विचार

मणिपुर: शांति की कथित सरकारी कोशिशों के बाद भी जारी हैं 'जातीय झड़पें'

मणिपुर में जातीय झड़पें या कथित ‘जातीय सफाये’ के शुरू होने के तीन माह बाद भी इसमें कमी का कोई संकेत नहीं दिख रहा।

फोटो सौजन्य - अखिल कुमार
फोटो सौजन्य - अखिल कुमार 

मणिपुर की पहाड़ियां उन पोस्टरों से अटी पड़ी हैं जिन पर लिखा है ‘अलग प्रशासन’ या ‘अलग होना ही समाधान’। यूपीएफ संयोजक आरोन किपगेन कहते हैं कि पहाड़ियों में होने वाली हर सभा में भाग लेने वाले इसी तरह के नारे लग रहे हैं और अब यह मांग यूपीएफ या केएनओ की ओर से नहीं बल्कि आम लोगों की ओर से की जा रही है। 

यूपीएफ और केएनओ क्रमशः जोमी सशस्त्र विद्रोही समूहों और कुकी सशस्त्र विद्रोही समूहों के दो छतरी संगठन हैं। यूपीएफ के तहत आठ सशस्त्र विद्रोही समूह हैं और कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (केएनओ) के तहत ग्यारह। सशस्त्र समूह हिंसक गतिविधियों, जबरन वसूली और अत्याचारों को रोकने और अपने हथियारों को एक सुरक्षित, डबल-लॉक कमरे में जमा करके निर्दिष्ट शिविरों में रहने पर सहमत हुए तो भारत सरकार सशस्त्र समूहों के खिलाफ अपने अभियान को रोकने को राजी हुई। 

वह कहते हैं कि पिछले तीन महीनों में हुए जातीय सफाये या नरसंहार ने दोनों समुदायों के बीच खाई को चौड़ा कर दिया है। इंफाल घाटी में अब कोई आदिवासी नहीं है और पहाड़ियों में कोई मैतेई नहीं। जुलाई में नई दिल्ली में केन्द्र सरकार के अधिकारियों के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि इन हालात में विधानसभा के साथ एक अलग राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश ही एकमात्र समाधान है। 

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26 जुलाई को नई दिल्ली की बैठक में पहली बार हुआ कि बातचीत में मणिपुर सरकार का प्रतिनिधि नहीं था। इस साल मार्च में राज्य सरकार ने यह आरोप लगाते हुए बातचीत से हाथ खींच लिया था कि विद्रोही समूह पोस्ता की खेती करने वालों को पनाह दे रहे हैं और राज्य सरकार द्वारा शुरू किए गए बेदखली अभियान के खिलाफ नागरिकों को भड़का रहे हैं।

यह स्वीकार करते हुए कि बातचीत कठिन और लंबी चलेगी, दोनों संगठनों के नेताओं ने स्वीकार किया कि केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि यह आश्वासन चाहते थे कि राजनीतिक समाधान पर किसी भी चर्चा से पहले हिंसा खत्म हो और शांति बहाल हो। जोमी यूपीएएफ के एक नेता केसी जोमी ने कहा,‘हमने उन्हें बताया कि हमारे खिलाफ इकतरफा हिंसा मैतेई द्वारा की जा रही है; कि हम केवल अपना बचाव करने की कोशिश कर रहे हैं। एक बार जब मैतेई आक्रमण बंद कर देंगे, तो हमारे लड़के अपने आप पीछे हट जाएंगे।’ 

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दोनों संगठनों के नेताओं का कहना है कि मणिपुर में राजनीतिक समाधान की मांग लंबे समय से की जा रही है लेकिन इस साल मार्च तक, बातचीत बोडो टेरिटोरियल काउंसिल की तर्ज पर एक क्षेत्रीय परिषद के आसपास केन्द्रित थी लेकिन नरसंहार के बाद यह प्रस्ताव अब मेज पर नहीं है। केएनओ के प्रवक्ता सेलेन हाओकिप ने जोर देकर कहा कि भारतीय संविधान के तहत राजनीतिक स्वायत्तता अब जनजातियों के लिए एकमात्र विकल्प है।

यह बताते हुए कि बातचीत पिछले 15 वर्षों से क्यों लंबी चली है, के सी जोमी कहते हैं, ‘हमारे पास केवल एक संसदीय सीट है- इसलिए हमारे मुद्दों को नई दिल्ली में प्राथमिकता नहीं दी जाती।’ 

मणिपुर में विधानसभा में सभी 10 कुकी-जोमी-हमार विधायकों के अलग-थलग पड़ जाने से गतिरोध और बढ़ गया है। उन्हें अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा है और उनमें से एक आंशिक रूप से लकवाग्रस्त हो गया है और उसका दिल्ली में इलाज चल रहा है। विधायकों ने इंफाल जाने से इनकार कर दिया है और विधानसभा के किसी भी सत्र में भाग लेने में असमर्थता जताई है। इसके बजाय वे पड़ोसी राज्य मिजोरम में मिलते रहे हैं।

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एक बयान में, 10 कुकी-जोमी विधायकों ने कहा कि 3 मई को मैतेई समुदाय द्वारा शुरू की गई हिंसा ने पहले ही राज्य को बांट दिया है और कुकी-जोमी को मणिपुर राज्य से पूरी तरह अलग कर दिया है। बयान में कहा गया: ‘हमारे लोग अब मणिपुर के मातहत नहीं रह सकते क्योंकि नफरत इतनी चरम पर पहुंच गई है कि विधायकों, मंत्रियों, पादरियों, पुलिस और नागरिक अधिकारियों, आम लोगों, महिलाओं और यहां तक कि बच्चों को भी नहीं बख्शा गया। पूजा स्थलों, घरों और संपत्तियों की तो बिसात ही क्या?’ 

एक अलग प्रशासन के लिए लोकप्रिय भावना का समर्थन करते हुए, बयान में कहा गया, ‘चूंकि मणिपुर राज्य हमारी (कुकी-जोमी-हमार) रक्षा करने में बुरी तरह विफल रहा है, हम (विधायक) केन्द्र सरकार से एक अलग प्रशासन की मांग करते हैं।’ 

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इस मांग का इम्फाल घाटी में मैतेई लोगों द्वारा विरोध किया जाना निश्चित है जबकि नगा जिनकी पहाड़ियों में अच्छी-खासी आबादी है, संभवतः नगालैंड के साथ विलय करना चाहें। राज्य में ‘पंगल’ नाम से जाने जाने वाले मुसलमान फिलहाल तो तटस्थ हैं। लेकिन कहा नहीं जा सकता कि बाद में वे किधर जाना चाहेंगे। 

शक नहीं कि मणिपुर के मामले को बेहद लापरवाही के साथ हैंडल किया गया है। राजनीतिक समाधान निकलने में समय लग सकता है और इसके लिए कड़ा संघर्ष करना होगा। राज्य में शांति लौटने से पहले वहां उच्च स्तर के नीति कौशल, करुणा-सहानुभूति और एक-दूसरे को माफ करने की इच्छाशक्ति की जरूरत होगी।

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