सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने तमाम निवेशकों को बहला-फुसला या धमकाकरआप जो चाहे कह लें- इक्विटी के तौर पर संकटग्रस्त येस बैंक में पैसे डालने के लिए राजी कर लिया है। भारतीय स्टेट बैंक येस बैंक के पुनरुद्धार के लिए 6,500 करोड़ यानी 80 करोड़ डॉलर का मोटा पैसा लगाने जा रहा है। हाउसिंग डेवलपमेंट एंड फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचडीएफसी लि.) ने 1000 करोड़ लगाए हैं और इतना ही आईसीआईसीआई बैंक भी डाल रहा है। एक्सिस बैंक लि. 600 करोड़, कोटक महिन्द्रा बैंक ने 500 करोड़, फेडरल बैंक लि. और बंधन बैंक ने 300-300 करोड़ तो आईडीएफसी फर्स्ट बैंक 250 करोड़ लगा रहा है। येस बैंक में पैसे डालने वालों में से कुछ बैंकों और वित्तीय संस्थानों की हालत तो मजबूत है जबकि कुछ पहले से ही अपनी समस्याओं से निकलने की कोशिश कर रहे हैं। येस बैंक के नए निदेशकमंडल और प्रबंध निदेशक के नामों की घोषणा की जानी है जो बैंक का प्रशासन अपने हाथ में ले लेगा।
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शेयरधारकों के लिए तीन साल की लॉक-इन अवधि होगी जिसके दौरान वे अपने शेयर बेच नहीं सकेंगे। खाताधारकों के लिए 50,000 से ज्यादा निकासी पर लगी पाबंदी भी अब हटा ली गई है जिसका मतलब यह है कि अगर कोई खाताधारक चाहे तो अब अपना पूरा पैसा निकाल सकता है। वैसे, आरबीआई को उम्मीद है कि लोग ऐसा नहीं करेंगे। आरबीआई ने पहले ही राज्य सरकारों और बड़े खाताधारकों से अपील की है कि वे येस बैंक के अपने खाते को बंद नहीं करें। सरकार को उम्मीद है कि येस बैंक में इतनी मोटी धनराशि लगाने से अफरातफरी थमेगी और इससे व्यवसायियों और खाताधारकों में बैंक के प्रति भरोसा बहाल होगा।
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जैसे ही येस बैंक की पुनरुद्धार योजना का ब्योरा और इसमें पैसे लगा रहे निवेशकों की सूची की घोषणा की गई, तभी बैंक के तिमाही नतीजे की भी घोषणा की गई। उम्मीद के मुताबिक तिमाही नतीजे में कोई उत्साहजनक बात नहीं थी। बैंक ने दिसंबर में समाप्त तिमाही के दौरान 18,564 करोड़ का रिकॉर्ड नुकसान दिखाया और इसका एनपीए बढ़कर 40,709 करोड़ पर पहुंच गया। बैंक की खस्ताहाल को देखते हुए लोगों ने इससे पैसे निकालने में भलाई समझी और अब तक करीब 40,000 करोड़ रुपये निकल चुके हैं। बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो इंतजार कर रहे थे कि कब निकासी सीमा हटे और वे अपने पैसे निकाल लें। वैसे, अब जबकि निकासी पर पाबंदी हटा दी गई है, तो देखने वाले बात यह होगी कि निवेशकों के पैसे डालने से खाताधारकों में भरोसा जगा है या नहीं और इसकी परीक्षा की घड़ी अब शुरू हो चुकी है।
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किसी भी बैंक की साख निवेशकों और खाताधारकों के भरोसे में होती है। पिछले चंद दशकों के दौरान जो भी बैंक संकट में आए, उनका बड़े और मजबूत ब्रांड वाले बैंकों में विलय हो गया। उदाहरण के लिए जब ग्लोबल ट्रस्ट बैंक खस्ताहाल हुआ, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में उसका विलय हुआ। दि सेंचुरियन बैंक ऑफ पंजाब ने लॉर्ड कृष्णा बैंक का अधिग्रहण किया और फिर उसका खुद का अधिग्रहण एचडीएफसी बैंक ने कर लिया। इससे बैंकिंग व्यवस्था में लोगों का भरोसा बनाए रखने में मदद मिली। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इन सभी मामलों में संकट को काफी पहले भांप लिया गया और जब इन बैंकों का अधिग्रहण हुआ, वे काफी छोटे थे। लेकिन येस बैंक के साथ स्थिति और है। उसे बड़ा होने दिया गया- एक ऐसा बैंक जिसका बही खाता 3 लाख करोड़ से अधिक का था। इसी कारण समस्या इतनी बड़ी हो गई कि इसका निराकरण किसी एक बैंक के बूते नहीं रहा। यहां तक कि भारत के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के लिए भी येस बैंक का अकेले अधिग्रहण संभव नहीं था क्योंकि उसकी अपनी समस्याएं भी तमाम हैं जिनमें एनपीए एक बड़ा मुद्दा है। किसी भी वित्तीय संस्था का आकार ऐसा नहीं था कि इतनी बड़ी समस्या का सामना कर पाता। यही वजह है कि कई सालों के बाद यह पहली बार है जब इतनी बुरी हालत में पहुंच चुका कोई बैंक अन्य निवेशकों के पैसे की बदौलत अपने ही नाम से चलता रहेगा। और यह नहीं भूलना चाहिए कि इस व्यवस्था की अपनी खामियां हैं:
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यह सामान्य समझ की बात है कि बैंक आखिर करते क्या हैं। वे सस्ती दर पर पैसे लेते हैं और उससे महंगी दर पर ऋण देकर लाभ कमाते हैं। लेकिन इसके लिए किसी भी संस्था के प्रति लोगों का भरोसा मजबूत होना चाहिए, जो कि येस बैंक के मामले में दुर्भाग्य से अभी बिल्कुल ही हिला हुआ है। येस बैंक में जिन भी बैंकों और वित्तीय संस्थाओं ने पैसे डाले हैं, उनपर कितना रिटर्न मिलेगा, अभी यह कहना मुश्किल है। इस बात की संभावना नहीं के बराबर है कि ऋण लेने की इच्छा रखने वाला कोई भी पहले येस बैंक को संपर्क करेगा क्योंकि उसके सामने येस बैंक से बेहतर साख वाले तमाम बैंक विकल्प के तौर पर उपलब्ध होंगे। ऐसा भी नहीं होगा कि येस बैंक में निवेश से किसी बैंक का ऋण पोर्टफोलियो कोई मजबूत हो जाएगा। येस बैंक के साथ संबंध रखने से उन्हें कोई फायदा नहीं होने जा रहा क्योंकि वे सभी तो आखिरकार एक ही बाजार के खिलाड़ी हैं।
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ऐसे में यही कहा जा सकता है कि शायद पूरी कवायद इस बात के लिए है कि येस बैंक के ऑपरेशन को कैसे इतना छोटा कर दिया जाए कि किसी एक बैंक के लिए उसका अधिग्रहण संभव हो जाए। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि एक दिन वैसा भी आएगा जब निवेशकों को अहसास हो जाएगा कि उन्होंने अकारण ही बड़ा जोखिम उठा लिया क्योंकि जब भी कोई बड़ा जोखिम उठाया जाता है तो उसके पीछे बड़े रिर्टन की उम्मीद भी होती है। लेकिन यहां तो वैसा कुछ भी नहीं। इसलिए, फिलहाल यही कहा जा सकता है कि आगे-आगे देखिए, होता क्या है।
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