ईरान में भारी उथल-पुथल मचा हुआ है। प्रदर्शनकारियों ने राजधानी तेहरान सहित आधे दर्जन से ज्यादा शहरों की सड़कों पर कब्जा कर लिया है। शिया तीर्थ नगरी मशहद में पिछले गुरुवार को अचानक भड़के हिंसक प्रदर्शनों में 1 जनवरी तक दो सुरक्षाकर्मियों सहित लगभग दो दर्जन लोगों की जान चली गई है। नाराज प्रदर्शनकारियों ने पुलिस स्टेशनों और सेना मुख्यालय जैसे सुरक्षा प्रतिष्ठानों तक पर हमला कर किया है। गुस्साई भीड़ द्वारा मदरसों और राष्ट्रपति हसन रूहानी और ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खमनेई के खिलाफ नारेबाजी की भी खबरें हैं।
हालिया विरोध प्रदर्शन ईरानी समाज के एक बड़े वर्ग में बढ़ते आर्थिक संकट के खिलाफ हैं। सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में युवाओं के भाग लेने की बात कही जा रही है। देश के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान के लोग लंबे समय से आर्थिक कठिनाइयों से पीड़ित हैं। देश में भारी बेरोजगारी व्याप्त है। युवाओं में लगभग 30-35 प्रतिशत बेरोजगारी की खबरें हैं।
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दरअसल, शिया धर्मगुरुओं के नेतृत्व में 1979 में हुई ईरानी क्रांति से पहले ईरान एक खुला और उदार समाज था। क्रांति के बाद धर्मगुरुओं द्वारा नियंत्रित ईरानी सत्ता प्रतिष्ठानों ने ईरानी महिलाओं पर सख्ती दिखाते हुए हिजाब जैसे इस्लामिक प्रतिबंध लगा दिए। इन महिला विरोधी कानूनों में छूट के लिए वहां की महिलाएं लंबे समय से लड़ाई लड़ रही थीं। इस मामले में लोगों को उदार राष्ट्रपति हसन रूहानी से बहुत उम्मीदें थीं।
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राष्ट्रपति रूहानी एक उदारवादी नेता हैं, जिन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल में आर्थिक और महिला, दोनों ही मोर्चों पर बहुत उम्मीदें पैदा की थीं। रूहानी ने ईरानियों से यह वादा करते हुए अमेरिकियों के साथ परमाणु समझौता किया था कि एक बार जब अमेरिकी प्रशासन ईरान के खिलाफ अपने आर्थिक प्रतिबंध हटा लेगा, तो उनकी आर्थिक कठिनाइयां कम हो जाएंगी। वह समझौता हो गया और अमेरिकी प्रशासन ने प्रतिबंधों में राहत दी, लेकिन ईरानी अर्थव्यवस्था में कोई खास बदलाव नहीं हुआ। रूहानी ने महिलाओं पर लागू सख्त इस्लामी शरिया कानूनों में राहत देने के लिए भी कुछ खास नहीं किया।
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ऐसा प्रतीत होता है कि इसी बात की नाराजगी ने रूहानी के नेतृत्व वाली ईरानी सरकार के साथ-साथ ईरान के जनजीवन को नियंत्रित करने वाले धर्मगुरुओं के खिलाफ लोगों के गुस्से को भड़का दिया है। प्रदर्शकारी रूहानी और खमेनई दोनों के खिलाफ नारे लगा रहे हैं। विरोध-प्रदर्शन बहुत तेजी से फैल रहे हैं। यहां तक कि अब तेहरान भी इसकी चपेट में आ गया है। सरकार की तरफ से सख्त चेतावनियां जारी की गई हैं, जो बहुत जल्द ही प्रदर्शनकारियों पर सख्ती कर सकती है।
क्या ईरान की सरकार देश में गहराते इस संकट से निपट पाएगी? 2009 में ईरान में एक बड़ा सरकार विरोधी प्रदर्शन हुआ था। हजारौं लोग तत्कालीन कट्टरपंथी राष्ट्रपति अहमदी नेजाद के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए चुनावों में धांधली की थी। तब सरकार ने बेहद सख्त तरीके से उस आंदोलन को कुचल दिया था, जिसे तब "हरित क्रांति" कहा जा रहा था।
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सरकार और इस्लामी शासकों के खिलाफ अपने युवाओं के प्रदर्शनों की वजह से ईरान एक बार फिर संकट में है। अंदर और बाहर दोनों ही जगहों पर ईरान के कई दुश्मन हैं, जो ईरान की गलियों में भड़क रही इस आग में घी डालने का काम करेंगे। मुल्लाओं को सत्ता से बेदखल करने के लिए ट्रंप प्रशासन चोरी-छिपे या खुल्लमखुल्ला सब कुछ करेगा। इजरायल और सुन्नी राष्ट्र सऊदी अरब भी तेहरान के विरोधी हैं, जो खुले तौर पर मध्य पूर्व के मामलों में व्यापक रूप से हस्तक्षेप करता आ रहा है। कहा जाता है कि ईरान राजनीतिक रूप से तीन अरब देशों की राजधानियों को नियंत्रित करता है, जिनमें बगदाद, दमिश्क और बेरुत का नाम शामिल है। यह यमन के साथ भी एक छद्म युद्ध में लिप्त है। अमेरिका, सऊदी अरब और इजराइल, तोनों का ईरान के आयतुल्लाहों को सत्ता में बिठाने में एक साझा हित छिपा हुआ है।
आयतुल्लाह ईरान में अपनी सत्ता के खिलाफ एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं। उन्हें सिर्फ सड़क पर होने वाले विरोध-प्रदर्शनों पर ही ध्यान नहीं देना होगा, बल्कि उन शक्तिशाली विदेशी ताकतों पर भी नजर रखनी होगी जो चाहते हैं कि ईरान की सरकार अरब मामलों में दखल देने की बजाय आंतरिक मामलों में बुरी तरह उलझी रहे। इसके लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। इससे सरकार विरोधी प्रदर्शनों में और तेजी आ सकती है। दोनों ही स्थितियां ईरानी सुधारवादियों के लिए मुश्किल हैं।
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