इन दिनों सोशल मीडिया पर यह संदेश खूब चल रहा है :
दूध दिल्ली आ सकता है
सब्जी दिल्ली आ सकती है
चावल, गेहूं, दाल दिल्ली आ सकते हैं
किसान दिल्ली नहीं आ सकता है।
जी हां, दिल्ली सबके लिए खुली है- बस, केवल किसान के लिए दिल्ली में कोई जगह नहीं है। आपने टेलीविजन चैनलों पर तो देखा ही होगा कि दिल्ली पुलिस ने हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश से दिल्ली को ओर कूच कर रहे किसानों की कैसी नाकाबंदी की है। सारे रास्ते बंद हैं और बड़े-बड़े बैरियर लगे हुए हैं, मानो किसान नहीं, कोई शत्रु सेना है जो दिल्ली की ओर बढ़ रही है और सरकार उस सेना को रोकने का हर उपाय कर रही है। और बेचारे किसान चुपचाप और शांतिपूर्वक सड़कों पर जहां भी सिर छिपाने की जगह मिल रही है, खुले आसमान के नीचे बैठे हैं। परंतु क्या कारण है कि दुनिया दिल्ली आ सकती है लेकिन गरीब किसान दिल्ली नहीं आ सकता है।
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सीधी-सी बात है। किसान कोई ‘सूटेड-बूटेड’ कॉरपोरेट (पूंजीपति) जगत का व्यक्ति नहीं कि वह दिल्ली की सत्ता के गलियारों में जब चाहे आराम से घूमे और जैसे चाहे सीधे किसी भी मंत्री का दरवाजा खोले और उनसे मुलाकात करे। फिर किसान आंदोलन ही कॉरपोरेट जगत एवं भारतीय किसानों के बीच का आंदोलन है। अब तो यह जगजाहिर है कि मोदी सरकार केवल और केवल कॉरपोरेट हितों की सरकार है। सरकार ने खेती- संबंधी जो तीन कानून पारित किए हैं, उनका निशाना ही किसान है और ये केवल कॉरपोरेट हित के कानून हैं। तो भला दिल्ली में मोदी सरकार किसानों को किसान विरोधी कानूनों के विरोध में अपना आंदोलन करने की अनुमति कैसे दे दे। बस, इसीलिए सरकार का हुकुम है- जो चाहे दिल्ली आए लेकिन किसान दिल्ली में कदम नहीं रख सकता है।
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पर दिल्ली में किसानों को रोकने का सरकारी औचित्य क्या है! सरकार कहती है कि यदि किसानों की इतनी बड़ी भीड़ दिल्ली आ गई तो शहर का सामान्य जन-जीवन ठप हो जाएगा। यह झूठ ही नहीं बल्कि एकदम खुला झूठ है। अरे, मैंने स्वयं 1980-90 के दशक के बीच इसी दिल्ली नगरी में लाखों लोगों का प्रदर्शन एवं भीड़ इकट्ठा होते देखी है और दिल्ली के माथे पर शिकन तक नहीं आई। अपने अगले लेख में मैं बताऊंगा कि एक दशक में चार बार कैसे दस-दस लाख और उससे भी ऊपर की भीड़ दिल्ली के दिल बोट क्लब में इंडिया गेट पर शांतिपूर्वक इकट्ठा हुई और चली गई। लेकिन दिल्ली पर कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ा। परंतु मोदी सरकार किसानों को दिल्ली नहीं फटकने दे रही है। अगर आना है तो बस दिल्ली- हरियाणा बॉर्डर पर बुराड़ी आ जाओ और मुजरिमों की तरह चुपचाप बैठे रहो, हमारा जब दिल चाहेगा हम बात करेंगे और दिल नहीं चाहेगा तो बात नहीं करेंगे।
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मोदी जी, किसान आपका कोई गुलाम नहीं है। वह आप से कोई भीख मांगने नहीं आ रहा है। आप और आपकी सरकार ने किसानों के पेट पर लात मारने का जो उपाय निकाला है, उसके खिलाफ आंदोलनमें वे दिल्ली आए हैं। आप किसान की एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) बंद कर दीजिए और उससे कहिए चुप बैठे रहो। आप देश की हजारों साल पुरानी व्यवस्था मंडियों को तहस-नहस कर दीजिए और किसान से कहिए, खबरदार कोई आंदोलन नहीं। आखिर, यह खुली धांधली कब तक! आप सन 2014 से इस देश की जनता को धोखा देते चले आ रहे हैं, फिर भी जनता आपकी हर बात स्वीकार करती चली आ रही है। आपने काला धन खत्म करने के नाम पर नोटबंदी लागू की तो जनता बैंकों से अपना रुपया-पैसा निकालने को मोहताज हो गई। फिर भी जनता ने आपकी बात पर विश्वास कर आपको वोट दिया। आपने बिना सोचे-समझे देश में लॉकडाउन थोप दिया। लाखों मजदूर-कारीगर महानगरों में भूखे मरने के डर से सैंकड़ों मील पैदल चलकर अपने गांव-देहात चले गए। करोड़ों लोग नौकरियों से बाहर हो गए। लाखों कारोबार और काम-धंधे ठप हो गए। देश की अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई। फिर भी देश की जनता का विश्वास आप से नहीं टूटा।
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परंतु यह अंध विश्वास कब तक! अब तो मोदी सरकार किसान के मुंह का निवाला छीनने पर आमादा है। अभी भी किसान दबा-डरा चुपचाप घरों में बैठा रहे और मोदी जी को भगवान समझ उनके हर झूठ-सच को स्वीकार करता रहे। मोदी जी को अंदाजा नहीं है कि उन्होंने भीड़ के छत्ते में हाथ दे दिया है। ये पंजाबी, सिख और जाट किसान हैं। यह वह किसान हैं जो सचमुच अन्नदाता के रूप में सदियों से गर्मी, जाड़ा और बरसात झेलकर गेहूं, धान, तिलहन और सरसों-जैसी फसलें उगाकर देश का भेट भर रहा है। मोदी सरकार अब उसी किसान के मुंह का निवाला छिनेगी और यह उम्मीद करेगी कि वह चुपचाप बैठा रहे- यह नहीं होने वाला। अब किसान सिर पर कफन बांधकर दिल्ली की ओर कूच कर चुका है। सरकार ने दिल्ली की नाकाबंदी कर दी। वह चुपचाप शांति से दिल्लीके बॉर्डर पर इस ठंड में खुले आसमान के नीचे बैठा है। अरे, उसने बड़ी-से-बड़ी ठंड में खड़े होकर अपने खेतों में पानी दिया है, उसकी सिंचाई की है। भला उस किसान को ठंड का क्या डर!
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डरने का समय तो अब मोदी सरकार के लिए है। इस देश की लगभग 60 फीसदी आबादी खेती-बाड़ी से जुड़ी है। इस देश में अभी भी शहरों में रहने वाले 80 प्रतिशत लोगों का नाता गांव से है। अरे, मोदी जी, आपकी पार्टी और आपके आरएसएस गुरु जिस ‘भारतीय सभ्यता’ का गुणगान करते हैं, वह सभ्यता ही नदियों के किनारे खेती- बाड़ी से ही जन्मी है। किसान तो भारतवर्ष की रीढ़ की हड्डी है। यह सरकार अंबानी और अडानी-जैसे पूंजीपतियों के हित में उस रीढ़ की हड्डी को तोड़ना चाहती है। यह पाप तो केवल किसान ही नहीं, यह देश भी बर्दाश्त नहीं करेगा। तब ही तो सरकार के खिलाफ आवाजें उठना शुरू हो चुकी हैं। अभी तो दिल्ली की सरहदों पर किसान बैठा है। अभी तो इस आंदोलन को पंद्रह दिन भी नहीं बीते और ट्रक वालों ने किसानों के समर्थन में अपनी हड़ताल का ऐलान कर दिया। होगा क्या! ट्रक नहीं तो रोजमर्रा के लिए आटा, दाल, सब्जी और दूध कहां से आएगा। सरकारी कंपनियों का कामगार कौन-सा खुश है। सरकार आए दिन बड़े-बड़े कारखाने बेच रही है। कल को वह भी किसान के सहयोग में सड़कों पर उतरेगा। फिर शिक्षकों को तीन-तीन महीनों से वेतन नहीं मिल रहा है, कल को वे भी सड़कों पर आ सकते हैं। बहुत से सरकारी महकमों में पेंशन बंद है, क्या पता बुजुर्ग भी सड़क पर उतर पड़ें। पिछले छह वर्षों में हिंदू-मुसलमान के नाम पर देश को बांटकर देशवासियों की आंखों पर जो पट्टी बांध दी गई थी, अब किसान आंदोलन से वह पट्टी जनता की आंखों से खिसकने लगी है।
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इस किसान आंदोलन से नरेंद्र मोदी को जितनी क्षति पहुंचने वाली है, उसका अंदाजा शायद उनको अभी नहीं है। पिछले छह वर्षों में इस देश ने आंख मूंदकर नरेंद्र मोदी पर विश्वास किया। उनके हर झूठ को सच मानकर अपना हित जाना। वह चुनाव से पहले जनता को एक नए ‘शत्रु’ से निजात दिलवाने वाले संकटमोचक का रूप धारण कर भोली जनता को भ्रमित करते रहे और वोट बटोरते रहे। जनता उन पर अंध विश्वास करती रही। परंतु किसान आंदोलन वह आंदोलन है जिसने जनता की आंखों से मोदी अंध विश्वास की पट्टी खिसकानी शुरू कर दी है। यदि मोदी जी पर से जनता का विश्वास टूटा तो फिर तो भ्रमित करने वाले और झूठे वादे कर चुनाव जीतने वाले नरेंद्र मोदी का स्वरूप झलकने लगेगा और यह नरेंद्र मोदी की अपार राजनीतिक क्षति होगी। अब मोदी जी को यह फैसला करना है कि वह अभी भी अडानी-अंबानी जैसे पूंजीपतियों की सेवा करेंगे या स्वयं अपने राजनीतिक हित की चिंता करेंगे। देखिए, आगे- आगे होता है क्या!
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