विचार

मृणाल पाण्डे का लेखः वोट के सौदागरों, हो गई छाती ठंडी?

अगर समय रहते यह अल्पकालिक फायदे के लिए दीर्घकालिक नुकसान का जोखिम मोल लेना नहीं रुका, तो एक दिन आ सकता है जब उजड्ड अराजक तत्व सारी टीमों को खेल के मैदान से बाहर निकाल देंगे और सारा देश मंटो की कहानियों सरीखा पागलखाना बन जाएगा।

फोटोः अतुल वर्धन
फोटोः अतुल वर्धन 

फरवरी, 2020 के बाद घृणा का खुला प्रचार और बेतुकी चुनावी नारेबाजी हमारे रोंगटे भले खड़े करें, सड़क और संसद तक अनवरत हो-हल्ले के बाद वे जनता को आज के भारतीय लोकतंत्र का अखंड हिस्सा लगने लगे हैं। हिंसा की निंदा की बजाय उसको सही या जायज ठहराने वालों की कमी नहीं। जिनके हाथों में शासन की बागडोर है, उनका हर नेता घुमा फिराकर बता रहा है, कि दिल्ली बार-बार उजड़ी और बसी है। इतने सारे बाहरिया देश के गद्दारों की यहां मौजूदगी जाने के बाद उसका इस तरह उजड़ना अनिवार्य था। ऐसे दंगों से निबटने में तीनेक दिन लग जाना कोई बड़ी बात नहीं, और इनको भड़काने में उनके नेताओं का नहीं, टुकड़े-टुकड़े गैंग के संरक्षक विपक्ष का ही हाथ है।

पुलिस, गृह मंत्रालय, सीआरपीएफ सब अपने आकाओं के इन तर्कों के सामने लाचार हैं। टीवी के पालतू एंकर इस बात से भी परेशान नहीं होते कि दंगों के संदर्भ में जो गिरफ्तारियां हो रही हैं, वे सत्ता पक्ष के दोषियों को साफ तौर से निर्दोष बनाकर वर्ग विशेष को ही लक्ष्य बना रही हैं। अदालत कहती है अभी गरम माहौल में वह इन मामलों और जनयाचिकाओं पर सुनवाई नहीं कर सकती।

Published: undefined

हर लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गरम बहसें होती हैं, लेकिन लोकतंत्र में दुश्मनी निभाने की भी मर्यादाएं होती हैं जो सामंतवाद में नहीं होतीं। लोकतंत्र में आप बिना वाजिब कार्रवाई या संसदीय बहस के अचानक किसी बड़े नेता के भारतीय संविधान और उसकी लोकतांत्रिक आत्मा के विखंडन के खिलाफ जनता से ‘आर-पार’ की लड़ाई लड़ने के आग्रह को दंगे उकसाना नहीं बता सकते। तयशुदा तरीके से छानबीन किए बगैर किसी के तमाम वायुयान सेवाओं से उड़ने पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते और न ही कई माह पुराने वक्तव्यों को संदर्भ से काटकर किसी पर देशद्रोह का आरोप ठोक सकते हैं।

सच तो यह है कि हमारा लोकतंत्र लगातार सामंतवादी एकाधिकारवादी बनता जा रहा है जिसमें कोई राजा जी या मंत्री उखड़ गए तो हुकुम हो जाता है कि अमुक का सर अभी के अभी भाले की नोंक पर रख कर लाओ। लोकतांत्रिक न्यायप्रणाली भी लगातार ‘अभी माहौल बदलने दो’ कहती हुई हिंसा को सहन कर रही है। जब जस्टिस मुरलीधरन सरीखा कोई विवेकवान जज पुलिस प्रशासन को कड़े शब्दों में डांट कर कहे कि तुरंत कार्रवाई करो, तो उसका अचानक रात साढ़े ग्यारह बजे तबादला हो जाता है। सम्मानित बुजुर्ग नेता अटल जी की तरह प्रतिपक्ष शासकों को राजधर्म निभाने को कहे, तो उनको साफ कह दिया जाता है कि आप हमको सीख न दें। ठीक है भाई, जिसने तब अपने ही दल के सम्मानित बुजुर्ग प्रधानमंत्री की सीख की अवहेलना कर दी हो, उसे विपक्ष की सीख गले उतारने में भारी तकलीफ होगी ही।

Published: undefined

बहरहाल जनता की गैर दुनियादारी और सत्तावान नेताओं की दुनियादारी के चलते दिल्ली फरवरी के अंत में बेमतलब, लक्ष्यहीन और आर्थिक विघटन की रफ्तार और बढ़ाने वाले सांप्रदायिक वैमनस्य से घिर चुकी है। और इसी बीच अगले बरस बंगाल में होने जा रहे चुनावों का प्रचार भी शुरू कर हिंदू-मुसलमान के आग लगाऊ मुद्दे को लेकर देश के पूर्वी भाग में भाषणों का दौर शुरू कर दिया गया है।

उल्लेखनीय है कि प्रचार-प्रसार के नवीनतम संसाधनों से लैस भारत के गांवों में भी ऐसे भाषण और नारेबाजी लोग दिन-रात देख-सुन रहे हैं और हर कहीं आने वाले समय को लेकर तरह-तरह की आशंकाएं और अफवाहें हवा में तैरने लगी हैं। दिल्ली के दंगों में जिस तरह दोनों ही संप्रदायों को जान-माल का नुकसान हुआ है, उससे लगता है कि दंगे बढ़ती गरीबी, बेरोजगारी, कुकुरमुत्तों की तरह उगी मलिन बस्तियों से शरीफ लोगों की जोंस तक बिखर आए प्रदूषण और शहरी संसाधनों की बदहाली के खिलाफ बरसों से इकट्ठा आक्रोश से जुड़े थे।

Published: undefined

लेकिन हम यह नहीं नकार सकते कि प्रवेश वर्मा या अनुराग ठाकुर या कपिल मिश्रा के मीडिया में देखे-सुने बयानों ने इस बारूद के ढेर को एक चिंगारी उपलब्ध करा दी। उत्तर-पूर्वी दिल्ली की दर्जनों बस्तियों को तबाह करने के बाद अब भाईचारे की अपील हो रही है। नेता बंगाल जाकर बता रहे हैं, कि हम हिंदू लोग तो हजार बरसों से तमाम आक्रमणों के बाद भी शांतिप्रिय सहकारिता की, विविधता की मिसाल रहे हैं। इतिहास में हमने कभी पड़ोसी देशों को जीत कर साम्राज्य बनाने की कोशिश भी नहीं की। हम तो अपने में ही अपने धर्मों के पालन में ही डूबे रहे। बहुत खूब। यह एक और नया फैंसी ड्रेस है।

बीजेपी की रणनीति गौर से पढ़ी जाने लायक है। चुनाव दर चुनाव उसने अपने विपक्षियों को उनके ही जिस्म से रक्त निकाल कर कुछ प्रतिरोधी टीके बनाए और फिर उनको खत्म कर दिया। उदाहरण है वामपंथ, जिसको उच्च शिक्षा संस्थानों के कुछ लोकतांत्रिक चेतना वालों को देश के टुकड़े चाहने वालों विधर्मियों, नक्सलियों से मिला बताना शुरू किया। फिर उनके सहज संवाद और दोस्ती से बना टीका लगा अपने प्रतिरोधी दस्ते बना लिए। इसी तरह कांग्रेस और एसपी की अपनी तरह की नेतृत्व चयन प्रणाली के खिलाफ परिवारवाद और अनुभवहीनता के टीके बना कर उनको जनता के सामने अमान्य बना दिया।

Published: undefined

पर यह टीकाकरण अभियान तब फेल होने लगा जब मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने गोशालाएं बनवा, तिलक चंदन का टीका लगा कर और फिर छतीसगढ़ में बघेल ने गांव, किसान, वन-जल बचाने का अभियान छेड़कर क्रमश: शिवराज सिंह और रमन सिंह के घोड़े छीन लिए और उन पर मजे से आगे निकल गए। साल 2019 तक आम आदमी पार्टी (आप) ने भी दिल्ली में बीजेपी को ठंडा करने को सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रतिरोधी टीका तैयार कर लिया। नतीजा उसकी भारी जीत।

लेकिन इस सब से नुकसान भी हुआ है। बीजेपी के बरक्स ‘आप’ ने अपनी जो कार्यकुशल और सिर्फ जनहित के काम से काम रखने वाली पार्टी की नई नकोर छवि बना ली थी, उसमें उसके धर्मनिरपेक्ष निरोधी टीकों के कारण दंगों के दौरान वह निष्क्रिय बनी रही। माना कि पुलिस की कमान उसके पास नहीं थी, लेकिन वह अपने छ: दर्जन विधायकों को लेकर सड़कों पर दंगे की आग बुझाने क्यों नहीं उतरी? क्यों उसे अचानक केंद्र सरकार, खासकर गृह मंत्रालय की गलतियों की कोई वैध और कड़ी आलोचना से परहेज हो गया है? ये सवाल जनता, खासकर उस अल्पसंख्य समुदाय को व्यथित कर रहे हैं, जिसने सांप्रदायिकता के बूते जीत रही बीजेपी के बरक्स अपना सारा वोट धर्मनिरपेक्ष ‘आप’ की झोली में उलीच दिया था।

Published: undefined

ऐसी भीड़ जिसे खुद हुक्मरानों ने अपने हित साधने को उग्र हिंदुत्व का टीका लगा दिया हो, आगे कुशासन की खुशामद, हताहतों को मुआवजों या दार्शनिक भाषणबाजी से नहीं साधी जा सकेगी। पहली मार्च की शाम दक्षिण दिल्ली में हुई कुछ छिटपुट घटनाएं दिखा रही हैं कि अविश्वास से भरे माहौल में अब तनाव इतना है कि जुआरियों के बीच की हाथापाई, गलियों में क्रिकेट खेलते बच्चों या बस्ती के नल पर के मामूली झगड़े भी दंगों का रूप धर सकते हैं।

इसमें दो राय नहीं कि देश की माली हालत खस्ता है। कोरोना वायरस का प्रकोप शेयर बाजार को भी धराशायी कर चुका है। विदेशी निवेश दुष्कर हो चला है। इस दशा में व्यापक बेरोजगारी के कारण राजनीतिक दल अपने हित स्वार्थ साधने को बहुत आसानी से नाराज असंतुष्ट युवा बदमाशों को अपने रक्षक हिंसक गिरोहों में बदल सकते हैं। युवा खून की गरमी से छलकते ऐसे कई गिरोह एक हैरतअंगेज तेजी से ‘देख लूंगा’, और अपने लीडरान के उग्र भाषणों से नारे छांट कर जाति या धर्म विशेष वालों को गोली मारने की सार्वजनिक धमकियां देते फिरने भी लगे हैं।

लेकिन याद रखें, जो जंगल का कानून बड़े नेता आदर्शहीनता और परस्पर कीचड़ उछालते हुए पिछले दशक में क्रमश: बनाते रहे हैं, उसे मिलेनियल बेरोजगार युवा और भी आगे ले जा सकते हैं। तब सरकार ही असहाय हो जाएगी। आज का युवा सोशल मीडिया पर अपने जन्मदाताओं, शिक्षकों, नेताओं से लगातार भद्दी भाषा में शिकायतें करता रहता है, कि सब कुछ इतना अनिश्चित और गलत था, तो हमको सपने किस लिए दिए गए? अनचाहे बच्चों की तरह यह एक पूरी पीढ़ी उद्दंड हो गई है।

Published: undefined

ट्रंप के राजकीय दौरे के समय हुक्मरानों और शाही मेहमानों की बाबत सोशल मीडिया पर छाए उसके मीम्स और फब्तियां साबित कर रहे हैं कि इस पीढ़ी के भीतर राजनीति, लोकतांत्रिक मूल्यों और देश के नेतृत्व के प्रति श्रद्धा की बजाय एक विकृत हिंसा सुलग रही है। बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं। राष्ट्रीय नेता अगर चुनावों में पद की मर्यादा बार-बार स्खलित कर प्रतिस्पर्धियों की जम कर खिल्ली उड़ाते रहे हों, तो उनके नक्शे कदम पर बढ़ते सोशल मीडिया पर उनके फॉलोअर्स उन समेत पर हर किसी को काट खाने को, कीचड़ में लथेड़ने को तत्पर हो जाते हैं। उनको बड़ा आनंद होता है जब वे किसी भी बड़ी प्रतिमा को तोड़ें और उनको बदनामी की बजाय हम उम्रों से भरपूर लाइक्स मिलें।

दिल्ली की हिंसा के पीछे कोई गहरी मनोवैज्ञानिक गुत्थी नहीं। वह इसलिए हुई कि उस हिंसा को सहन किया गया। उसे इसलिए सहन किया गया कि दिल्ली सरकार को अपनी क्षमता पर भरोसा नहीं था और केंद्र सरकार दिल्ली की मार्फत राज्यों को संदेश देना चाहती थी कि नागरिकता संशोधन विधेयक और उसके दो बाहुओं का विरोध वह कतई सहन नहीं करेगी, कल्लो बात!

अगर समय रहते यह अल्पकालिक फायदे के लिए दीर्घकालिक नुकसान का जोखिम मोल लेना नहीं रुका, तो एक दिन आ सकता है जब उजड्ड अराजक तत्व सारी टीमों को खेल के मैदान से बाहर निकाल देंगे। कुछ दिन को सारा देश मंटो की कहानियों सरीखा पागलखाना बन जाएगा और वे लोग न जाने कहां होंगे जिन्होंने यह जरासीम, यह विषाणु फिजां में छोड़े हैं।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined

  • छत्तीसगढ़: मेहनत हमने की और पीठ ये थपथपा रहे हैं, पूर्व सीएम भूपेश बघेल का सरकार पर निशाना

  • ,
  • महाकुम्भ में टेंट में हीटर, ब्लोवर और इमर्सन रॉड के उपयोग पर लगा पूर्ण प्रतिबंध, सुरक्षित बनाने के लिए फैसला

  • ,
  • बड़ी खबर LIVE: राहुल गांधी ने मोदी-अडानी संबंध पर फिर हमला किया, कहा- यह भ्रष्टाचार का बेहद खतरनाक खेल

  • ,
  • विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले कांग्रेस ने महाराष्ट्र और झारखंड में नियुक्त किए पर्यवेक्षक, किसको मिली जिम्मेदारी?

  • ,
  • दुनियाः लेबनान में इजरायली हवाई हमलों में 47 की मौत, 22 घायल और ट्रंप ने पाम बॉन्डी को अटॉर्नी जनरल नामित किया