लोकसभा में दो दिन तक नवनिर्वाचित सांसदों में कुछ को छोड़कर ज्यादातर बीजेपी सांसदों ने शपथ तो संविधान को साक्षी मानकर ली, लेकिन उसी क्रम में जो नारेबाजी की, उस हिसाब से ठीक उल्टा किया। देवी-देवताओं, मठों के नाम शपथ तो हुई ही नारेबाजी लगाने की होड़ भी ऐसी मची कि संसदीय इतिहास में इस तरह का नजारा कभी देखने को नहीं मिला।
Published: 19 Jun 2019, 10:35 AM IST
संसद के इतिहास में ऐसा पहली बार देखने को मिला कि लोकसभा सदस्य की शपथ लेने वाले नव निर्वाचित सांसदों ने कई ऐसे नारे लगाए जो धर्म और संप्रदाय में विभाजन या दरार पैदा करने वाले थे। बीजेपी सदस्यों ने इसकी शुरुआत 17 जून को संसद आंरभ होते ही कर दी थी। मंगलवार को यह सिलसिला कम होने के बजाय और तेज हुआ। कई बार शपथ ग्रहण प्रक्रिया के बीच नारे लगाने के क्रम में सत्ता और विपक्षी सदस्यों में तकरार भी देखने को मिली।
Published: 19 Jun 2019, 10:35 AM IST
बीजेपी सदस्यों की नारेबाजी के जवाब में आल इंडिया मजलिस-इ-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सांसद असदुद्दीन ओवैसी के नारे से सत्ता पक्ष में बेचैनी देखी गई, लेकिन इससे क्रम थमा नहीं बल्कि सत्ता पक्ष बीजेपी व शिव सेना सांसद भी शपथ के साथ ही खुलकर नारेबाजी करते देखे गए। एसपी, बीएसपी के सांसदों के अलावा तृणमूल कांग्रेस के सांसद भी मुकाबले में धार्मिक आधार पर नारे लगाते हुए शपथ स्थान पर आते देखे गए। इससे कई बार नोंकझोंक का माहौल बना।
Published: 19 Jun 2019, 10:35 AM IST
संविधान विशेषज्ञों की नजर में सांसदों के शपथ के मौके पर सिर्फ वही शब्द पढ़े जा सकते हैं जो विधिवत तौर पर निर्धारित प्रारूप में अंकित हैं। उसके अलावा कुछ भी शपथ के मसौदे के साथ बोला या पढ़ा जाए तो वह अनुचित तो है ही संसदीय गरिमा के भी खिलाफ है।
Published: 19 Jun 2019, 10:35 AM IST
जाने माने संविधान विशेषज्ञ और पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप कहते हैं, “हमने पहली लोकसभा से लेकर अब तक की संसद में शपथ की परिपाटी को न केवल देखा, बल्कि विभिन्न दलों की सरकारों में वर्षों तक पूरी प्रक्रिया का संचालन भी किया। धर्म और संप्रदाय के पक्ष में नारेबाजी शपथ ग्रहण के दिन से ही शुरू होने से इस बात की चिंता है कि यह होड़ कहां जाकर थमेगी।” उनका कहना है कि संसद पटल पर कहीं भी नारेबाजी का उद्घोष करना संसदीय नियम कायदों और देश के सर्वोच्च सदन की गरिमा के खिलाफ है।
Published: 19 Jun 2019, 10:35 AM IST
बदलते वक्त और राजनीतिक माहौल में इस तरह की नारेबाजी पर पूर्व लोकसभा महासचिव जीसी मल्होत्रा को कतई आश्चर्य नहीं है। उनका कहना है “पीठासीन अधिकारी के सामने इस तरह के हालात में कार्यवाही को बिना बाधा के आगे बढ़ाने का एक ही विकल्प है कि शपथ के मौके पर जो भी अनावश्यक बातें या नारेबाजी की गईं उनकी अनदेखी की जाए।” सवालों के जवाब में वे मानते हैं कि प्रोटेम स्पीकर और उनके पैनल ने भले ही धर्म और सांप्रदायिक नारेबाजी को सदन की कार्यवाही से हटाने की घोषणा की है, लेकिन यह बातें व्यावहारिक तौर पर मजाक ही बनकर रह गई हैं। उनका इशारा संसद की कार्यवाही के लाइव प्रसारण से था, जिसके जरिए देश-विदेश में कार्रवाही का सीधा प्रसारण हो रहा था।
Published: 19 Jun 2019, 10:35 AM IST
क्या धर्म, संप्रदाय और देवी-देवताओं का नाम शपथ लेने के मौके पर लेना संसदीय कानूनों के अपमान की श्रेणी में नहीं आता, इस प्रश्न पर मल्होत्रा कहते हैं, “संसद के नियमों की अवमानना या संसद के विशेषाधिकार हनन का मामला अध्यक्ष के संज्ञान में तभी लाया जाता है, जब कोई सदस्य एकत्र साक्ष्यों और प्रमाणों के आधार पर स्पीकर से शिकायत करे।”
Published: 19 Jun 2019, 10:35 AM IST
मल्होत्रा के मुताबिक, अगर उचित शिकायत हो भी जाए तो भी कार्यवाही की पूरी प्रक्रिया को निर्णायक मुकाम तक इसलिए नहीं ले जाया जा सकेगा, क्योंकि संसद की विशेषाधिकार समिति में वर्चस्व सत्ताधारी पार्टी का ही होता है। बकौल इनके राजनीतिक पार्टियों के नेतृत्व को ही इस तरह के मामलों में अपनी पार्टी के सांसदों के संसदीय गरिमा और कायदों के अनुरूप शपथ लेने की हिदायद देने से ही इस तरह की प्रवृत्तियों पर काबू पाया जा सकेगा।
Published: 19 Jun 2019, 10:35 AM IST
संविधान मामलों के एक और विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी इस बात से बहुत क्षुब्ध हैं कि धर्म, संप्रदाय और मठों के नाम पर शपथ लेते वक्त नारे बाजी करने वालों को प्रोटम स्पीकर की ओर से कोई चेतावनी जारी नहीं की गई। उनका कहना था कि अध्यक्ष के पास संविधान के स्थापित नियम कायदों के अनुसार, कार्यवाही के संचालन के असीमित अधिकार होते हैं, ऐसे में शपथ के मौके पर संसदीय अनुसाशन तोड़ने वाले सांसदों को यह चेतावनी जारी करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए थी कि शपथ के अलावा कुछ भी सदन पटल पर बोलने वाले सदस्य को गैर शपथ श्रेणी में रखा जाएगा।
Published: 19 Jun 2019, 10:35 AM IST
अचारी मानते हैं कि इस तरह के माहौल से संसद के भीतर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने राजनीतिक पार्टियों को आगाह किया है कि संविधान और संसदीय नियमों को ताक पर रखने की इस परिपाटी से देश का माखौल उड़ेगा, संसदीय और संवैधानिक संस्थाओं का अवमूल्यन होगा।
Published: 19 Jun 2019, 10:35 AM IST
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Published: 19 Jun 2019, 10:35 AM IST