राम जन्मभूमि स्थान पर मंदिर बनाने का काम एक तरह से शुरू हो चुका है। बड़ी-बड़ी जेसीबी मशीनें उस 67.7 एकड़ क्षेत्र में आने-जाने लगी हैं, जहां मंदिर बनाया जाना है। यह भी तय हो गया कि मंदिर निर्माण के लिए पैसे इकट्ठा करने का काम किस तरह किया जाना है। लेकिन उन एक दर्जन मंदिरों के बारे में अभी अंतिम तौर पर कुछ तय नहीं हो पाया है, जो इस 67.7 एकड़ क्षेत्र में हैं और जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच गए हैं।
राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के चेयरमैन पूर्व नौकरशाह नृपेंद्र मिश्रा 29 फरवरी को वहां पहुंचने पर उस कारसेवकपुरम में भी गए, जो विश्व हिंदू परिषद का स्थानीय मुख्यालय तो है ही, वह जगह भी है जहां मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों को तराशने का काम पिछले करीब तीन दशकों से तब से ही चल रहा है, जब से बीजेपी-वीएचपी ने मंदिर आंदोलन शुरू किया। ट्रस्ट के सदस्यों की यहां हुई बैठक के बाद सचिव चंपक राय ने जो बताया, उससे लगता है कि अभी मंदिर की डिजाइन को अंतिम रूप नहीं दिया गया है।
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ट्रस्ट से जुड़ने के बाद राय ने कहा था कि वीएचपी की वर्षों पहले बनाई गई डिजाइन ही फाइनल है, क्योंकि इसमें फेरबदल का मतलब होगा मंदिर निर्माण में और देर करना। लेकिन अयोध्या में ट्रस्ट के अन्य सदस्यों के साथ बातचीत के बाद उनका कहना था कि निर्माण के ब्लू प्रिंट पर हम लोग अभी बातचीत कर रहे हैं और अब तक कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, “हमारी नई योजना सुरक्षाबलों की पूर्ण संतुष्टि के अनुरूप होगी। निर्माण इस तरह किया जाएगा कि मंदिर आने वाले लोग पैदल उतना ही रास्ता तय करें कि सुरक्षा प्रभावित नहीं हो। राय ने यह भी कहा कि निर्माण शुरू होने से पहले आर्किटेक्टों और इंजीनियरों की बैठक में योजना को अंतिम रूप दिया जाएगा।
फिर भी, जेसीबी मशीनें इसलिए लगा दी गई हैं ताकि जमीन को समतल करने का काम चलता रहे। लेकिन इसके साथ ही इस बात पर विचार शुरू हो गया है कि राम जन्मभूमि मंदिर के पुजारियों का नया पैनल किस तरह बनाया जाए। पुजारियों के पैनल में बदलाव की पूरी संभावना है। फिलवक्त यहां के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास हैं। वह काफी उम्रदराज हैं। ट्रस्ट सूत्रों के मुताबिक, इसी वजह से यहां किसी अन्य व्यक्ति को यह पद दिया जा सकता है।
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वैसे, आचार्य सत्येंद्र दास का कहना है किः “विवाद और विध्वंस के वक्त मैंने रामलला की 28 साल तक सेवा की है और मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं अंतिम सांस तक रामलला की सेवा करता रहूं।’ यह बात दूसरी है कि जैसे ही आचार्य दास की जगह किसी अन्य की नियुक्ति की चर्चा जैसे-जैसे फैलती गई है, कई पुजारी इस पद पर आने की जुगत भिड़ाने लगे हैं।
यह मसला, वैसे भी, नाजुक है। ट्रस्ट के सदस्य और निर्मोही अखाड़ा के महंत दिनेंद्र दास का कहना है कि युगों से निर्मोही अखाड़ा ही रामलला की पारंपरिक पूजा करता रहा है और इसीलिए हमने यह मांग भी रखी है कि पूजा का अधिकार हमें ही दिया जाए।
माना जाता है कि 1949 में महंत राम अभिराम दास ने ही तब की बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति प्रतिष्ठापित की थी। उनके शिष्य और अयोध्या के वरिष्ठ साधु महंत धरम दास का कहना है कि उनके गुरु महंत राम अभिराम दास ने पूजा शुरू की थी, इसलिए उनके शिष्य को ही पूजा का अधिकार दिया जाना चाहिए। इन सबके बीच वीएचपी और बीजेपी से जुड़े साधु भी पुजारी बनने की होड़ में हैं।
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इसी किस्म का असमंजस 67.7 एकड़ क्षेत्र के छोटे-छोटे आधा दर्जन मंदिरों को लेकर भी है। इनमें राम जन्मस्थान और सीता की रसोई मंदिर भी हैं। अभी ट्रस्ट ने यह तय नहीं किया है कि इन्हें इसी परिसर में रहना है या इन्हें अन्यत्र स्थापित किया जाना है या इनका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया जाना है। ट्रस्ट के सदस्य डाॅ. अनिल मिश्र का कहना है कि इन मंदिरों के बारे में जल्द ही फैसला लिया जाएगा।
ट्रस्ट के कई पदाधिकारियों ने अलग-अलग समय पर कहा है कि मंदिर निर्माण के लिए सरकार से पैसा नहीं लिया जाएगा। सरकार ने भी निर्माण के लिए पैसे देने की किसी योजना के बारे में बताया नहीं है। लेकिन वीएचपी इस निर्माण के लिए पैसे जुटाने का अभियान फिर शुरू कर रही है। ध्यान रहे कि 1990 में राम मंदिर निर्माण आंदोलन के आरंभ में वीएचपी ने लोगों से सवा-सवा रुपये चंदा उगाह कर राशि इकट्ठा की थी। इससे कुल कितनी राशि जमा हुई, इस बारे में कोई ठोस और अधिकृत जानकारी नहीं है। पर माना जाता है कि पत्थर खरीदने, लाने और उन्हें तराशने का काम इस पैसे से ही किया गया।
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इस बीच सूत्रों के अनुसार, ट्रस्ट सचिव राय ने यहां 29 फरवरी को वीएचपी कार्यकर्ताओं की बैठक में कहा कि अब 10 और 100 रुपये के चंदे फिर जमा किए जाएंगे और ये पैसे सीधे ट्रस्ट के बैंक अकाउंट में डालने का अनुरोध किया जाएगा। माना जाता है कि वीएचपी चंदा जमा करने के लिए अभियान शुरू करने जा रहा है और यह एक तरह से हिंदू जागरण अभियान भी होगा।
मंदिर निर्माण के जरिये बीजेपी का राजनीति चमकाना स्वाभाविक भी है। ट्रस्ट के गठन के बाद अयोध्या पहुंचे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी 23 फरवरी को यहां साधुओं को संबोधित करते हुए कहा कि “अयोध्या के संतों से मैंने सब दिन कहा है कि उन्हें राम मंदिर निर्माण को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर भरोसा करना चाहिए। मोदी जी ने अपना वादा निभाया है और उनके नेतृत्व में अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण का रास्ता तैयार हो गया है। हम पिछले 500 साल से इसके लिए लड़ते रहे हैं और हमारी कई पीढ़ियों ने इसके लिए सतत संघर्ष किया है। हमारी पीढ़ी भाग्यशाली है जो मंदिर का निर्माण होते हुए देखेगी।”
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वैसे, एक बात तो तय है कि इस बार की रामनवमी के आसपास इस मामले को फिर गर्म बनाने की हरसंभव कोशिश होगी। इससे पहले ही वीएचपी अयोध्या शहर के बाहर से निर्माण परिसर में पत्थरों को लाने का क्रम आरंभ करेगी। वीएचपी के उच्चस्तरीय सूत्रों के मुताबिक, शुरुआती भजन-पूजन के बाद कोशिश यह होगी कि यह काम रात में ही किया जाए ताकि आम लोगों को कोई दिक्कत नहीं हो।
अयोध्या में 25 मार्च से राम नवमी का उत्सव आरंभ होगा। 2 अप्रैल तक चलने वाले इस उत्सव में ही रामलला की मूर्ति भी निर्माण परिसर में लाने की योजना बनी है। ट्रस्ट के सदस्य महंत दीनेंद्र दास के अनुसार, ट्रस्ट की बैठक में ही प्रतिमा को इधर से उधर करने के कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जाएगा। 6 दिसंबर, 1992 को राम मंदिर-बाबरी मस्जिद परिसर से इस प्रतिमा को हटाकर लगभग आठ घंटे तक पास के राम फकीरे मंदिर में रखा गया था। बाद में उसी शाम इसे वहां प्रतिष्ठापित किया गया, जहां वह अभी है। लगभग 28 साल बाद फिर उसे नई जगह पर ले जाने की योजना बन रही है।
(नवजीवन के लिए अरशद अफजाल खान की रिपोर्ट)
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