अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 26 मई को अपनी खुफिया एजेंसियों से कहा कि वे कोरोना वायरस के मूल-स्रोत की जांच में तेजी लाएं। इसके पहले भी उन्होंने पूछताछ की थी। वह दरयाफ्त गोपनीयथी, पर अब बाइडेन ने सार्वजनिक रूप से छानबीन की बात करके और 90 दिन की समय-सीमा देकर मसले को गंभीर बना दिया है।
हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सम्मेलन में भी जांच की मांग की गई। यूरोपियन यूनियन ने भी जांच से जुड़ा एक दस्तावेज डब्लूएचओ की तरफ बढ़ाया और भारत ने भी जांच का समर्थन किया। अंदेशा है कि कोविड-19 का वायरस या तो वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरॉलॉजी या उसके पास ही स्थित एक दूसरी प्रयोगशाला से दुर्घटनावश निकला। पिछले साल कयास था कि वायरस को जैविक हथियार के रूप में विकसित किया जा रहा है। वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरॉलॉजी में चमगादड़ में कोरोना वायरस की मौजूदगी पर दशकों से शोध चल रहा है। वुहान की यह प्रयोगशाला हुआनन ‘वेट’ मार्केट के पास है जहां संक्रमण का पहला क्लस्टर मिला।
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इस साल जनवरी के अंत में विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम वुहान गई। इसने कहा कि ‘लैब-लीक’ की संभावना कम है। इसके विरोधी वैज्ञानिकों ने साइंस मैग्जीन में लिखा, “जब तक पर्याप्त डेटा नहीं मिलता, दोनों अवधारणाओं को गंभीरता से लेना होगा।” चीन के 17 और 17 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के समूह की जांच के बाद 120 पेज का दस्तावेज़ तैयार हुआ। रिपोर्ट में वायरस की उत्पत्ति और उसके इंसानों में फैलने के बारे में चार संभावनाएं बताई गईं:
जानवर से इंसान में संक्रमण। संभव है संक्रमण चमगादड़ से आया। पैंगोलिन या मिंक भी ऐसे जंतु हो सकते हैं।
बीच में एक और जंतु की संभावना। जिस जंतु को पहली बार कोरोना हुआ हो, उसने इंसानों से पहले किसी अन्य जानवर को संक्रमित किया हो। उससे फिर इंसान संक्रमित हुए हों।
खाद्य-सामग्री से संक्रमण। इसमें फ्रोजन फूड शामिल हैं। फ्रोजन उत्पादों में सार्स कोविड-2 बना रह सकता है। चीनी मीडिया इसका बार-बार उल्लेख कर रहा है। उसका इशारा विदेशी सामान की ओर है। डब्ल्यूएचओ के दस्तावेज के अनुसार खाद्य-सामग्री के माध्यम से सार्स कोविड-2 संचरण के निर्णायक सबूत नहीं हैं।
टीम का निष्कर्ष था कि प्रयोगशाला से इंसानों में फैलने की संभावना कम है। रिपोर्ट मानती है कि प्रयोगशालाओं में ऐसी दुर्घटनाएं दुर्लभ होती हैं, लेकिन हो सकती हैं।
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डब्ल्यूएचओ के अनुसार वुहान की प्रयोगशाला के एक भी कर्मचारी को दिसंबर 2019 से कुछ महीनों या सप्ताह पहले कोविड-19 से संबंधित कोई बीमारी नहीं मिली। पर वॉलस्ट्रीट जरनल की एक रिपोर्ट ने इस तथ्य पर सवाल उठाए हैं। अखबार ने अमेरिकी इंटेलिजेंस के सूत्रों का हवाला देते हुए कहा है कि 2019 के नवंबर में संक्रमण शुरू होने से पहले वुहान प्रयोगशाला के तीन शोधकर्ताओं का अस्पताल में उपचार किया गया।
बाइडेन की टिप्पणी के फौरन बाद, अमेरिका में चीनी राजदूत ने लैब लीक थ्योरी को साजिश बताया। उन्होंने हालांकि अमेरिका का नाम नहीं लिया, पर इतना कहा कि कुछ राजनीतिक ताकतें वायरस का दोष हमारे मत्थे मढ़ रही हैं। तीन शोधकर्ताओं के बीमार होकर अस्पताल जाने की ख़बर को चीन ने ‘पूरी तरह झूठ’ बताया।
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अभी तक जो भी जानकारी है, वह परिस्थितिजन्य है। वैज्ञानिक साक्ष्य किसी के पास नहीं। अमेरिकी खुफिया टीम जांच कैसे करेगी? खासतौर से तब, जब चीन उसे कोई जानकारी नहीं देगा। इस दौरान यह भी बात सामने आई है कि वुहान की प्रयोगशाला को अमेरिका से आर्थिक सहायता भी मिली है और वायरस से जुड़े शोध में सहायता भी। क्या राष्ट्रपति के चिकित्सा सलाहकार एंटनी फाउची के पास कोई ऐसी जानकारी दबी हुई है, जो वह सामने नहीं ला रहे हैं?
वॉलस्ट्रीट जर्नल के अनुसार अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट में वुहान लैब के बीमार शोधकर्ताओं की संख्या, उनके बीमार पड़ने के समय और अस्पताल जाने से जुड़ी विस्तृत जानकारियां हैं। प्रतिष्ठित विज्ञान-सम्पादक निकोलस वेड का कहना है कि इस सिलसिले में चीन सरकार लगातार प्रचार कर रही है। वेड ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ (एनआईएच) को लेकर भी सवाल खड़े किए और कहा कि उसकी जिम्मेदारी है कि वह वायरस के उद्गम का पता लगाए, वुहान की प्रयोगशाला की फंडिंग से जुड़ी जानकारी भी दे।
हालांकि वैज्ञानिक इस वायरस को प्राकृतिक मानते हैं, पर ऐसे भी हैं, जो मानते हैं कि प्रयोगशाला में ऐसे वायरस तैयार करने की युक्तियों पर काम करना संभव है। पिछले 13 मई को प्रतिष्ठित पत्रिका ‘साइंस’ में वैज्ञानिकों के एक ग्रुप का पत्र प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने कहा कि यह मामला ‘ज़ूनॉटिक-स्पिलओवर’ और ‘लैब-लीक’ दोनों में से कोई एक हो सकता है। यह जांच चीनी सहायता के बगैर संभव नहीं। और चीन इस पर किसी भी चर्चा को साजिश बता रहा है।
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इसके पहले भी सन 2018 में जब अमेरिकी अधिकारियों ने डब्लूएचओ की गाइडलाइंस के तहत एवियन फ्लू के एच7 एन7 स्ट्रेन से जुड़े लैब सैंपल मांगे थे, चीन ने ठुकरा दिया था। सन 2002-04 के बीच सार्स की बीमारी चीन में भड़की थी। उसके पीछे भी ऐसा ही वायरस था। उसके बाद चीन ने वायरस के प्रसार की आशंकाओं को दूर करने के लिए मॉनिटरिंग की व्यवस्था में सुधार किया था और अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने उसमें सहयोग किया था।
कोई नहीं कह रहा कि ‘लैब-लीक’ हुआ है। केवल कहा जा रहा है कि एक संभावना यह भी है, इसलिए जांच होनी चाहिए। चीन की अपारदर्शी व्यवस्था के कारण पिछले साल मामला विवादास्पद हुआ था। विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी चीन के साथ लपेट लिया गया। उन्हीं दिनों ताइवान सरकार ने आरोप लगाया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन की चापलूसी कर रहा है। हमने दिसंबर में ही डब्लूएचओ को संकेत दे दिया था कि कुछ गलत होने जा रहा है, पर हमारी अनदेखी की गई।
चीन ने 20 जनवरी, 2020 को माना कि संक्रमण मनुष्यों से मनुष्यों में हो रहा है, जबकि डब्लूएचओ को जनवरी के मध्य में आंशिक रूप से इसके प्रमाण मिल चुके थे कि संक्रमण हो रहा है। चीन के दबाव में वह पलट गया और 14 जनवरी के ट्वीट में उसने कहा कि चीनी अधिकारियों के अनुसार इस बात के प्रमाण नहीं हैं। इसके छह दिन बाद ही चीन को प्रमाण मिल गए।
दिसंबर के अंत में जब वुहान के अस्पताल में वायरस का पहला मामला सामने आया था, तो व्हिसल ब्लोवर डॉक्टर ली वेन लियांग ने अपने सहकर्मियों और अन्य लोगों को चीनी सोशल मीडिया ऐप वीचैट पर बताया कि देश में सार्स जैसे वायरस का पता चला है। इस पर पुलिस ने वेन लियांग को धमकियां दीं। कोरोना की चपेट में आने से फरवरी में उनकी मौत भी हो गई। बाद में कम्युनिस्ट पार्टी की अनुशासन समिति ने माना कि हमसे गलती हुई है।
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