विचार

लोकतंत्र और विपक्ष- पहली कड़ी: इस अंधकार में कांग्रेस को आगे आकर समाज का नेतृत्व करना ही होगा

गांधी की हत्या के बाद से लगातार सक्रिय ताकतें मानसिक धरातल को इतना नीचे गिरा देना चाहती हैं जिसकी कोई सीमा नहीं है। यह सब अचानक नहीं हुआ है और यदि इसे अब नहीं रोका गया तो पता नहीं यह पागलपन कहां जाकर रुकेगा। इसलिए कांग्रेस को आगे आकर इस समय समाज का नेतृत्व करना होगा और अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 
लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। हमने अपने साप्ताहिक अखबार <b>‘संडे नवजीवन’</b> के ताजा अंक में इस पर खास तौर पर विचार किया है। दरअसल बात सिर्फ संसद या विधानसभाओं की नहीं है। समाज के हर वर्ग से किस तरह अपेक्षाएं बढ़ गई हैं, यह जानना जरूरी होता गया है। सिविल सोसाइटी आखिर किस तरह की भूमिका निभा सकती है, यह भी हमने जानने की कोशिश की है। कांग्रेस की आने वाले दिनों में क्या भूमिका हो सकती है, इस पर भी हमने बात की है। इस प्रयोजन की पहली कड़ी मेें हम <b>गांधी विचारों के अध्येता और गांधी स्मारक निधि के सचिव रामचंद्र राही </b>के विचार आपके सामने रख रहे हैं।

देश के सामने आज प्रमुख चिंताएं क्या हैं, इस पर बात करने से पहले मैं थोड़ा पीछे जाना चाहूंगा।

हमारे लिए यह गर्व की बात है कि सैकड़ों सालों की राजशाही, सामंतशाही और साम्राज्यशाही से मुक्त होकर भारत ने बालिग मताधिकार को बुनियाद मानते हुए समाज में फैले हर तरह के भेदभाव- जातिगत, धार्मिक, आर्थिक, के बावजूद लोकतंत्र की स्थापना की। मैं मानता हूं कि गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने से पहले तक कांग्रेस इलीट क्लास की पार्टी थी। लेकिन गांधी ने इसे ऐसा आंदोलन बनाया जिसमें देश का हर नागरिक सिपाही बन गया और कांग्रेस जन-जन की पार्टी हो गई।

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9 अगस्त, 1942 को जब भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई तो उसके ड्राफ्ट में गांधी ने लिखा कि जो स्वराज हमें मिलेगा, वह कांग्रेस का स्वराज नहीं होगा बल्कि देश के हर नागरिक का स्वराज होगा। गांधी ने इस देश के नागरिकों को निर्भयता का पाठ पढ़ाया। गांधी का मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता मनुष्य की आजादी के लिए अनिवार्य है। पूर्ण स्वराज के संकल्प का ड्राफ्ट भी गांधी ने तैयार किया। इस ड्राफ्ट में यह लिखा था कि गुलामी स्वीकार करना ईश्वर के प्रतिद्रोह है।

मनुष्यके भीतर गुणऔर दोष दोनों हैं। गांधी ने उसके गुणों को उभार कर उसे नई ऊर्जा में बदला। मनुष्य को उच्चतर मूल्यों की तरफ ले जाने का काम गांधी ने किया। 15 अगस्त को जब देश आजाद हुआ तो बालिग मताधिकार को लोकतंत्र की बुनियाद के रूप में स्वीकार किया गया। लेकिन गांधी यह भी जानते थे कि राज्य और लोक में यदि लोक को दबा दिया गया तो राज्य हावी हो जाएगा। इसलिए गांधी ने नेहरू और पटेल को मिलजुल कर लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में काम करने के लिए तैयार किया।

गांधी चाहते थे कि कांग्रेस लोक सेवकों की तरह काम करे, जनता के बीच रहे, क्योंकि उनकी बुनियाद ही लोक था। लेकिन किन्हीं भी कारणों से कांग्रेस लोक से दूर होती गई...और कांग्रेस के कमजोर होने का अर्थ था हमारे लोकतंत्र का कमजोर होना।

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अब मैं चिंताओं की बात करूंगा जो आज हमारे सामने हैं।

पहली चिंता है, बालिग मताधिकार की बुनियाद पर टिका संविधानआज बचा रहेगा या नहीं। संविधान ने वी दि पीपल... के जरिये हमें ही अधिकार दिया है। आज वह संविधान खतरे में दिखाई दे रहा है। संविधान बचेगा या नहीं, उसके मूल्य बचे रहेंगे या नहीं, यह आज की सबसे बड़ी चिंता है। क्योंकि जाहिर रूप में हम उसी संविधान की शपथ लेकर सत्ता पर काबिज होते हैं और रणनीति के तहत उस संविधान को क्षीण करने के लिए, उसे कमजोर करने के लिए हम चौतरफा कोशिशें कर रहे हैं। समाज में भेदभाव और टकराव पैदा कर रहे हैं। संविधान को लेकर आज बड़े तबके में यह चिंता है कि कहीं हमारा संविधान ही नष्ट न हो जाए।

दूसरी चिंता है, आरएसएस और गांधी के विचारों का टकराव। इस टकराव की शुरुआत कहां से होती है। वास्तव में आरएसएस और हिन्दू महासभा-जैसे संगठनों का जन्म ही धर्म आधारित राज्य की स्थापना के लिए हुआ। जबकि गांधी कहते हैं धर्म आधारित राज्य नहीं होना चाहिए बल्कि धर्म-समावेशी राज्य होना चाहिए। अगर भारत को एक रहना है तो जो भी यहां पैदा हुआ है, यहां रह रहा है, बसा हुआ है, वह भारत का नागरिक है।

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लेकिन आज हो क्या रहा है? हमारे संविधान में सांप्रदायिक सद्भाव, सांप्रदायिक एकता, सर्वधर्म सद्भाव की बातें कहीं गई हैं, धर्मनिरपेक्षता को बुनियाद माना गया है, वहीं आज धर्म के भेद खड़े किए जा रहे हैं, टकराव पैदा किए जा रहे हैं। कितने दुर्भाग्य की बात है कि चुनाव परिणाम के बाद ही तीन घटनाएं ऐसी हो गईं जिनमें धर्म के कारण लोगों पर प्राण घातक हमले हुए। तो ये दूसरा सबसे बड़ा खतरा दिखाई देता है।

हमने पड़ोस में देखा कि पाकिस्तान धर्म के आधार पर बना था लेकिन वह इस आधार पर टिका नहीं रह सका। पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए और आज भी कई गुटों में आपसी टकराव है। जबकि भारत में इतनी बोली, रहन-सहन, धार्मिक मान्यताओं के बावजूद हम एक हैं। लेकिन अब राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए भेद बढ़ाए जाएंगे, टकराव पैदा किए जाएंगे और ऐसे में भारत का एक रहना मुश्किल हो जाएगा।

तीसरी चिंता यह है कि विकास की जो दिशा हमने अपनाई है, उसे गांधी ने हिन्द स्वराज में विनाश की ओर अंधी दौड़ कहा था। आज पूरी दुनिया में इस विकास ने जो संकट पैदा किए हैं, वह हमारे सामने भी हैं। सबसे बड़ा संकट तो पर्यावरण का है। गांधी के समय में पर्यावरण का संकट नहीं था। फिर भी उन्होंने उस समय देख लिया था कि यह संकट आने वाले समय में बढ़ेगा।

इसके अलावा दूसरा बड़ा संकट है बेरोजगारी का। जितना अधिक मशीनीकरण हो रहा है, उतना ही रोजगार के अवसर खत्म होते जा रहे हैं। दिल्ली शहर में ही अनेक स्थानों पर छोटी-छोटी औद्योगिक ईकाइयां काम करती थीं, इनमें मजदूर काम करते थे। अब इन्हें बाहर निकाल दिया गया है और उनकी जगह मशीनों ने, रोबोट ने, ले ली है। अगर देश के युवाओं को रोजगार का, काम करने का, अपनी सृजनात्मक प्रतिभा को प्रकट करने का अवसर नहीं मिलेगा तो खाली दिमाग शैतान का घर होता है। ये युवा विध्वंसकारी कामों में लगेंगे। इसलिए यह आज की सबसे बड़ी और गंभीर चिंता है।

चौथा संकट है, जो समता का समाज हमने चाहा था, जिसमें श्रम का मूल्य था, श्रमिक का स्थान था, उपार्जनशील व्यक्तिइ ज्जत की जिंदगी जी सके, ऐसी व्यवस्था की कल्पना थी। लेकिन अब ऐसा माहौल बन रहा है कि हम भ्रामक धारणाओं में जिएं। आपको समझाया जा रहा है किअच्छी स्थितियां आपको नहीं मिल रही हैं तो क्या हुआ, देश में तो हो रहा है। आपको बताया जाता है कि देश में फास्टेस्ट ट्रेन चलाई जा रही है, अब भूल जाइए कि आप किस तरह अपने गांव भेड़- बकरियों की तरह जाते थे। यह सब जनता को धोखा देने वाला काम आज के दौर में हो रहा है।

पांचवीं चिंता भी इसी से जुड़ी है। आज पूरी दुनिया में एक चिंतन चला है कि सत्य कुछ होता नहीं है। उत्तर सत्य या आभासी सत्य का सृजन किया जा रहा है। पूंजी, तकनीक, प्रचार और संख्या के बल पर इस आभासी सत्य का सृजन किया जा रहा है। भारतीय जनमानस को एक भीड़ में तब्दील किया जा रहा है। आपको क्या करना है, यह आप तय नहीं कर रहे, कोई और तय कर रहा है।

आज समाज को समाज नहीं रहने दिया गया है, बाजार बना दिया गया है और मनुष्य केवल उपभोक्ता बनकर रह गया है। यहां भी उसे क्या खरीदना है, यह बाजार ही तय कर रहा है। और बाजार में मूल्य नहीं होते, बल्कि प्राइस होता है। आज के हालात यह हैं कि पूंजी, नौकरशाही, नेताशाही और उनके पालतू गुंडों ने पूरे लोकतंत्र को किडनैप कर लिया है। नई आर्थिक नीतियों के बाद से सब कुछ बदल गया। अब लोगों की मानसिकता इतनी बदल गई है कि वे एक भ्रम में रहते हुए जयकारा करने के लिए तैयार हैं।

इस समय का सबसे बड़ा नायक कौन है जो जितना अधिक भय दिखा सके, आपके अंदर भय काअहसास पैदा करे। आज समय संकट में है, समाज संकट में है और इसका उद्धारक कौन है जो दूसरों को घर में घुसकर मार सके। जो भावनाएं लोगों के मन में जगाई गई हैं, यह उसके रेस्पांस हैं।

जहां तक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बात है, तो हो सकता है कि भविष्य में उन्हें उनकी इस भूमिका के लिए याद किया जाए। जब वह कहते हैं कि हम नफरत को नफरत से नहीं प्रेम से जीतेंगे, तो यह संदेश देता है कि वह आज के दौर में भी राजनीति की दिशा बदलने के लिए मूल्यों की बात कर रहे हैं। जब-जब राहुल ने यह बात कही, मुझे बहुत पसंद आई, लेकिन राहुल को इसके लिए तपस्या करनी होगी। अंदर से राहुल इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए ख्वाहिशमंद हैं, लेकिन इस रास्ते पर चलने के लिए उनके पास शायद सेना नहीं है।

पिछले बीस-पच्चीस सालों में ऐसी शक्तियों का उदय हुआ है जो समाज की विकृतियों को उभार कर सत्ता हासिल करना चाहती है। इसे देखकर ऐसा लगता है कि क्या हमारा समाज पागलों की जमात में बदल जाएगा? यह एक ऐसा अंधापन है जो कहीं रुकेगा नहीं। मेरा मानना है कि कांग्रेस को इस समय अपनी बुनियाद मजबूत करने का काम प्राथमिकता से करना चाहिए, ऊपरी जोड़तोड़ से बात बनेगी नहीं। क्योंकि अगर आपको मूल्य आधारित राजनीति की तरफ देश को ले जाना है तो उसके लिए लोकजीवन से जुड़कर ऐसी प्रवृत्तियों का शिक्षण करना होगा जो उनके दैनंदिन कार्यों को मूल्यों से संचालित करें, अन्यथा रसातल में ले जाने वाली ताकतें आज तैयार बैठी हैं। ये ताकतें सालों से काम कर रही हैं।

गांधी की हत्या के बाद से ये ताकतें लगातार सक्रिय हैं। मानसिक धरातल को इतना नीचे गिरा देना चाहती हैं जिसकी कोई सीमा नहीं है। आज संसद में ऐसी महिला को भी जिताया गया जो कहती है कि गोडसे देशभक्त था। यह सब अचानक नहीं हुआ है और यदि इसे अब नहीं रोका गया तो पता नहीं यह पागलपन कहां जाकर रुकेगा। इसलिए कांग्रेस को आगे आकर इस समय समाज का नेतृत्व करना होगा और अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

(ये लेखक के अपने विचार हैं, सुधांशु गुप्त से बातचीत पर आधारित)

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