नरेंद्र मोदी सरकार ने किसानों से वादा तो दोगुनी आमदनी करने का किया था लेकिन उनकी आमदनी न केवल घट रही है बल्कि मौसम की मार झेल रहे किसानों को मुआवजा तक नहीं मिल रहा है। इतना ही नहीं, उनके नाम पर शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का पैसा भी पूरा नहीं मिल रहा है।
सरकार मानती है कि ग्रामीण भारत में 25 पेशे हैं। इनमें 12 कृषि कार्य और 13 गैर कृषि कार्य से संबद्ध हैं। दिसंबर के दूसरे सप्ताह में जारी लेबर ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, इन सभी 25 पेशों में काम कर रहे पुरुष कामगारों की औसत आय सितंबर माह में 331.29 रुपये रही। यह यूं तो पिछले साल के सितंबर माह की तुलना में 3.42 फीसदी अधिक रही, लेकिन महंगाई दर के हिसाब से देखा जाए तो ग्रामीण आय वृद्धि घटकर -3.77 फीसदी हो गई। इस दर को मुद्रास्फीति समायोजित ग्रामीण आय कहा जाता है, यानी सरल शब्दों में, जिस दर से महंगाई बढ़ रही है, उस हिसाब से ग्रामीणों की आमदनी बढ़ने की बजाय घट रही है।
वैसे भी, वर्तमान आर्थिक मंदी की सबसे बड़ी वजह यही मानी जा रही है कि ग्रामीण क्षेत्र की क्रय शक्ति कम होने के कारण खपत कम होती जा रही है। मार्केट रिसर्च फर्म नीलसन के हाल में आए सर्वे में कहा गया है कि जुलाई-सितंबर की तिमाही में रोजमर्रा के जरूरी सामानों की खपत साल-दर-साल घटकर पांच फीसदी रही जो बीते सात सालों में सबसे कम है।
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दिखाया सिर्फ ख्वाब
इस बार आम चुनाव से ठीक पहले सरकार ने किसानों को 6,000 रुपये सालाना देने की घोषणा की थी और पहली किस्त के रूप में 2,000 रुपये दे भी दिए गए। लेकिन देखना चाहिए कि यह छलावा किस तरह है। यह योजना 1 दिसंबर, 2018 को शुरू हुई। इस स्कीम का सालाना खर्च 75 हजार करोड़ रुपये आंका गया था। 1 फरवरी, 2019 को जब मोदी सरकार ने अंतरिम बजट जारी किया तो इस योजना के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। इससे यह संदेश गया कि सरकार पहली किस्त के तौर पर लगभग 12 करोड़ किसानों को 20 हजार करोड़ रुपये देगी। लेकिन यह एक झांसा साबित हुआ।
अभी शीतकालीन सत्र के दौरान 13 दिसंबर, 2019 को राज्यसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि 2018-19 में किसानों को 6,000 करोड़ रुपये दिए गए, यानी ढोल 20 हजार करोड़ रुपये का बजाया गया और दिए केवल 6000 करोड़ रुपये। ये पैसे भी किन किसानों को दिए गए, इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। दरअसल, आम चुनाव जीतने के लिए सरकार ने एक बड़ी शर्त से छूट दे दी और कहा कि अभी तो जितने किसानों की सूची राज्य सरकारें भेजेंगी, उतने किसानों को 2000 रुपये की किस्त जारी कर दी जाएगी लेकिन बाद में उन्हें अपना अकाउंट आधार कार्ड से लिंक कराना होगा। इस तरह सरकार ने रकम बांटनी शुरू की। इन 6000 करोड़ रुपये में से लगभग 2200 करोड़ रुपये, यानी लगभग 36 फीसदी रकम केवल उत्तर प्रदेश में बांटी गई। यहां यह उल्लेखनीय है कि आवारा पशुओं की वजह से उत्तर प्रदेश का किसान बीजेपी से बहुत ज्यादा नाराज था। ऐसे में, क्या यह संयोग था कि उत्तर प्रदेश के किसानों के नाम ही सबसे ज्यादा पैसे जारी किए गए।
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घटती जा रही संख्या
चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार को यह स्कीम तुरुप का पत्ता लगी और घोषणा की गई कि इस स्कीम का दायरा बढ़ाकर सभी किसानों को 6,000 रुपये दिए जाएंगे और पूर्ण बजट 2019-20 में इस स्कीम के लिए 75 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। 13 दिसंबर को राज्यसभा में दी गई जानकारी बताती है कि 1 अप्रैल से 30 नवंबर, 2019 के दौरान 29 हजार 87 सौ करोड़ (लगभग 30 हजार करोड़ रुपये) पीएम किसान सम्मान योजना के लिए जारी किए जा चुके हैं। क्या अगले 4 महीने में सरकार 45 हजार करोड़ रुपये दे पाएगी? जबकि किसान आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें पहली किस्त तो दी गई, लेकिन उसके बाद से पैसा नहीं मिल रहा है।
दरअसल, सत्यापन के नाम पर सरकार ने किसानों की अगली किस्त रोक दी है। 29 नवंबर, 2019 को राज्यसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक, 1 दिसंबर, 2018 से 31 मार्च, 2019 के बीच 4.74 करोड़ किसानों ने स्कीम में अपना नाम रजिस्टर कराया लेकिन इनमें से लगभग 4.20 करोड़ किसानों को पहली किस्त तो मिली लेकिन तीसरी किस्त 3.78 करोड़ किसानों को ही मिली, यानी लगभग 44 लाख किसानों को स्कीम से बाहर कर दिया गया है।
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अब बड़ा सवाल यह है कि अगर सत्यापन के बाद यह पता चलता है कि जिसको पहली किस्त दी गई, वह पात्र ही नहीं था तो क्या सरकार ने चुनाव से पहले लगभग 44 लाख गलत लोगों को दो-दो हजार रुपये (जो लगभग 880 करोड़ रुपये बनते हैं) ऐसे ही बांट दिए हैं या सरकार अपनी माली हालत देखते हुए स्कीम में शामिल किसानों की संख्या कम करती जा रही है? क्योंकि अभी सरकार की शर्त है कि अब 1 दिसंबर, 2019 के बाद केवल उन्हीं किसानों को अगली किस्त मिलेगी जिनका आधार बैंक खाते से जुड़ा होगा। ऐसे में, कितने किसान इस स्कीम से बाहर हो जाएंगे, अनुमान लगाना कठिन है।
पीएम फसल बीमा योजना
साल 2014 में जब पहली बार मोदी प्रधानमंत्री बने थे, तो उस साल मानसून बहुत बेहतर रहा था और मोदी ने कहा था कि देश में नसीब वालों की सरकार बनी है, इसलिए ऐसा हो रहा है। लेकिन दसूरी बार जब मोदी सरकार बनी तो मानसून ने रौद्र रूप दिखाया और किसानों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा। मोदी कहते हैं कि किसानों को फसल के नुकसान की भरपाई के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की गई है। लेकिन यह योजना फ्लाॅप साबित हो रहा है। किसानों से बीमे की किस्त तो काटी जा रही है परंतु नुकसान होने पर भरपाई नहीं की जा रही है। कई इलाकों में किसानों को पिछले साल का मुआवजा नहीं मिला है।
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इस योजना से जुड़े सवाल जब भी सरकार से पूछे जाते हैं तो जवाब बहुत संभल कर दिया जाता है। बीते शीतकालीन सत्र में इससे संबंधित कई सवाल पूछे गए लेकिन जवाब बहुत घुमा-फिराकर दिया गया। लेकिन एक सवाल जो राज्यसभा सदस्य रवि प्रकाश वर्मा ने पूछा था के जवाब में आखिरी पंक्तियों में बताया गया कि 2016-17 के लिए दावों की लंबित राशि 5.2 करोड़ रुपये, 2017-18 के लिए 145 करोड़ रुपये और 2018-19 के लिए 3,595.7 करोड़ रुपये है, यानी कि बीमा कंपनियों ने पिछले साल का लगभग 3,595 करोड़ रुपये देना है।
यह स्थिति तब है, जब बीमा कंपनियां जितना पैसा इकट्ठा कर रही हैं, उससे लगभग दोगुना कमा रही हैं। सरकार बताती है कि 2016-17 में 21 हजार 896 करोड़ रुपये का प्रीमियम इकट्ठा हुआ और भुगतान 16 हजार 657 करोड़ रुपये का किया गया। इसी तरह अगले वर्ष 25,461 करोड़ रुपये का प्रीमियम आया और क्लेम का भुगतान 21,694 करोड़ रुपये किया गया। इसी तरह 2018-19 में कंपनियों के पास प्रीमियम के रूप में 28,802 करोड़ रुपये पहुंचे और उन्होंने किसानों के दावे का भुगतान 17,790 करोड़ रुपये किया। यानी, मोदी की सबसे प्रिय योजना का लाभ किसानों को कम, कंपनियों को ज्यादा हो रहा है।
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