामला खत्म कर दिया जाएगा। लेकिन, आलोक वर्मा ने ऐसा कोई वादा नहीं किया, या यूं कहें कि इसे मानने से इनकार कर दिया।
आलोक वर्मा के रवैये को देखते हुए सीवीसी के वी चौधरी ने डेनमार्क जाने का अपना दौरा रद्द कर दिया और आनन-फानन रिपोर्ट दे दी कि आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना दोनों को छुट्टी पर भेज दिया जाए। रोचक बात यह है कि इस सिफारिश में उन्होंने लिखा कि सीबीआई की साख बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी है।
इसके करीब 77 दिन बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को बहाल किया, वर्मा ने सबसे पहला काम यही किया कि उन्होंने उन सारे अधिकारियों का तबादला रद्द कर वापस बुला लिया जो राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच कर रहे थे। वर्मा के इसी कदम से सरकार में हलचल मच गई और उसने सीबीआई डायरेक्टर पर फैसला करने के लिए उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बैठक बुला ली। बैठक में सरकार ने आलोक वर्मा को हटाने का फैसला कर लिया। वर्मा के हटते ही अंतरिम डायरेक्टर नागेश्वर राव ने उन सभी तबादलों को बदल दिया जो आलोक वर्मा ने किए थे। कोशिश यही थी कि राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच में लगे अफसरों को दिल्ली से दूर रखा जाए।
आलोक वर्मा का स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का फैसला सीबीआई के स्कैंडल को नहीं छिपा सकता। ये सब होने के बाद राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच तो होनी ही चाहिए, साथ ही इस पूरे मामले में सीवीसी की भूमिका की भी समीक्षा होना जरूरी है। चर्चा है कि राकेश अस्थाना दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करेंगे। अस्थाना ने हाईकोर्ट में अपील की थी कि उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज किया जाए। अब देखना है कि उनकी अपील पर न्यायालय क्या रुख अपनाता है।
लेकिन, सूत्रों का कहना है कि सीबीआई में जो कुछ हुआ, उसकी बड़ी कीमत लोक वर्मा को चुकानी पड़ सकती है। सूत्रों के मुताबिक पीएम मोदी और अमित शाह ने आलोक वर्मा के खिलाफ जांच को हरी झंडा दे दी है। भले ही वर्मा के खिलाफ जांच की निगरानी करने वाले रिटायर्ड जस्टिस ए के पटनायक ने कहा हो कि वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं थे, फिर भी अगर राकेश अस्थाना के बजाए आलोक वर्मा को गिरफ्तार कर लिया जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
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