आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइज़र ने अपने ताजा अंक में 2019 के आम चुनावों में त्रिशंकु लोकसभा की संभावना जताई है। साथ ही संघ का मानना है कि अगले 6 महीनों तक देश में सरकार लकवाग्रस्त स्थिति में शासन चलाएगी या पंगु होकर रह जाएगी। संघ का मानना है कि “त्रिशंकु लोकसभा की संभावना के चलते राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बनेगा और इसका देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के नज़रिए से विपरीत प्रभाव होगा।“
अभी हाल तक किसी ने कल्पना नहीं की होगी कि मीडिया नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में दिन गिनने लगेगा? साथ ही इस चर्चा की भी कोई संभावना नहीं थी कि लोग बात करने लगें कि भले ही बीजेपी को बहुमत मिल जाए, तो भी नरेंद्र मोदी प्रधानमत्री नहीं बनेंगे?
लेकिन तीन अहम राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से सीधे मुकाबले में हारने के बाद बीजेपी में खतरे की घंटी बजने लगी है। सभी राजनीतिक पंडित और विश्लेषक इस बात पर पहले सहमत नजर आ रहे थे कि प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी 2014 जैसी जीत तो हासिल नहीं कर सकती। उनका मानना था कि बीजेपी कम से कम 50 और ज्यादा से ज्यादा 100 सीटें हार सकती है। लेकिन साथ ही उनका तर्क था कि जो भी नुकसान बीजेपी को होगा, उसकी भरपाई वह बीजेपी के नए-नए बने गढ़ पूर्वोत्तर के राज्यों, ओडिशा और पश्चिम बंगाल से कर लेगी।
लेकिन अब यही राजनीतिक पंडित और विश्लेषक भौंचक हैं क्योंकि बीजेपी के अंदर से और आरएसएस से ऐसी आवाज़े उठने लगी हैं कि प्रधानमंत्री पद के लिए नया उम्मीदवार सामने होना चाहिए। हाल ही में इस सिलसिले में संघ प्रमुख मोहन भागवत को पत्र भी लिखा गया कि मोदी और अमित शाह दोनों बीजेपी के लिए बोझ बन गए हैं, ऐसे में विकल्प के तौर पर उनकी जगह नितिन गडकरी के हाथों में कमान दी जानी चाहिए। नितिन गडकरी नागपुर से सांसद हैं और संघ नेताओं से उनकी नज़दीकिया जगजाहिर हैं।
इस दौरान गडकरी भी एक अलग सुर में दिख रहे हैं। एक तरफ जहां सरकार विजय माल्या के संभावित प्रत्यर्पण को भुनाने की तरकीबें सोच रही थी, उसी दौरान उन्होंने एक कार्यक्रम में कह दिया कि एक बार कर्ज न चुकाने वाले को घोटालेबाज़ कहना सही नहीं है। इतना ही नहीं उन्होंने फिर से एक कार्यक्रम में कहा कि बीजेपी में कुछ नेताओं को जरूरत से ज्यादा बोलने की आदत हो गई है, ऐसे लोगों को समझना होगा कि ज्यादा बोलना अच्छा नहीं होता। हालांकि उन्होंने कहा कि वे तो मजाक कर रहे थे, लेकिन समझने वाले समझ गए कि उनका इशारा किसकी तरफ था।
इसी मंगलवार को यानी 18 दिसंबर को बीजेपी संसदीय दल की बैठक में कई बीजेपी सांसद उठ खड़े हुए और सरकार से अयोध्या में उसी जगह राम मंदिर बनाने को लेकर सवाल पूछ डाला। हालांकि इस बैठक में न तो प्रधानमंत्री मोदी थे और न ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, लेकिन शाह इसके बाद हुए एक कार्यक्रम में इन सांसदों की बात का समर्थन ही करते नजर आए।
संसदीय दल की बैठक में बीजेपी सांसद रवींद्र कुशवाहा ने सवाल उठाया था कि, ‘राम मंदिर के मोर्चे पर सरकार क्या कर रही है।’ इसके बाद उनकी बात के समर्थन में मध्य प्रदेश की घोसी सीट से सांसद हरि नारायण राजभर और दूसरे सांसदों ने भी कहा कि सरकार को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार को अध्यादेश लाना चाहिए।
इस बैठक में शाह और पीएम तो थे नहीं, इसलिए गृह मंत्री राजनाथ सिंह और संसदी कार्यमंत्री नरेंद्र सिह तोमर बैठक ले रहे थे। हो सकता है कि शाह और मोदी की गैरमौजूदगी के चलते सांसदों ने बोलने की हिम्मत दिखाई हो। यह बात अभी तक लोगों को याद है कि नंवबर 2016 में जब नितिन गडकरी ने प्रधानमंत्री से सवाल पूछा था तो उनका सवाल पूरा होने से पहले ही उन्हें बिठा दिया गया था।
इस तरह बीजेपी सांसदों की बेचैनी अब सामने आने लगी है। यहां तक कि आरएसएस ने भी संकेत देना शुरु कर दिए हैं कि सिर्फ राम मंदिर ही जीत के लिए एकमात्र तुरुप का इक्का बच्चा है। इसी साल अक्टूबर में दशहरे के मौके पर अपने भाषण में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने साफ कहा था कि राम मंदिर का निर्माण ही हिंदू गौरव को बहाल कर सकता है और बीजेपी के लिए वोट बटोर सकता है।
अभी सामने आया है कि 2014 के चुनाव के दौरान मोदी के लिए प्रचार करते हुए जिन किशोर तिवारी ने ‘चाय पे चर्चा’ कार्यक्रम शुरु किए थे, उन्होंने ही संघ को पत्र लिखकर मोदी को हटाने की मांग उठाई है। साथ ही 2019 के लिए नितिन गडकरी को चेहरा बनाने का आग्रह किया है।
तिवारी कोई मामूली बीजेपी कार्यकर्ता नहीं हैं। वह महाराष्ट्र सरकार के कृषि कार्यदल वसंतराव नाइक शेट्टी स्वावलंबन मिशन के अध्यक्ष हैं और खुद को एक संघ प्रचारक और बीजेपी नेता का पुत्र बताते हैं। तिवारी ने मोदी-शाह की जोड़ी के नेतृत्व को तानाशाही करार दिया है। उन्होंने लिखा है कि अब समय आ गया है कि संघ प्रमुख पार्टी की बागडोर नितिन गडकरी के हाथ में दें ताकि आम लोगों के लिए भयमुक्त वातावरण बन सके।
उधर बीजेपी में हड़बड़ाहट भी साफ नजर आ रही है। हाल ही में विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी के लिए मध्य प्रदेश के विदिशा में प्रचार करने गई विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ऐलान कर दिया कि वे अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी, लेकिन राजनीति में सक्रिय रहेंगी। गौरतलब है कि सुषमा स्वराज उम्र में प्रधानमंत्री मोदी से छोटी हैं, ऐसे में मामला सिर्फ उम्र का नहीं है। वहीं केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी चुनाव न लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी में इस तरह की हड़बड़ाहट के साथ ही असहमति और असंतोष के स्वर आने वाले दिनों में और बढ़ेंगे।
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