लगभग पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले चुके कोरोना वायरस का कहर थमने की कोई सूरत नहीं नजर आ रही है। कई देशों की तरह हमारा देश भी लॉकडाउन किया जा चुका है। दुनिया में इस महामारी से अब तक हजारों जानें जा चुकी हैं और लाखों लोग जूझ रहे हैं और करोड़ों लोग तबाह और विस्थापित हुए हैं। इन सबका असर वैसे तो पूरे समाज पर पड़ता है, लेकिन ऐसे हालात में महिलाएं विशेष तौर पर प्रभावित होती हैं।
फिलहाल कोरोना महामारी के प्रभाव का लैंगिक अध्ययन नहीं किया जा रहा है, पर पहले के अनेक अध्ययन बताते हैं की इस तरह की किसी भी आपदा से महिलायें अधिक प्रभावित होतीं हैं। फिलहाल कुछ देशों के आंकड़े जरूर बताते हैं की जितने लोग कोरोना से मर रहे हैं, उनमें महिलाओं की संख्या पुरुषों से कम है, लेकिन किसी महामारी का असर केवल बीमारी और मरने तक ही सीमित नहीं रहता। इनका सामाजिक प्रभाव भी होता है, जिससे महिलायें अधिक प्रभावित होतीं हैं, लेकिन हम नजरअंदाज करते हैं।
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इटली के नेशनल हेल्थ इंस्टिट्यूट के अनुसार वहां जितने लोग कोरोना पॉजिटिव हैं, उनमें से 60 प्रतिशत पुरुष हैं और इससे मरने वालों में भी 70 प्रतिशत पुरुष हैं। साउथ कोरिया में कोरोना ग्रस्त आबादी में महिलायें पुरुषों से अधिक हैं, पर मरने वालों में 54 प्रतिशत पुरुष हैं। अमेरिका में व्हाईट हाउस के कोरोना वायरस रेस्पोंस कोऑर्डिनेटर डॉ देबोरथ बिर्क्स के अनुसार कोरोना के प्रकोप से पुरुषों की मृत्यु दर महिलाओं की तुलना में हरेक आयु वर्ग में दुगुनी है।
बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन साल 2007 से लगातार सभी देशों से अपील करता आ रहा है कि विभिन्न रोगों और महामारियों के आंकड़े लैंगिक और आयु के आधार पर तैयार किये जाएं, जिससे सबसे प्रभावित समूह की पहचान आसानी से की जा सके, पर कोई भी बड़ा देश यह करने को तैयार नहीं है।
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वैश्विक स्वास्थ्य में लैंगिक असमानता पर काम करने वाले संस्थान, ग्लोबल हेल्थ 50-50, ने बहुत प्रयास के बाद कुछ ऐसे देशों के आंकड़े लैंगिक आधार पर जुटाएं हैं, जहां कोरोना का कहर अधिक है। इसके अनुसार दस संक्रमित महिलाओं की तुलना में इटली, चीन, जर्मनी, ईरान, फ्रांस और साउथ कोरिया में क्रमशः 14, 10, 13, 13, 9 और 6 पुरुष संक्रमित होते हैं। आंकड़ों से स्पष्ट है की संक्रमित होने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों की अपेक्षा कम हो सकती है, बराबर भी हो सकती है, या फिर अधिक भी हो सकती है।
पर, जब इस महामारी से मरने की बात होती है, तक आंकड़ें यही बताते हैं की महिलाओं की मृत्यु दर कम है। इसके अनुसार दस महिलाओं की मृत्यु की तुलना में इटली, चीन, जर्मनी, ईरान, फ्रांस और साउथ कोरिया में क्रमशः 24, 18, 16, 14, 14 और 12 पुरुषों की मृत्यु हुई है। अनेक दूसरे वैज्ञानिकों का भी यही मानना है की कोरोना से पुरुषों के मरने की संभावना महिलाओं की अपेक्षा दुगुनी है। केवल कोरोना से ही नहीं बल्कि हांगकांग में सार्स वायरस और सऊदी अरब और साउथ कोरिया में फैले मर्स वायरस के प्रकोप के समय के अध्ययन भी यही बतातें हैं कि महिलायें ऐसे वायरस से कम प्रभावित होतीं हैं।
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महिलाओं की कम मृत्यु दर को वैज्ञानिक कई दलीलों से साबित कर रहे हैं। अधिकतर वैज्ञानिक इसे महिलाओं की अपेक्षाकृत अच्छी जीवन शैली से जोड़ रहे हैं, जिससे उन्हें सांस, ह्रदय के रोग या फिर डायबिटीज अपेक्षाकृत कम होता है और उनकी रोगों से लड़ने की क्षमता अधिक होती है। दुनियाभर में 15 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में 35 प्रतिशत पुरुष धूम्रपान करते हैं, जबकि महज 7 प्रतिशत महिलाएं इसकी शिकार हैं।
इसी तरह पुरुष प्रतिवर्ष औसतन 11 लीटर से अधिक शराब पी जाते हैं, जबकि महिलाओं के लिए यह आंकड़ा 2 लीटर से भी कम है। चाइनीज सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार चीन में धूम्रपान करने वालों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है। चीन में पुरुषों की आधी आबादी धूम्रपान करती है, जबकि महज 3 प्रतिशत महिलायें धूम्रपान करती हैं। इटली में नेशनल हेल्थ इंस्टिट्यूट के अनुसार लगभग 70 लाख पुरुष धूम्रपान करते हैं, जबकि 45 लाख महिलायें ही ऐसा करती हैं।
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चीन में पुरुषों को हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज अधिक होता है। इटली के अधिकतर पुरुष हाइपरटेंशन, कार्डियोवैस्कुलर रोगों और क्रोनिक लंग रोगों के शिकार हैं। विश्व स्तर पर भी कोरोनरी हार्ट रोगों, स्ट्रोक, फेफड़े के रोगों और हाइपरटेंशन के शिकार में पुरुष आगे हैं। प्रति एक लाख पुरुषों में से 2776 कोरोनरी हार्ट रोगों, 1924 स्ट्रोक, 1181 फेफड़े के रोगों और 215 हाइपरटेंशन के शिकार हैं।
इसकी तुलना में प्रति एक लाख महिलाओं में से 1534 कोरोनरी हार्ट रोगों, 1412 स्ट्रोक, 906 फेफड़े के रोगों और 203 हाइपरटेंशन की शिकार हैं। जाहिर है, महिलायें अपनी स्वस्थ दिनचर्या को बरकरार रखतीं हैं इसलिए इनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता पुरुषों की तुलना में बेहतर रहती है। अनेक वैज्ञानिक यह भी मानते हैं की महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता में उनके विशेष हॉर्मोन का भी योगदान रहता है।
दूसरी तरफ एशिया और पैसिफिक के जेंडर इन ह्युमैनिटेरियन एक्शन नामक संस्था के अनुसार किसी भी महामारी के समय समाज की महिलाओं पर बोझ बहुत बढ़ जाता है। सबसे पहले तो घर में बीमारों और बुजुर्गों की देखभाल का अवैतनिक कार्य ही बढ़ता है। स्कूलों में छुट्टियां किये जाने पर कम उम्र की लड़कियों को भी बुजुर्गों और बच्चों की देखभाल में शामिल कर दिया जाता है। घर के बाहर भी देखें तो महामारी के समय स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ कई गुना बढ़ जाता है और इसका बोझ भी महिलाएं ही उठातीं हैं।
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दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवाओं और इससे जुड़े सामाजिक संस्थाओं में कुल रोजगार प्राप्त लोगों में से 70 प्रतिशत महिलायें हैं, फिर भी इस क्षेत्र में वेतन में लैंगिक असमानता 28 प्रतिशत से अधिक है। ऐसी महिलाओं की सबसे बड़ी दिक्कत पर्याप्त समय निकालना और अपने नाप के सुरक्षा उपकरण खोज पाना है क्योंकी अधिकतर सुरक्षा उपकरण केवल पुरुषों को ध्यान में रखकर डिजाईन किये जाते हैं।
महामारी के समय समाज में फैले तनाव का खामियाजा भी महिलायें ही भुगततीं हैं और बड़ी संख्या में घरेलू हिंसा का शिकार होतीं हैं। बड़े पैमाने पर महिलाओं की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है। एबोला वायरस के विस्तार के समय किये गए अध्ययन में देखा गया की विशेष तौर पर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलायें पुरुषों की अपेक्षा अधिक प्रभावित होतीं हैं और उनकी सुरक्षा भी दांव पर लगी होती है।
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एबोला और जिका वायरस के विस्तार के समय किये गए दूसरे अध्ययन से स्पष्ट होता है कि महामारी के समय महिलाओं का सामान्य स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है, क्योंकि उस समय स्वास्थ्य सेवायें सामान्य समस्याओं को नजरअंदाज करतीं हैं। जेंडर इन ह्युमैनिटेरियन एक्शन के अनुसार किसी भी आपदा या महामारी में महिलाओं की व्यापक भूमिका के बाद भी इससे संबंधित योजना बनाने वाले या नीति निर्धारण करने वाले समूह में उच्च स्तर पर महिलाओं की भागीदारी नहीं रहती।
जेंडर इन ह्युमैनिटेरियन एक्शन का सुझाव है कि महामारी और स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों को लिंग, आयु और विकलांगता के आधार पर प्रस्तुत करना चाहिए और उससे निपटने की नीतियों में भी लैंगिक विश्लेषण को शामिल किया जाना चाहिए। नीति निर्धारकों के समूह में महिलाओं की हरेक स्तर पर भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए और महामारी और आपदा से जुडी जानकारी और आंकड़े सामान्य महिला तक पहुंचाए जाने चाहिए। एक सुझाव यह भी है की क्वेरेन्टाईन, इसोलेशन, लॉकडाउन या इस तरह के स्तरों पर यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि मानवाधिकारों का पर्याप्त पालन किया जाए।
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