कमजोर वर्गों को आगे लाने और देश में समानता लाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपाय यह है कि कमजोर वर्ग के छात्रों को शिक्षा के लिए छात्रवृत्तियां और अन्य सहायता देकर प्रोत्साहित किया जाए। लेकिन इस दृष्टि से देखें तो मोदी सरकार के साल 2019-20 के बजट में इस वर्ग का आवंटन चिंताजनक है।
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अनुसूचित जातियों के शिक्षा विकास की योजनाओं पर साल 2018-19 के संशोधित अनुमानों में बजट में महत्त्वपूर्ण वृद्धि की गई थी और इसे 6425 करोड़ रुपए कर दिया गया था। इससे एक बड़ी उम्मीद बनी थी। लेकिन साल 2019-20 के बजट में इसे घटाकर मात्र 3815 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इस कटौती से सवाल खड़ा होता है कि क्या 2018-19 के संशोधित अनुमान में वृद्धि केवल चुनावी लाभ के लिए की गई थी? अगर ऐसा नहीं था तो इस साल भी उसका स्तर बनाए रखा जाना चाहिए था।
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कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए मैट्रिक के बाद की छात्रवृत्ति योजना को विशेष तौर पर देखें तो इसके लिए साल 2018-19 के संशोधित अनुमान में 6000 करोड़ रुपए का आवंटन था, जबकि साल 2019-20 में मात्र 2926 करोड़ रुपए का ही आवंटन हुआ है।
अनुसूचित जातियों के लिए मैट्रिक पूर्व की छात्रवृत्ति की स्कीम को देखें तो इसके लिए साल 2014-15 के बजट में 834 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था, जबकि वर्ष 2019-20 में महज 355 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। साल 2018-19 और 2017-18 में तो ये आवंटन और भी कम था। सवाल खड़ा होता है कि यह गिरावट क्यों आई है।
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अब अगर हम अनुसूचित जन-जातियों या आदिवासियों के लिए मैट्रिक बाद की छात्रवृत्ति को देखें तो साल 2017-18 में इसके लिए आवंटन 1643 करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) रखा गया था, जबकि साल 2019-20 में यह आवंटन 1614 करोड़ रुपए है, यानि इसमें भी कमी आई है।
इन दो वर्षों की तुलना करें तो साधन और प्रतिभा (मैरिट कम मीन्स) आधारित छात्रवृत्ति के बजट में भी कमी आई है। लड़कियों के लिए माध्यमिक शिक्षा में प्रोत्साहन की स्कीम का आवंटन भी कम हुआ है। अल्पसंख्यकों के लिए विभिन्न छात्रवृत्तियों के बजट में भी कमी की गई है। जहां एक ओर कमजोर वर्ग के लिए शिक्षा में अवसर बढ़ाने की बात की जा रही है, वहां दूसरी ओर उनके लिए छात्रवृत्तियों के बजट में कमी करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
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