नरेंद्र मोदी के न्यू इंडिया में कोई व्यक्ति ‘सुप्रीम कोर्टशिप’-जैसी किताब लिखने की सोच भी नहीं सकता। यह क्रिस्टोफर बकले की 2008 में लिखी किताब है। यह अमेरिकी कांग्रेस, व्हाइट हाउस और अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट समेत वाशिंगटन की ‘सबसे सुपात्र उपहास’ संस्थाओं को लेकर अत्यंत कठोर व्यंग्य है। इसमें एक ऐसे राष्ट्रपति को मुख्य पात्र रखा गया है जिसका अगला चुनाव हारना तय है और वह एक ऐसे व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करता है जो अमेरिकी कांग्रेस में उसकी जीत की पुष्टि की सुनवाई करता है।
खैर, यह छोड़िए। अपने यहां कोई व्यक्ति ब्रिटेन में अपील कोर्ट के जज सर एलन मोजेज-जैसे भाषण की भी नहीं सोच सकता। लंदन आपराधिक न्यायालयों के वकीलों के संघ द्वारा आयोजित डिनर को संबोधित करते हुए मोजेज ने न्यायाधीशों के लिए ‘कीमत के आधार पर’ व्यवस्था की सलाह दी। उन्होंने व्यंग्यपूर्वक यह तक कहा कि ‘अगर सबसे कम कीमत वाली सेवाएं देने वाली न्यायपालिका नहीं सोची जा सकती... तो सिर्फ धनी, और विशिष्ट लोगों को सेवा देने के बारे में तो सोचा ही जा सकता है जिनसे गरीब अपराधी या प्रवासी को मुक्त कर दिया जाए क्योंकिउनसे कोई वोट हासिल नहीं होता।’
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अगर इस किस्म की बात कोई वर्तमान या अवकाश प्राप्त कर रहा जज अपने यहां व्यंग्य में भी कह दे, तो गंभीर प्रतिक्रिया होगी। अमेरिकी कार्टूनिस्ट गैरी ट्रूड्यू को अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ‘तीसरे दर्जे का’ कहते रहे हैं। ट्रूड्यू ने अपने डून्सबरी कॉमिक स्ट्रिप में जिस तरह की टिप्पणियां कीं, वे अपने यहां तो सोची भी नहीं जा सकतीं।
असल में, ‘न्यू इंडिया’ में भारत में रही बातें भी अब अकल्पनीय हो गई हैं। शंकर के नाम से प्रसिद्ध केशव शंकर पिल्लई की देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ मित्रता थी लेकिन शंकर अपने कार्टूनों में नेहरू की आलोचना करने से बिल्कुल नहीं कतराते थे। नेहरू की उन्हें कही गई यह बात काफी उद्धृत भी की जाती है कि ‘डोन्ट स्पेयर मी, शंकर।’ नेहरू जी ने ही 1948 में ‘शंकर्स वीकली’ का विमोचन किया था। 1975 में जब यह बंद हुआ, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी इस पर दुःख जताया था। शंकर्स वीकली से आर के लक्ष्मण समेत कई प्रमुख कार्टूनिस्ट निकले। आज सोचकर लगता है कि ‘न्यू इंडिया’ में इनका क्या होता।
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एक ओर महामारी और लॉकडाउन और दूसरी ओर किसी भी तरह की मीडिया, खास तौर पर हास्य-व्यंग्य, पर सरकारी कार्रवाई के बावजूद पिछले साल कॉमिक्स और कार्टूनों की बाढ़ रही। प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट और कवि राजेन्द्र धोड़पकर सही ही मानते भी हैं कि हास्य-व्यंग्य प्रतिरोध का सबसे ताकतवर हथियार है। देश के एटार्नी जनरल ने वेब-कॉमिक रचित तनेजा और स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा दायर करने की अनुमति भी दी। वैसे, यह संयोग ही है कि ये अनुमति कानून के दो विद्यार्थियों ने मांगी है। कर्नाटक में दो समुदायों के बीच वैमनस्यता फैलाने के आरोप में रॉय पोन्नन्ना पर मामला दर्ज किया गया। दरअसल, उनके कार्टून चरित्र गोपैया ने अन्य बातों के अलावा कोडाग में सड़कों की गुणवत्ता, पर्यटन और धर्मांतरण पर सवाल उठाए थे। पोन्नन्ना को अग्रिम जमानत हासिल करने में पांच माह लग गए।
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मार्च, 2020 में लॉकडाउन लगाए जाने के तुरंत बाद ट्विटर की दुनिया में गुजरात के एक व्यक्ति का उदय हुआ जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाते हुए लगातार राजनीतिक टिप्पणियां कीं। अप्रैल के बाद उसने हर रोज एक वीडियो अपलोड किया। उनका नाम है उर्विश कोठारी। उनका शायद ही कोई वीडियो 1-2 मिनट से लंबा होता होगा। उनकी खासियत है कि वह कभी भी अपनी आवाज को तेज नहीं करते और बड़े ही अदब और भावहीन चेहरे के साथ अपनी बात कहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के मोर के साथ वाले वीडियो के वायरल होने के अगले ही दिन कोठारी ने कैमरे के पीछे की कहानी के खुलासे का दावा किया और उन्होंने इसमें दिखाया कि पहले गिरगिट के साथ प्रधानमंत्री का वीडियो शूट करने की योजना थी लेकिन इसे इस वजह से छोड़ दिया गया कि इस वीडियो से भ्रमित करने वाला मतलब निकाला जा सकता था। इसके बाद पेंग्विन के साथ शूट हुआ लेकिन प्रधानमंत्री को यह पसंद नहीं आया क्योंकि उन्हें केवल श्वेत- श्याम अच्छा नहीं लगा।
मोदी का माखौल एक गुजराती उड़ा रहा है? कौन है वह? इसका जवाब खुद कोठारी देते हैं-”मैं एक दुखी नागरिक हूं”। फोन पर बातचीत में वह कहते हैं, “आपको क्या लगता है, मोदी को हम गुजरातियों से बेहतर कोई जानता होगा? आज जो फिल्म दिल्ली में चल रही है, उसे हम 20 साल से देख रहे हैं।” सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, कुशासन, पसंदीदा उद्योगपति को बढ़ावा देना और पारदर्शिता की कमी-जैसे तमाम तत्वजो पिछले छह साल के दौरान मोदी शासन की पहचान से बन गए हैं, उन पर कोठारी को कोई हैरानी नहीं होती। गांधीवादी अध्ययन में डॉक्टरेट करने वाले कोठारी कहते हैं, “यही उनका काम करने का तरीका रहा है। उनका शासन नौटंकी, अपनी छवि को बेहतर दिखाने के हथकंडों और मिथ्या अहंकार में डूबा हुआ है।” कोठारी कहते हैं, “मैं आपको कम-से-कम दो और गुजरातियों- प्रकाश शाह और रमेश ओझा के बारे में बता सकता हूं जो गुजराती में मोदी को चिढ़ाते रहे हैं”। उन्हें महसूस होता है कि हाल के वर्षों में लोगों में शालीनता घटती जा रही है और वे गालियों पर उतर आए हैं। वह कहते हैं, “हम अमेरिका की मैड पत्रिका की तरह के किसी प्रकाशन को लाने के बारे में सोच भी नहीं सकते, हमें जेल में डाल दिया जाएगा।”
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पिछले 25 सालों से मोदी पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करने के लिए जाने जाने वाले कोठारी कहते हैं, “मैं खुद को उस गंदगी से बचाने के लिए यह सब कर रहा हूं... इसलिए कि कल मेरी बेटी जब मुझसे पूछे कि जब भारत ऐसे अंधेरे समय से गुजर रहा था तो मैं क्या कर रहा था, तो मैं उसे जवाब दे सकूं।”
गुजरात मॉडल की बात छिड़ने पर वह हंस पड़ते हैं। कहते हैं, “गुजरात में पिछले 20-25 सालों में कोई भी मानवीय विकास नहीं हुआ, एक भी महत्वपूर्ण नई संस्था नहीं बनी। यहां तक कि फेरी सेवा या सी-प्लेन जैसी दिखावे वाली परियोजनाएं भी बिना किसी रखरखाव के बदहाल हैं। ऐसे हर आयोजन के लिए कॉरपोरेट को सरकार से व्यावसायिक ठेका मिलता है। यही उनका सूत्र है। गुजरात मॉडल एक धोखा है।”
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इकोनॉमिक टाइम्स के लिए कार्टून बनाने वाले आर. प्रसाद कहते हैं, “ऐसी महामारी ने हास्य के लिए गुंजाइश ही कहां छोड़ी है? यह साल तकलीफों और विरोधों की लंबी यात्रा बनकर रह गया। शाहीन बाग से सिंघु गांव तक, रेलवे पटरियों से लेकर हाईवे तक यही तो दिखा। इन्हें केवल व्यंग्य में व्यक्त किया जा सकता है। इस तकलीफ और हताशा के बीच हम कॉमेडियन और कार्टूनिस्ट आपके चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते हैं। लेकिन वे लोग आपके चेहरे पर मुस्कान नहीं देख सकते इसलिए हमारे खिलाफ कानूनी कार्रवाई, मारपीट और सोशल मीडिया लिंचिंग की जाती है।”
29 वर्षीय वेबकॉम निर्माता रचिता तनेजा को सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक अवमानना की कार्यवाही का सामना करना पड़ रहा है। नरेंद्र मोदी के खिलाफ टिप्पणी करने पर दो लोगों को गिरफ्तार किए जाने के बाद 2014 में रचिता ने आज के अपने लोकप्रिय वेब कॉमिक ‘सैनेटरी पैनल्स’ को लॉन्च किया था। हाल ही में प्रिया रमानी को दिए इंटरव्यू में रचिता ने कहा है, “हम असहमति के स्वरों पर चौतरफा हमले को देख रहे हैं। विरोधियों को जेल में डाल दिया जाता है। दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय पर हमला किया जाता है। हमारे सामने यह एक बड़ा मुद्दा बन गया है कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इस देश में एक नागरिक का अधिकार नहीं रह गया है? यूएपीए, देशद्रोह-जैसे तमाम हथियारों पर धार चढ़ाकर रखा जाता है कि जैसे ही कोई सत्ता में बैठे लोगों पर सवाल खड़े करे, इनका इस्तेमाल किया जाए।”
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स्टैंडअप कॉमेडियन सलोनी गौड़ कहती हैं, “केवल संदेश देना ही काफी नहीं, मैं लोगों का मनोरंजन करना चाहती हूं। वैसे तो काफी सोच- समझकर बोलती हूं लेकिन लोग बात-बात पर आहत हो जाते हैं। एक कलाकार हैं जिन्होंने अपने पिता पर जोक मारा और लोगों को नागवार गुजरा। आप कुछ भी कर लो, लोगों को बुरा लगना ही लगना है। इसलिए इस बारे में सोचने का कोई मतलब नहीं।”
लेकिन यह सोचने वाली बात जरूर है कि पहले ही कम पहरेदारी थी क्या जो सरकार ने सोशल मीडिया को भी अपने नियंत्रण में ले लिया? अभी इसके नियम- कायदे बनने हैं और इस बारे में फिलहाल अनिश्चितता है लेकिन इतना तो तय है कि आजादी की जो भी किरण सोशल मीडिया पर दिख जाती थी, अब उसकी मौत का भी फरमान सुना दिया गया है।
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