तब, मेहरबान-साहिबान-कद्रदान, आप सभी लोग नरेंद्र मोदी के नए अवतार का इंतजार करना शुरू कर दीजिए। वह कई रूप में देश-विदेश में आते ही रहे हैं। इस तरह-तरह के गेटअप पर हम-आप बात भी कई दफा करते रहे हैं। इस बार तैयारी जरा हट कर है। लेकिन इससे पहले भी कुछ-कुछ होना ही है। भाई, ड्रामा करने में तो साहब का जवाब नहीं है न!
आप मुंह लटकाए रखें कि अर्थव्यवस्था के बुरे हाल को सुधारने के लिए कुछ नहीं हो रहा और इन भाई लोगों ने नागरिकता कानून के नाम पर पूरे देश को आग में झोंक दिया है। इनसे इन्हें फर्क नहीं पड़ता। ये तो अव्यवस्था को भी शक्कर समझते हैं, क्योंकि यह इनके मुंह लग चुका है। इसलिए आग जितनी बढ़ेगी, ये उतनी अधिक रोटी सेंक लेंगे। और इन सबके लिए उन्होंने ढाल भी बना ली हैः सारे आधुनिक संपर्क बंद कर दो- लैंडलाइन, मोबाइल फोन बंद कर दो, नेट कनेक्शन ठप कर दो। लो, कल्लो बात। गड़बड़ी की खबर कहीं है? अगर कोई खबर है, तो उसका आधार क्या है? कश्मीर में यही किया। इस बार पूर्वोत्तर से लेकर जहां से भी गड़बड़ी की सूचनाएं मिलना शुरू हुईं, वहां के सारे कम्युनिकेशन, कनेक्शन ही खतम। कहते भी हैंः नो न्यूज इज गुड न्यूज।
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संसद के अगले सत्र में समान नागरिक संहिता के लिए तैयार रहने का वक्त आ गया है। इस पर गृह से लेकर कानून मंत्रालय तक में रात-दिन काम चल रहा है। दरअसल, इसे लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका पर सुनवाई चल रही है। केंद्र सरकार ने अभी 9 दिसंबर को ही न्यायालय को बताया है कि उसने समान नागरिक संहिता को लेकर विभिन्न राज्यों से राय मांगी है और अभी सबकी राय मिली नहीं है। इस तरह की संहिता लागू करने का केंद्र को निर्देश देने की याचिका एक बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की है। इनका एक फेसबुक पोस्ट बताता है कि बीजेपी का इरादा क्या हैः सबको पता है कि सीएए तो बहाना है, यूसीसी (समान नागरिक संहिता) अटकाना है, एनआरसी को लटकाना है, रोहिंग्याओं को रोकना है, बांग्लादेशियों को बचाना है, जनसंख्या विस्फोट करना है, धर्मांतरणरोधी कानून लटकाना है।
वैसे, समान नागरिक संहिता की एक ही याचिका न्यायालय के सामने है। कई अन्य लोगों ने भी इसे लेकर याचिकाएं दायर की हुई हैं लेकिन न्यायालय ने उनपर सुनवाई नहीं की है। अधिवक्ता अभिनव बेरी ने जो याचिका दायर की है, उसमें कहा गया है कि लैंगिक न्याय, समानता और महिलाओं के सम्मान के लिए यह जरूरी है। अंबर जैदी ने भी इसी उद्देश्य से इस बारे में याचिका दायर की है। अंबर जैदी वही महिला हैं, जिन्हें एक टीवी कार्यक्रम में स्क्रीन पर मारपीट करते हुए लोगों ने देखा था। एक और याचिका दायर करने वाली निकहत अब्बास खुद को सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक कहती हैं और बीजेपी की नीतियों का खुलकर समर्थन करती हैं। वैसे, इसी तरह की याचिका दायर करने वालों में मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के कुलपति फिरोज बख्त अहमद भी हैं। वह भी बीजेपी की नीतियों का खुलकर समर्थन करते हैं। वह कांग्रेस और आजादी के आंदोलन के सम्मानित नेता अबुल कलाम आजाद के पोते हैं।
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साहिबान, यह सब बताने का मकसद यह है कि बीजेपी और संघ परिवार ने इस बारे में भी घेराबंदी करने की हरसंभव तैयारी कर ली है। आप भले ही इसे संवेदनशील मानते हों और सोचते हों कि इस वक्त इसका क्या मतलब है लेकिन उससे इन्हें क्या मतलब है?
अभी पिछले स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से दिया नरेंद्र मोदी का भाषण आपको याद है? नहीं? अब तो ऑनलाइन सबकुछ उपलब्ध है। दोबारा पढ़िए, सुनिए। उसमें मोदी ने जनसंख्या नियंत्रण पर खासा जोर दिया था। संघ परिवार का यह भी एक प्रिय विषय है क्योंकि इस नाम पर भी मुसलमानों को डराया-धमकाया जा सकता है। इससे संबंधित कानून की तैयारी तो अटल बिहारी वाजपेयी के तीसरी बार प्रधानमंत्री रहने के दौरान ही हो गई थी। उन्होंने साल 2000 में वेंकटचलैया आयोग बनाया था। उसने जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की वकालत की थी। लेकिन लालकृष्ण आडवाणी के इंडिया शाइनिंग के चक्कर में अटल सरकार 2004 चुनाव में डूब गई। अब उस फाइल पर दोबारा काम चल रहा है।
इसके लिए भी अश्विनी कुमार उपाध्याय खूब मेहनत कर रहे हैं। अरे, वही अश्विनी जिन्होंने समान नागरिक संहिता के लिए याचिका दायर की हुई है। उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए भी याचिका दायर कर रखी है। अभी 16 अगस्त को उन्होंने पीएमओ में इसे लेकर प्रेजेंटेशन भी दिया। वह सार्वजनिक तौर पर कहते भी रहे हैं कि चोर, डकैत, झपटमार, बलात्कारियों और भाड़े के हत्यारों पर सर्वे करने से पता चलता है कि 80 प्रतिशत से अधिक अपराधी ऐसे हैं जिनके मां-बाप ने “हम दो-हमारे दो” नियम का पालन नहीं किया और भारत की 50 फीसदी से अधिक समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है।
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लेकिन कद्रदानों, ये सब तो फुलझड़ियां मानिए। असली धमाका तो जुलाई, 2022 में होना है जिसके लिए असली पोशीदा तैयारी है। यह समय क्यों? दो बातें हैंः पहली, अगली बार सत्ता में लौटने का बीजेपी नेतृत्व का भरोसा डगमगा रहा है; दूसरी, तब तक अपनी सारी मुरादें पूरी कर लेने की हड़बड़ी भी है। तो, यह समय इसलिए चुना गया है कि उस वक्त रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति पद से रिटायर हो जाएंगे, इसलिए उनका स्थानापन्न खोजा जाना है। संघ परिवार चाहता है कि राष्ट्रपति को सिर्फ मुहर नहीं रहना चाहिए, उन्हें सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। इसीलिए बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व- मतलब, मोदी-अमित शाह (और है ही कौन?), चाहता है और वह इसके लिए तैयारी भी कर रहा है कि राष्ट्रपति-पद को कैसे और मजबूत किया जाए।
ये लोग चाहते हैं कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पद कुछ-कुछ वैसे ही हों जैसा अभी रूस में है- चाहे फुदक कर इस पद पर, तो फुदक कर उस पद पर। दरअसल, इस बार, पहली बार ही केंद्रीय मंत्री बने मोटाभाई को बहुत दिनों तक इस पद पर रखना उचित नहीं लग रहा- उनकी प्रोन्नति जरूरी है। गृह मंत्री के जूते के साइज से उनके पैर बड़े हो गए हैं। वैसे भी, वह अभी से प्रधानमंत्री के समकक्ष माने जाते हैं- साहब की सरकार में मोटाभाई की इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता! मोदी इसलिए अब कम दिखने लगे हैं। चुनावी सभाओं के अलावाअन्य कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति जरूरी नहीं मानी जाती- ट्विटर वगैरह तक ही वह सिमट रहे हैं। लेकिन बीजेपी जानती है कि मोदी के बिना उसे मुश्किल होगी। इसीलिए उन्हें अगला राष्ट्रपति बनाने की सभी तैयारी जारी है। उनके गले की नाप भी मोटा भाई ने ले ली है- नई शेरवानी के लिए।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
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