देश के सबसे वंचित और जरूरतमंद समूहों की पहचान की जाए तो हमारे गांवों के भूमिहीन परिवारों को सबसे ऊपर रखा जाएगा। इसके बावजूद वे ही आज सबसे बुरी तरह उपेक्षित हैं। उन्हें भी भूमि का कुछ हिस्सा मिलना चाहिए, आज इसकी चर्चा तक नहीं हो रही है।
ऐसा हमेशा नहीं था। एक समय हमारे देश में भी भूमि सुधार कार्यक्रम को और विशेषकर भूमिहीनों में भूमि वितरण कार्यक्रम को महत्त्व दिया गया, पर आज यह पूरी तरह उपेक्षित है।
विश्व के जाने माने अर्थशास्त्रियों और विकास संस्थानों में आज भी व्यापक मान्यता है कि भूमि-सुधार और विशेषकर समतावादी भूमि पुनर्वितरण का गरीबी और भूख की प्रमुख समस्याएं दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। गरीबी दूर करने के अन्य उपायों का असर अल्प-कालीन हो सकता है, पर भूमिहीनों को भूमि मिलने से गरीबी टिकाऊ तौर पर कम हो सकती है। सबसे निर्धन वर्ग ही भूख और कुपोषण सबसे अधिक पीड़ित है। उसके अपने खेतों पर खाद्यों का उत्पादन हो तो यह खाद्य सुरक्षा के लिए सबसे उपयोगी है।
संयुक्त राष्ट्र संघ का खाद्य और कृषि संगठन हो या अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, विभिन्न महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों की रिपोर्टों में भूमि सुधारों की यह महत्त्वपूर्ण भूमिका स्वीकार की गई है।
किसानों से अन्याय की भी गंभीर समस्याएं हैं, पर उन पर कम से कम चर्चा तो हो रही है। गांवों के भूमिहीन परिवारों के लिए कुछ भूमि की व्यवस्था करने पर तो आज चर्चा तक नहीं हो रही है।
भूमिहीनों के लिए कुछ न्यूनतम कृषि भूमि की व्यवस्था करना एक बहुत न्यायसंगत मांग है। यह देश में गरीबी और भूख कम करने के लिए जरूरी मांग है। अतः इसे नए सिरे से महत्त्व मिलना चाहिए।
इतना ही नहीं अनेक ग्रामीण भूमिहीन परिवारों के लिए तो अभी आवास भूमि भी सुनिश्चित नहीं हुई है। आवास भूमि कानूनी तौर पर उपलब्ध नहीं होने के कारण ऐसे अनेक परिवार बहुत अनिश्चित स्थिति में रहने को मजबूर हैं। इतना ही नहीं, ऐसे अनेक परिवारों को गांवों के सबसे धनी संपन्न परिवार यह कहते आए हैं कि वे उनकी जमीन पर बसे हैं। इस कारण इन भूमिहीन परिवारों की स्थिति बंधक मजदूरों जैसी हो जाती है।
अतः आवास भूमि और कुछ न्यूयनतम कृषि भूमि गांव में स्थाई तौर पर रहने वाले सभी भूमिहीन परिवारों को उपलब्ध होनी चाहिए। ऐसा होने पर गांव समुदाय के सदस्य के रूप में इन सबसे निर्धन परिवारों को बेहतर मान्यता मिल सकेगी। उनकी सामाजिक और आर्थिक दोनों तरह की स्थिति में सुधार होगा।
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इसके साथ हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अनेक ग्रामीण दस्तकारों और विविध आजीविका से जुड़े लोगों को भी अपने कार्य के लिए कुछ भूमि की जरूरत होती है। कुम्हारों को कुछ भूमि मिट्टी प्राप्त करने के लिए चाहिए। समुद्र तटीय क्षेत्रों के पास के मछुआरों को भी कुछ जमीन अपने कार्यस्थल के पास चाहिए होती है। जुलाहों को अपने करघों के लिए सामान्य से अधिक आवास भूमि की आवश्यकता होती है। निर्धन वर्ग की इन विविध आवश्यकताओं को भी भूमि सुधार कार्यक्रम में सम्मिलित करना चाहिए।
भूमि-सुधार कार्यक्रम एक ऐसा कार्यक्रम है, जो देश के सबसे कमजोर और जरूरतमंद वर्ग को अपेक्षाकृत कम खर्च पर आजीविका और अन्य सुधार के टिकाऊ लाभ दे सकता है। इस कार्यक्रम को आज जिस तरह उपेक्षित किया जा रहा है वह बहुत अनुचित है। भूमि सुधार को देश के विकास कार्यक्रमों में शीघ्र ही महत्त्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए।
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