हमारे देश में एकता, सामाजिक सौहार्द और सद्भावना को तोड़ने का एक बहुत अनुचित और अनैतिक कुप्रयास अनेक वर्षों से चल रहा है और वह यह है कि इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसे सांप्रदायिक रूप में प्रस्तुत करना और फैलाना। विशेषकर जब से तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए मंदिर-मस्जिद विवाद को कुछ सांप्रदायिक तत्त्वों ने अधिक महत्त्व दिया, तब से यह कुप्रयास अधिक तेज हुआ।
यह बहुत जरूरी है कि इतिहास से इस खतरनाक खिलवाड़ का विरोध किया जाए और देश के लोगों को बांटने की साजिश को विफल किया जाए। जिस दौर में मंदिर-मस्जिद विवादों ने पहले जोर पकड़ा था, उस समय इस लेखक ने इस साजिश के विरुद्ध कुछ पोस्टर और पुस्तिकाएं तैयार की थीं जिनका देश के अनेक स्थानों पर सांप्रदायिकता विरोधी आंदोलन में व्यापक स्तर पर उपयोग किया गया।
मध्यकालीन युग के महत्त्वपूर्ण युद्धों को देखें तो पता चलेगा कि ये हिन्दू-मस्लिम युद्ध नहीं थे, बल्कि दोनों ओर मिली-जुली सेनाएं थीं। हल्दीघाटी की लड़ाई में अकबर की ओर से राजा मान सिंह को सेनापति बनाया गया तो राणा प्रताप की ओर से हकीम खां सूर और उनके मुस्लिम सैनिक वीरता से लड़े। गुरु हरगोविंद की सेना में पैडा खान के नेतृत्व में मुस्लिम सैनिक भी थे। शिवाजी ने अपनी सेना में मुसलमानों को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिये।
जब बाहरी हमले होते थे तो उनका भार हिन्दू-मुसलमानों दोनों को सहना पड़ता था। मंगोल हमलों से निपटने में हिन्दू-मुसलमान दोनों की साझी भूमिका थी। नादिरशाह का मुकाबला मुहम्मद शाह ने करनाल में किया तो अहमद शाह अब्दाली का मुकाबला मराठों ने पानीपत में किया। इन युद्धों में हिन्दू राजाओं की सेना में भी मुसलमान सेनापति और सहयोगी थे। अहमद शाह अब्दाली से लड़ने वाली मराठा सेना के सबसे मुस्तैद हिस्से का नेतृत्व इब्राहीम खां गर्दी ने किया।
ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं जिनमें हिन्दू राजा को हिन्दू राजा ने हरा दिया और उत्पीड़ित किया तो उसे मुस्लिम राजा ने शरण दी। उदाहरण के लिए मारवाड़ के राजा ने बीकानेर के राजा को हरा दिया और बीकानेर का राजा युद्ध में लड़ता हुआ मारा गया। तब उसके बेटों कल्याण दास और भीम को शरण कहां मिली? शेरशाह सूरी के दरबार में। इसी तरह हुमायूं को शेरशाह सूरी ने हरा दिया तो उसे शरण किसने दी? अमरकोट के राणा ने। वहीं अकबर का जन्म भी हुआ।
वास्तव में अकबर ने अनेक महत्वपूर्ण सैनिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियां हिन्दू राजाओं और सामन्तों को सौंप दी थीं। अतः जब हिन्दू राजाओं से अकबर के युद्ध हुए तब भी यह नहीं कहा जा सकता कि हिन्दुओं और मुसलमानाों के युद्ध हुये क्योंकि अकबर की ओर से भी हिन्दू सेना और सेनापति भेजे गये थे। दूसरी ओर यह भी सच है कि मुगल सेनाएं जो हिन्दू सेनापतियों के नेतृत्व में थीं और जिनमें बहुत से हिन्दू, विशेष कर राजपूत सैनिक थे, अन्य मुस्लिम राजाओं के विरूद्ध लड़ने गईं। कई बार इन विरोधी मुस्लिम राजाओं की सेना में अनेक हिन्दू सैनिक और सेनापति भी होते थे। उदाहरण के लिए दक्षिण में मुस्लिम शासकों की सेना में अनेक मराठा सैनिक थे। इस तरह प्रायः दोनों ओर से मिली-जुली सेना होती थी। ऐसा नहीं कि एक ओर केवल हिन्दू हों और दूसरी ओर केवल मुस्लिम।
अनेक राजपूत राजाओं को लाहौर, काबुल, बंगाल, बिहार, गुजरात, अजमेर जैसे महत्वपूर्ण स्थानों का गवर्नर बनाया गया और इन्होंने इन पदों पर रहते हुए मुगल राज्यों की रक्षा की एक मुख्य जिम्मेदारी संभाली। वर्ष 1572 में जब अकबर को गुजरात जाना पड़ा तो आगरा (जहां राज परिवार की सारी महिलाएं रह रही थी) की जिम्मेदारी राजा भारामल को सौंपी गई।
अकबर और कुछ हद तक जहांगीर के समय की एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इन मुगल शासकों को स्वयं मुस्लिम कट्टरपंथियों का विरोध सहना पड़ा और युद्ध के समय मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इन मुगल शासकों के विरुद्ध फतवे भी जारी किये। वर्ष 1580-81 में बंगाल और बिहार में अकबर के विरुद्ध विद्रोह हुआ तो विद्रोहियों के पक्ष में फतवा जारी किया गया कि सब मुसलमान अकबर के विरुद्ध लड़ें। दूसरी ओर इन विद्रोहियों को कुचलने के लिए अकबर ने जो सेनाएं भेजीं उनका नेतृत्व राजा टोडरमल और राजा मान सिंह ने किया। टोडरमल, मान सिंह और भगवान दास की सेनाओं के आगे विद्रोहियों के लिए अधिक देर तक टिकना संभव नहीं रहा।
मध्यकालीन भारत में अनेक हिन्दू तीर्थ स्थानों को मुस्लिम शासकों का संरक्षण और सहायता प्राप्त हुई। इन तीर्थ स्थानों के विकास में इस सहायता का महत्वपूर्ण योगदान था।
मथुरा-वृंदावन क्षेत्र: इस क्षेत्र के लगभग 35 मन्दिरों के लिए मुगल शासकों अकबर, जहांगीर और शाहजहां से सहायता मिलती रही। इसके दस्तावेज आज भी उपलब्ध हैं। लगभग 1000 बीघा जमीन की व्यवस्था इन मन्दिरों के लिए की गई थी। इन दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि इन मन्दिरों की तरह-तरह की समस्याएं सुलझाने में मुगल शासकों और उनके अधिकारियों ने बहुत तत्परता दिखाई।
अयोध्या: अवध के नवाबों और उनके अधिकारियों ने अयोध्या में अनेक मन्दिर बनवाए, उनकी मरम्मत करवाई और उनके लिए जमीन दान दी। नवाब सफदरजंग ने अयोध्या में हनुमानगढ़ी पर मन्दिर बनाने के लिए जमीन दी। आसिफउद्दौला के दीवान ने भी इस मन्दिर के लिए सहायता दी।
चित्रकूट: एक मुगल शासक ने चित्रकूट में एक विख्यात मन्दिर के लिए 330 बीघा करमुक्त जमीन की व्यवस्था की।
इसी तरह के दस्तावेज प्रयाग, वाराणसी, उज्जैन और गुवाहटी के मन्दिरों से भी मिले हैं।
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जहांगीर और शाहजहां के शासनकाल के ऐसे दस्तावेज भी मिले हैं जिससे पता चलता है कि वृंदावन और मथुरा के मन्दिरों में छोटी-छोटी समस्याओं के बारे में वहां के पुजारी तुरंत मुगल शासकों से शिकायत करते थे और उन्हें न्याय भी मिलता था।
हिन्दू साम्प्रदायिक संगठन यह शिकायत करते हैं कि मुस्लिम शासक हिन्दू धर्म और संस्कृति से दूर रहें। क्या उन्होंने कश्मीर के राजा जैन-उल-अाबदीन या बुड शाह का नाम नहीं सुना जो सार्वजनिक तौर पर हिन्दू त्यौहारों में शामिल हुए और जिन्होंने मन्दिर बनवाए? क्या उन्होंने दक्कन के राजा इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय का नाम नहीं सुना जिन्होंने अपने गीतों में कई बार सरस्वती की वन्दना की है? क्या उन्होंने दक्कन के ही एक अन्य राजा अली आदिल शाह का नाम नहीं सुना जिन्होंने बढ़िया लाईब्रेरी बनाई और उसमें संस्कृत के विख्यात विद्वान पंडित वामन पंडित को नियुक्त किया?
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