पूरी दुनिया में आज 26 सितंबर को परमाणु हथियारों के उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस विश्व के तमाम देशों को परमाणु हथियारों के खतरे के प्रति जागरुक करने और उनके उन्मूलन के लिए मनाया जाता है। वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण का लक्ष्य हासिल करना संयुक्त राष्ट्र के सबसे पुराने लक्ष्यों में से एक है। यह विषय साल 1946 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के पहले संकल्प में भी शामिल था।
संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा के अधिकांश सदस्य देश परमाणु हथियारों से मुक्त विश्व चाहते हैं। इस असंबेली की ओर से अनेक प्रस्ताव इसके लिए पास हो चुके हैं। और यह सिलसिला 1946 से अब तक चला आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव स्पष्ट कह चुके हैं कि परमाणु हथियारों से दुनिया की रक्षा का सबसे उचित उपाय यही है कि परमाणु हथियारों को ही समाप्त कर दिया जाए।
इतना ही नहीं, परमाणु हथियारों की दौड़ में सबसे आगे रहने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने परमाणु हथियारों की समाप्ति के पक्ष में बयान दिए थे। यहां तक कि आक्रमक विदेश नीति की पहचान रखने वाले कुछ शीर्ष के पूर्व अमेरिकी अधिकारियों जैसे हैनरी किसिंगर और जार्ज शूल्टज ने भी हाल के समय में परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया के पक्ष में लिखा है। सोवियत यूनियन के अंतिम राष्ट्रपति गोर्वेचोव परमाणु हथियारों के खतरे को दूर करने के पक्षधर रहे हैं। वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण हासिल करना संयुक्त राष्ट्र के सबसे पुराने लक्ष्यों में से एक है. यह वर्ष 1946 में महासभा के पहले संकल्प का विषय था
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लेकिन इन सबके बावजूद क्रूर विडंबना यह है कि इन सब नेक विचारों के बावजूद आज दुनिया में परमाणु हथियारों का संकट पहले से और विकट हो रहा है। इस समय दुनिया में लगभग 14500 परमाणु हथियार हैं, जिनमें से लगभग 13000 तो केवल संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के पास ही हैं। सभी परमाणु हथियारों से लैस देश इनके आधुनिकीकरण पर भारी निवेश कर रहे हैं।
शीत युद्ध के चरम के समय परमाणु हथियारों की संख्या इससे भी कहीं अधिक थी पर दोनों देशों के विशषज्ञों ने यह महसूस किया कि इतने हथियारों का तो कौई औचित्य ही नहीं है। इस स्थिति में संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने परमाणु हथियार कम करने के कुछ समझौते किए। यह सही कदम था, पर इससे दुनिया की सुरक्षा में कोई विशेष लाभ नहीं हुआ क्योंकि जो 14500 हथियार अभी मौजूद हैं वे भी पूरी दुनिया को एक बार नहीं कई बार उजाड़ने में समर्थ हैं।
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एक अन्य सवाल यह उठता है कि जिन हजारों हथियारों को कम करने की बात कही गई है वे वास्तव में कहां तक नष्ट हुए हैं। उन्हें तैनाती से तो हटा दिया गया है, लेकिन इनमें से अधिकांश हथियार नष्ट नहीं हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के एक हाल के दस्तावेज में कहा गया है कि ‘साल 2018 तक यह स्थिति है कि किसी भी समझौते के तहत एक भी परमाणु हथियार भौतिक तौर पर नष्ट नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त परमाणु हथियारों के निशस्त्रीकरण की या इन्हें समाप्त या न्यूनतम करने की कोई अधिकारिक या मान्यता प्राप्त बातचीत भी इस समय नहीं हो रही है।
स्काट सेगेन ने अपनी पुस्तक ‘द लिमिटस ऑफ सेफ्टी’ में बताया है कि कई बार दुर्घटनावश इन परमाणु हथियारों से बहुत बड़ी क्षति होते-होते बाल-बाल बची। परमाणु हथियारों से जुड़ी दुर्घटनाओं की बड़ी संभावना आज भी बनी हुई है। हाल के समय में परमाणु हथियारों के डिलीवरी सिस्टम अत्यधिक तेज होने के कारण यह संभावना पहले से अधिक बढ़ गई है कि भूलवश होने वाले हमले को समय पर रोका न जा सके और एक भूल दोनों पक्षों की बड़ी तबाही में बदल जाए।
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विश्व में और विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका में परमाणु हथियारों के विरुद्ध अनेक विशाल जन-प्रदर्शन हो चुके हैं। आज मानवता के सामने एक बड़ा सवाल यह है कि परमाणु हथियारों के विरुद्ध तथ्यों और जन-भावनाओं की बड़ी ताकत होने के बावजूद इनसे उपस्थित खतरा क्यों बढ़ता जा रहा है। परमाणु हथियारों के किसी बड़े युद्ध में करोड़ों लोगों के बहुत दर्दनाक ढंग से मरने के अतिरिक्त इसका पर्यावरण पर गंभीर असर पहुंचेगा और दूरगामी होगा, जिससे धरती की जीवनदायिनी क्षमता ही खतरे में पड़ जाएगी। इसलिए अगले कुछ वर्षों में विश्व को तेजी से परमाणु हथियारों से मुक्ति की ओर बढ़ना चाहिए और इस चुनौती को बहुत ऊंची प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
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