पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में इन दिनों बिजली की बढ़ी कीमतों के विरोध में धरना प्रदर्शन किए जा रहे हैं। प्रदर्शन में शरीक कुछ लोगों का यह भी कहना है कि बिजली के बिल उनकी पूरी आमदनी से भी अधिक आने लगे हैं। पाकिस्तान सरकार के अनुसार हाल में ही उन्हें इंटरनेशनल मोनेटरी फण्ड से 7 अरब डॉलर का लोन अनेक शर्तों के साथ स्वीकृत किया गया है। इन शर्तों में एक शर्त बिजली की कीमतों में वृद्धि करना भी है। बिजली की बढ़ती कीमतों के कारण अचानक से पाकिस्तान में ऊर्जा के सन्दर्भ में गरीबी तेजी से बढ़ी है। हमारे देश में भी समय-समय पर किसान बिजली के बिलों में कटौती या फिर पूरी तरह माफ करने की मांग करते हैं।
ऊर्जा के सन्दर्भ में गरीबी की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है, पर इसमें जनता के लिए बिजली या ईंधन की अनुपलब्धता या फिर गरीबी के कारण बिजली या ईंधन का उपयोग न कर पाना शामिल है। आयरलैंड के यूनिवर्सिटी ऑफ़ गल्वय में ऊर्जा पर अनुसंधान कर रही वैज्ञानिक लाला रुख के अनुसार ऊर्जा की गरीबी कुछ लोगों के लिए जीवन और मृत्यु का प्रश्न भी बन सकता है। तापमान वृद्धि के कारण लगभग हरेक वर्ष अप्रैल-मई के महीने में लगभग पूरी दुनिया में भीषण गर्मी पड़ रही है, हरेक वर्ष तापमान के नए कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं। ऐसे में बिजली का न होना या फिर महंगी बिजली के कारण पंखे या एसी नहीं चलाने से लोगों की जान भी जा रही है। पिछले वर्ष पाकिस्तान से ऐसी ख़बरें आईं थीं और इस वर्ष कनाडा में भी कुछ बुजुर्गों की मृत्यु इसी कारण हो गयी है।
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हमारे देश में बिजली की सुविधा से वंचित आबादी का एक निश्चित आंकड़ा नहीं मिलता। संभवतः वर्ष 2019-20 में लोक सभा सचिवालय द्वारा तैयार एक रिसर्च पेपर के अनुसार देश में एक लाख लोग ऐसे हैं जो बिजली की सुविधा से वंचित हैं, और लाखों लोगों को पर्याप्त बिजली नहीं मिलती। इन दावों से परे, संयुक्त राष्ट्र के इकनोमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड पैसिफ़िक की वर्ष 2023 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 67 लाख आबादी ऐसी है जिसे बिजली की सुविधा नहीं मिली है। हमारे देश में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत भी दुनिया में सबसे कम में से एक है। प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो की 15 दिसम्बर 2022 को जारी विज्ञप्ति के अनुसार वर्ष 2021-2022 में देश में प्रति व्यक्ति बिजली की औसत खपत 1255 किलोवाट घंटा थी, जो दुनिया के प्रति व्यक्ति औसत खपत की तुलना में एक-तिहाई से भी कम है। पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-2023 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला खर्च औसतन 3773 रुपये है, जबकि शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति खर्च इससे 1.71 गुना अधिक यानि 6459 रुपये है। व्यय में इतने अंतर के बाद भी ग्रामीण क्षेत्र में कुल खर्च में से 6.7 प्रतिशत खर्च बिजली और वृद्धि में व्यय किया जाता है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह खर्च 6.3 प्रतिशत है।
मई 2024 में ऊर्जा पर आधारित जर्नल, जूल, में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दुनिया में ऊर्जा के सन्दर्भ में गरीब आबादी पहले के किसी भी आकलन से अधिक है। इस अध्ययन में 3000 से अधिक रातों के उपग्रहों के चित्रों का विस्तार से अध्ययन और विश्लेषण करने के बाद बताया गया है की दुनिया की लगभग 1.18 अरब आबादी बिजली और ऊर्जा के सन्दर्भ में गरीब है, और इसमें से अधिकतर आबादी अफ्रीकी देशों में और पूर्वी एशियाई देशों में बसती है। उपग्रह के चित्रों में इस आबादी द्वारा बिजली उपयोग का कोई संकेत नहीं मिला।
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इससे पहले जून 2023 में वर्ल्ड बैंक के साथ सयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी अनुभाग, इन्टरनेशनल एनर्जी एजेंसी और इन्टरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी ने मिल कर एक संयुक्त अध्ययन में बताया था कि वर्ष 2021 में उर्जा के सन्दर्भ में वैश्विक गरीब आबादी 67.5 करोड़ है, जिसमें से 80 प्रतिशत आबादी अफ्रीकी देशों में ही है। हालांकि इस क्षेत्र में दुनियाभर में तेजी से प्रगति की जा रही है, वर्ष 2010 में ऐसी आबादी 1.1 अरब थी। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक दुनिया में बिजली से वंचित आबादी 66 करोड़ रहने का अनुमान है, जबकि रसोई के स्वच्छ वृद्धि से वंचित आबादी वर्ष 2030 तक 1.9 अरब होगी।
इन दोनों अध्ययनों को एक साथ देखने पर स्पष्ट है कि भले ही दुनिया में ऊर्जा के क्षेत्र में प्रगति पर लगातार चर्चा की जाती हो पर वर्ष 2010 के बाद से इस क्षत्र में धरातल पर कोई प्रगति नजर नहीं आती है, उल्टा यह समस्या पहले से भी अधिक गंभीर हो चली है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 में दुनिया में 1.1 अरब आबादी के पास बिजली की सुविधा नहीं थी, जबकि जूल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार वर्तमान में 1.18 अरब आबादी के पास यह सुविधा नहीं है।
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संयुक्त राष्ट्र के बहुचर्चित सतत विकास लक्ष्य 2015 के अनुसार वर्ष 2030 तक दुनिया के शत-प्रतिशत आबादी के लिए स्वच्छ और वहां करने योग्य ऊर्जा की उपलब्धता का लक्ष्य है। जाहिर है तमाम दावो के बाद भी इस लक्ष्य को पूरा करना असंभव नजर आ रहा है। हमारे देश में भी बड़े-बड़े दावों के बीच मोबाइल के टोर्च की रोशनी में ऑपरेशन करने की खबरें भी आती रहती हैं। यहाँ ऊर्जा की खबरें सौर ऊर्जा और उज्वला योजना तक ही सीमित रहती हैं। दूसरी तरफ दिल्ली जैसे शहरों में भी श्रमिकों की बस्तियों में बिजली का अकाल रहता है और हरेक शाम को इन घरों की महिलाएं लकड़ियों का गट्ठर उठाये सड़कों पर दिखती हैं।
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