कोरोना महामारी के डर के कारण पूरे देश में छोटे बच्चों के स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक में ऑनलाइन पढ़ाई होने लगी है। बाजार की शक्तियों द्वारा तय एजेंडे को सरकार से लेकर शिक्षा के सभी स्तरों के प्रशासन तक पूरा करने में लगे हैं। यह सब तब है जबकि डिजिटल विभाजन हर जगह है और कई जगह तो परिवारों के पास संतुलित, हाई स्पीड इंटरनेट या अपेक्षित डिवाइस भी नहीं हैं। चूंकि पढ़ाई और परीक्षाओं की निश्चित डेडलाइन हैं, इसलिए उन्हें पूरा करने के खयाल से ईमेल अटैचमेंट के तौर पर हजारों असाइनमेंट शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच जा-आ रहे हैं। भारत के लोग होशियार हैं और किसी भी स्थिति का सामना जुगाड़ से कर लेते हैं। असाइनमेंट पूरा कर शिक्षकों को जो मेल किए जा रहे हैं, वे आम तौर पर ‘हाथ से लिखे स्कैन्ड उत्तर’ होते हैं और वे भी दूसरों के ईमेल एड्रेस से। इन सबको लेकर किसी तरफ से कोई शिकायत होती भी नहीं दिख रही है।
चूंकि कोई नियमित परीक्षा नहीं हो सकती इसलिए विश्वविद्यालय किताब खोलकर परीक्षा देने-जैसी ऑनलाइन/ऑफलाइन तौर-तरीके आजमा रहे हैं। इसमें किसी विषय की परीक्षा तीन घंटे में तो होती है- इसी अवधि में प्रश्न डाउनलोड करने होते हैं और उनके उत्तर अपलोड किए जाते हैं। अगर ईमेल काम नहीं कर रहे हैं, तो यह विकल्प भी आजमाया जा रहा है कि सेमेस्टर के अंत में होने वाली परीक्षाओं को असाइनमेंट के तौर पर दे दिया जाए और उनके उत्तर कुरियर से मंगवाए जाएं। उन लोगोंकी प्रशंसा करनी चाहिए जो जरूरत होने पर कमजोर नेटवर्क के बाद भी कनेक्ट हो जा रहे हैं, भले ही इसके लिए उन्हें अपने कच्चे मकान की छत या किसी पेड़ पर चढ़ जाना पड़े!
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इस तरह, महामारी के बावजूद, यथाशीघ्र विभिन्न कोर्सों को पूरा करने और परीक्षाएं संचालित करने के आदेश दिए गए हैं ताकि अगले सेमेस्टर के लिए एडमिशन बिना विलंब पूरे किए जा सकें। इन सबको युद्धस्तर पर पूरा करने की जल्दबाजी है और फिर भी लगता नहीं कि महामारी की वजह से पैदा हुए संकट से उबरने के लिए ये सब अस्थायी उपाय हैं। कोरोना का खौफ रहे या नहीं, लगता है, हम नए चलन के तौर पर पूरी तरह अराजनीतिक डिस्टेंस लर्निंग की लंबी अवधि में जा रहे हैं।
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कोरोना का भय और सोशल डिस्टेन्सिंग ऑनलाइन पढ़ाई के मापदंड का बहाना बन गया है। इसका मतलब है, विद्यार्थियों को कैंपस में आने की अनुमति नहीं होगी- आखिर, विद्यार्थी अधिकारवादी शासन के खिलाफ हर जगह दृढ़ता से खड़े भी हो रहे थे। यह भी उतना ही आश्चर्यजनक, असंगत और परस्पर विरोधी है कि वैसे शिक्षक जो वैसे तो ऑनलाइन टीचिंग और परीक्षाओं का विरोध कर रहे थे, वे भी वेबिनार और इन्स्टाग्राम शो में अचानक काफी सक्रिय हो गए हैं। लाइव कैमरे के सामने कुछ मिनट की प्रसिद्धि क्या सचमुच इतनी आकर्षक है कि दीर्घावधि वाले असर पर विचार भी नहीं किया जा रहा है? यह खास तौर पर भारत में हो रहा है। अमेरिका समेत कई देशों से संकेत मिल रहे हैं कि शिक्षक और छात्र क्लासरूम शिक्षा की ओर वापस आने को आतुर हैं, जूम पर कुछ हफ्तों ने ही ऑनलाइन शिक्षा के लालच से लोगों को मुक्त कर दिया है। लग रहा है कि अगला सेमेस्टर देर से शुरू होगा और जब इसकी शुरुआत होगी, तो यह (लंबे क्लास के लिए) ऑनलाइन और (छोटे सेमिनारों के लिए) सामान्य का मिश्रण होगा। ऐसा आने वाले महीनों में होना चाहिए और वह भी कोविड-19 की स्थिति देखकर, न कि अंधाधुंध डिजिटल बमवर्षा-जैसा जो आजकल हम देख रहे हैं। इन सब में शिक्षा का भारी-भरकम व्यापार शामिल है जो संकट की वजह से अपने लाभ में कटौती बर्दाश्त नहीं कर सकता। डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए यह वस्तुतः फायदा उठाने वाला अवसर है।
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पुराने, समझदार समय में इस तरह की भयानक महामारी का दौर होता, तो गर्मी की छुट्टियों के दिन बढ़ा दिए जाते और महामारी का प्रकोप कम होने और सामान्य स्थिति बहाल होने की प्रतीक्षा की जाती। ऐसा ही कुछ मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों ने किया भी है। उन्होंने गर्मी की छुट्टी पहले घोषित कर दी और इसकी अवधि बढ़ा दी। जब वे खोलने की हालत में होंगे और सामान्य ढंग से काम करने लगेंगे, तब परीक्षाएं लेने की उनकी योजना है- जब ये कराने की हालत नहीं है, तो इसमें शर्म कैसी! अगर महामारी से लोगों की मौत जारी रही और लंबे समय तक या पूरे टर्म के लिए सोशल डिस्टेन्सिंग की जरूरत पड़ ही जाए, तब उपयोग में समझी जा सकने वाली प्राइवेसी चिंताओं के बावजूद कुछ दिनों के लिए वेब-आधारित प्लेटफॉर्म वाले ऑनलाइन क्लास को उचित कदम कहा जा सकता है। आखिर, एक सरकारी सर्कुलर में भी गोपनीय डाटा की सुरक्षा के संबंध में चिंताओं के मद्देनजर सरकारी कामों के लिए जूम के उपयोग को लेकर चेतावनी दी ही गई है।
यह समझने की जरूरत है किशै क्षिक संस्थान सीखने, पढ़ने, प्रयोग करने, विचारों के आदान-प्रदान, बहस करने, सवाल उठाने और विरोधी रुख रखने की जगह है- ये सब शिक्षा व्यवस्था के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। डिजिटल स्रोत शिक्षा के काफी महत्वपूर्ण सहायक हैं या उनका कुशल तरीके से उपयोग किया जा सकता है लेकिन वे आमने-सामने की बातचीत, पढ़ाने और सीखने-सिखाने के विकल्प नहीं हो सकते। ऑनलाइन परीक्षाएं- ओपन बुक परीक्षा (ओबीई) या घर से लिखकर दी जाने वाली (टेक होम) परीक्षा- पूरी तरह बेकार ही होगी। अधिकारी और समाज जितनी जल्दी इसे समझेंगे, उतना ही अच्छा है।
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