भारत में हाथियों की आबादी तेजी से गिर रही है। इस तरह के दावे करके हम अपनी पीठ थपथपाते हैं कि एशियाई हाथियों की कुल आबादी का आधा भारत में है लेकिन सरकारी रिपोर्ट ही चिंता में डालने वाली है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के हालिया सर्वे से संकेत मिलते हैं कि जिस रफ्तार से भारत में एशियाई हाथियों की संख्या घट रही है, उससे इनके लुप्त हो जाने की आशंका पैदा हो गई है।
जंगली हाथियों की मौत की एक बड़ी वजह इनका करंट की चपेट में आ जाना है। इस साल मार्च के पहले दो हफ्तों के दौरान तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले में बिजली के झटकों ने तीन हथनियों की जान ले ली। यहां किसानों ने फसलों को हाथियों से बचाने के लिए अवैध तरीके से बिजली की फेंसिंग लगा रखी है। वह तो अच्छा हुआ कि वन विभाग ने तत्काल बिजली विभाग के लोगों को जानकारी देकर तार में दौड़ रहे करंट को रुकवाया जिससे अपनी मां के शव के पास जाने की कोशिश कर रहे दो नन्हे हाथियों की जान बच गई। इससे 11 दिन पहले इसी जिले में इसी तरह से एक हाथी को करंट लगा और उसकी तत्काल ही मौत हो गई। जिस किसान ने करंट वाली फेंसिंग लगाई थी, उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
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वैसे, जंगलों से लगे खेतों को हाथियों से बचाने के लिए अवैध तरीके से करंट बाड़ लगाने का चलन देश भर के किसानों में देखा जा रहा है। एक समय था जब हाथियों की मौत की सबसे बड़ी वजह अवैध शिकार था लेकिन अब करंट हो गया है। किसान अपने खेत के चारों ओर बिजली का तार लगा देते हैं और इसे कटिया डालकर ऊपर से जा रहे बिजली के तार से जोड़ दिया जाता है। इसकी चपेट में आने पर हाथियों के बचने की गुंजाइश ही नहीं रहती। जिन-जिन राज्यों में हाथी कॉरिडोर हैं, वहां ऐसी घटनाएं हो रही हैं। वन मंत्रालय के मुताबिक, 2014 से वर्ष 2022 के बीच 531 हाथियों की मौत हो गई और यह देश में हाथियों की कुल आबादी का दो फीसद है।
तमिलनाडु में ऐसे ही अवैध तरीके से बिजली के तार लगाने वाले एक किसान ने पुलिस पूछताछ में बताया कि उसने जंगली सुअरों को मारने के लिए ऐसा किया था जो उसके खेतों को बर्बाद कर दे रहे थे जबकि उत्तराखंड के किसान हाथियों को मारने के लिए ऐसा करते हैं। देहरादून की पर्यावरण कार्यकर्ता रेणु पॉल कहते हैं- ‘समस्या यह है कि उत्तराखंड में जो दो हजार के करीब हॉथी कॉरिडोर हैं, उनमें स्थानीय लोगों ने घर बनाने और खेती-बाड़ी के लिए बड़े पैमाने पर जंगल की जमीन पर अतिक्रमण कर रखा है। अब जब आप हाथी कॉरिडोर को खंड-खंड कर देंगे तो खाना-पानी की तलाश में वे कहां जाएंगे?’
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उत्तराखंड में करंट लगने से हुई मौत के किसी भी मामले की वन विभाग ने विस्तृत जांच नहीं की। रुद्रपुर जिले में 9 जनवरी, 2023 को 30 साल के हाथी को करंट लग गया था। वन विभाग का दावा था कि उसकी मौत जमीन पर टूटकर गिरे हाईटेंशन तार के संपर्क में आने से हुई लेकिन यह पता लगाने का प्रयास नहीं किया गया कि यह तार टूटा कैसे। 15 दिसंबर, 2022 को हरिद्वार के खानपुर वन क्षेत्र में भी हाईटेंशन तार से एक हाथी की मौत हो गई थी।
राजाजी टाइगर रिजर्व के मानद वार्डन (रिटायर्ड) राजीव मेहता कहते हैं- ‘बिजली के तार लगाना सरासर अवैध है। जिस भी व्यक्ति के खेत में हाथी को बिजली का करंट लगे, उससे पुलिस को पूछताछ करनी चाहिए। लेकिन जब ऐसे लोग गिरफ्तार होते हैं, तो वे चंद दिनों में ही जमानत पर छूटकर बाहर आ जाते हैं। ऐसे में यह सब कैसे रुकेगा?’
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ओडिशा, असम और कर्नाटक में जितने हाथियों की मौत होती है, उनमें आधे से ज्यादा की वजह करंट होती है। राज्य वन्यजीव मुख्यालय के मुताबिक ओडिशा में करंट से 61 हाथियों की मौत हुई और इनमें से आधे से ज्यादा घटनाओं के पीछे शिकारी थे। असम में हाथियों की मौत की बड़ी वजह हैं करंट, जहर और ट्रेन की चपेट में आना। राज्य में 2017 के बाद से 212 हाथियों की मौत हुई जिनमें से 52 की मौत करंट लगने से, 26 की ट्रेन की चपेट में आने से जबकि 18 की मौत ग्रामीणों द्वारा जहर दे देने से हुई। गैर-सरकारी संगठनों को संदेह है कि बाकी के जिन 107 मौतों को ‘अज्ञात कारणों’ के खाने में रखा गया, ये वास्तव में बिजली के झटके और जहर देने की वजह से हुई मौतें हैं।
कर्नाटक हाथियों की सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है। यहां पिछले साल करंट लगने से सात हाथियों की मौत हुई। गांववालों का कहना है कि बिजली की बाड़ लगाना अकेला तरीका है जिससे वे अपनी फसलों की रक्षा कर सकते हैं। इस तरह के मामलों में अदालती कार्यवाही आम लोगों और शिकारियों में खौफ का माहौल बनाने में नाकाम रही है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाथी को करंट लगाकर मार दिए जाने के मामले में निचली अदालत की सजा को बरकरार रखा है लेकिन इस चरण तक आने में 14 साल लग गए।
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विशेषज्ञों का मानना है कि वन विभाग वन क्षेत्र में बढ़ते अतिक्रमण को रोकने में आम तौर पर इससे जुड़े राजनीतिक हितों के खिलाफ खड़ा नहीं होता। इससे इंसानों और हाथियों में संघर्ष बढ़ा है। मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए वन विभाग को सौर बाड़ एक उपाय दिखता है। उत्तराखंड में इस पर करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। चौंकाने वाली बात है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में विश्राम गृहों और वन चौकियों के भी चारों ओर सोलर फेंसिंग लगाने पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए। अप्रैल, 2021 में हरिद्वार में हुए कुंभ मेले से पहले हरिद्वार तक जाने वाले मुख्य राजमार्गों के किनारे सौर बाड़ लगाने पर 5 करोड़ रुपये खर्च किए गए। यह पैसे की भारी बर्बादी साबित हुई है क्योंकि ये सौर बाड़ हाथियों को रोकने में असफल रहे हैं।
असम का वन विभाग हैंगिंग सोलर तार का उपयोग कर रहा है। उत्तराखंड में बाड़ जमीन खोदकर लगाई जाती है। रेंज ऑफिसर मनोरंजन बर्मन का दावा है कि गुवाहाटी के पास रानी रिजर्व फॉरेस्ट के किनारे पर इस तरह की बाड़ लगाई गई है और इससे हाथियों को मानव बस्तियों और धान के खेतों को नष्ट करने से रोकने में मदद मिली है।
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हाथी बुद्धिमान प्राणी हैं और वैज्ञानिकों के अनुसार, निवारक उपायों के अनुकूल आचरण करना जल्दी सीख जाते हैं। असम में मानस टाइगर रिजर्व के पूर्वी भाग में, स्थानीय गैर सरकारी संगठनों ने ग्रामीणों को अपनी अवैध बिजली की बाड़ को सौर ऊर्जा से चलने वाली बिजली की बाड़ में बदलने के लिए राजी किया।
कई पर्यावरण वैज्ञानिक बताते हैं कि हाथी मनुष्यों की तरह पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से पीड़ित होते हैं और तब वे उदास और आक्रामक हो जाते हैं और जब वे अपना घर खो देते हैं तो नाराजगी जाहिर करते हैं। मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ में हसदेव अरंड जंगल का बड़ा इलाका कोल लिमिटेड को सौंप दिया है और देहिंग पटकाई एलीफेंट रिजर्व के एक बड़े क्षेत्र में ओपन कास्ट खनन की अनुमति दी है। जाहिर है, हाथियों के घर की चारदीवारी सिकुड़ गई है।
एक वन अधिकारी ने कहा, ‘शायद जंगली हाथियों को देखने वाली हम आखिरी पीढ़ी हैं। हाथी कैद में प्रजनन नहीं करते। अगर आज से दो दशक बाद चीतों की तरह ही हाथियों का आयात करना पड़ जाए, तो यह कोई हैरानी की बात नहीं होगी। तब सरकार भले इसपर हजारों करोड़ खरच दे लेकिन आज इन हाथियों को जिंदा बचाने की कोशिश नहीं करेगी।
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