लोकसभा चुनावों के छठे दौर में बिहार की 8 सीटों पर रविवार (12 मई) को मतदान होना है, लेकिन इससे ठीक पहले एनडीए के नेताओं और कार्यकर्ताओं में मायूसी और हताशा नजर आने लगी है।
बिहार में एनडीए का प्रचार एकदम फीका पड़ चुका है, हालांकि हाल के दिनों तक यह माना जा रहा था कि एनडीए कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन को अच्छा मुकाबला दे रहा है और आखिर दो चरणों में उसकी स्थिति काफी अच्छी है।
दरअसल 2105 विधानसभा चुनाव में उत्तर-पश्चिम और पश्चिम बिहार में बीजेपी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था। हालांकि इस चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था और लालू की आरजेडी और नीतीश की जेडीयू ने साथ मिलकर सरकार बनाई थी। बीजेपी ने इस चुनाव में 53 सीटें जीती थीं, जिनमें से ज्यादा सीटें पूर्वी और पश्चिमी चंपारण जिलों और पटना के आसपास की थीं।
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अभी जिन 15 लोकसभा सीटों का चुनाव बाकी है, उनमें से ज्यादातर सीटें इन्हीं तीन जिलों में हैं। आखिरी चरण के चुनाव में पटना से कांग्रेस उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा, केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, पूर्वी चंपारण से कृषि मंत्रा राधामोहन सिंह और पाटलिपुत्र से केंद्रीय मंत्री राम कृपाल यादव की किस्मत का भी फैसला होना है। राम कृपाल यादव का मुकाबला लालू यादव की बेटी मीसा भारती से है।
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इस बार नीतीश कुमार ने बीजेपी से हाथ मिला रखा है, ऐसे में एनडीए को तो इन सीटों पर स्पष्ट जीत की उम्मीद होनी चाहिए थी। वैसे भी अभी तक एनडीए को बिहार में जितना नुकसान हुआ है, जिसकी भरपाई भी इन्हीं इलाकों से होनी थी। लेकिन जो जमीनी रिपोर्ट्स आ रही हैं उससे संकेत मिलते हैं कि एनडीए नेताओं और कार्यकर्ताओं में जबरदस्त निराशा का भाव है।
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रिपोर्ट्स बताती हैं कि देश के बाकी हिस्सों से एनडीए के बारे में जो खबरें आ रही हैं उससे एनडीए के उन समर्थकों और कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट चुका है, जो हाल तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोद के करिश्मे पर विश्वास कर रहे थे।
लेकिन विडंबना यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही ने उन्हें सबसे ज्यादा निराश किया है। बिहार के चुनावों पर नजर रखने वाले एक विश्लेषक बताते हैं कि बीते दिनों में मोदी के भाषणों और रवैये से सामने आया है कि मोदी किसी भी तरह सत्ता में बने रहना चाहते हैं, इसका अर्थ निकल रहा है कि उन्हें अपनी जीत का भरोसा नहीं रहा।
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उन्होंने आगे कहा कि मोदी यह नहीं समझ रहे हैं कि उनके इस रवैये का फायदा उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को मिल रहा है। खासतौर से मोदी ने जब स्व राजीव गांधी के बारे में टिप्पणियां कीं, उस पर किसी को विश्वास नहीं हुआ। लेकिन 2014 में स्थिति इसके एकदम उलट थी। मोदी जो भी बोलते थे, उस पर लोग विश्वास करते थे, और उनके भाषणों में एक आत्मविश्वास भी झलकता था।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी खेमे की हताशा का एनडीए को भारी नुकसान हो सकता है। इस साफ दिखती हताशा से बीजेपी के कट्टर समर्थकों का भी विश्वास डोल गया है और चुनाव में उनकी दिलचस्पी खत्म हो गई है। साथ ही पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जिस भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं उससे भी बीजेपी कार्यकर्ता परेशान हैं।
एक विश्लेषक का कहना है कि इस हताशा से यह तो नहीं होगा कि बीजेपी समर्थक गठबंधन के उम्मीदवार को वोट दे दें, लेकिन यह जरूर हो सकता है कि वे वोट देने घर से निकलें ही नहीं।
एक उच्च जाति के पत्रकार ने बताया कि उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि उनके गांव में उनकी जाति के 20 फीसदी से ज्यादा लोगों ने गठबंधन के लिए वोट किया। उनका कहना है कि यह अभूतपूर्व स्थिति है, क्योंकि सामान्यता ऐसा होना असंभव था।
यानी नतीजा यह है कि कोई हारे हुए घोड़े पर दांव क्यों लगाए।
हाल ही में बिहार के एक वरिष्ठ बीजेपी मंत्री को अपने एक डॉक्टर मित्र से कहते सुना गया कि बिहार में एनडीए की हालत सही नहीं है। इस तरह के संदेश उन निर्वाचन क्षेत्रों में तेज़ी से फैल रहे हैं जहां चुनाव होना है। ऐसे में बिहार में बीजेपी नेताओं को इस चुनौती का सामना करने में मुश्किलें आ रही हैं।
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